Home » खुला पन्ना » लॉकडाउन नहीं तो कोरोना के खिलाफ कैसे जीतेंगे जंग

लॉकडाउन नहीं तो कोरोना के खिलाफ कैसे जीतेंगे जंग

👤 mukesh | Updated on:29 March 2020 7:12 AM GMT

लॉकडाउन नहीं तो कोरोना के खिलाफ कैसे जीतेंगे जंग

Share Post

- सियाराम पांडेय 'शांत'

रोग का आधा इलाज सावधानी और जागरूकता से होता है लेकिन रोग तभी ठीक होता है जब रोग प्रतिरोधक औषधियों का इस्तेमाल हो। पूरी दुनिया कोरोना वायरस जैसी संघातक बीमारी से लड़ रही है। यह बीमार अधिक लोगों में न फैले, इसके उपाय कर रही है लेकिन किस औषधि से इस वायरस को समाप्त किया जाए, यह अभी औषधि वैज्ञानिकों की समझ में नहीं आया है। किसी औषधि के निर्माण और परीक्षण में वर्षों लग जाते हैं लेकिन यह बीमारी तो रोगी को अधिक समय देती ही नहीं। जबतक इसके लक्षण समझ में आते हैं, तबतक यह कई अंगों पर अपना असर करना आरंभ कर देती है। मतलब इसके इलाज का आधार अभी अंदाजा ही है। डॉक्टर अपने अनुभवों के आधार पर मरीजों को ठीक करने का प्रयास कर रहे हैंं। इसके अलावा उनके पास अन्य कोई विकल्प है भी नहीं। इसकी सटीक औषधि अभी बनी नहीं है और जबतक बनेगी तबतक यह बीमारी बहुतों को यमराज की चौखट पर पहुंचा देगी।

सच तो यह है कि कोरोना वायरस से लड़ना किसी महाभारत से कम नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि महाभारत का युद्ध 18 दिन में जीता गया था, हम 21 दिन में कोरोना पर विजय प्राप्त करेंगे। उनकी इस सकारात्मक सोच से देश का मनोबल बढ़ा है। अगर 21 दिन तक अपने परिवार के साथ घर में बने रहने से कोरोना का विनाश होता है तो इससे अच्छी बात भला और क्या हो सकती है? लेकिन भारत जैसे विकासशील देश का एकदिन भी घर बैठ जाना देश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। वैसे महाभारत में पराजित और विजयी पक्ष दोनों तबाह हुए थे। हम इस जंग को जीत तो लेंगे लेकिन इसकी बहुत बड़ी कीमत हमें चुकानी होगी। हमें इस युगसत्य को भी भूलना नहीं चाहिए लेकिन आपातकाल में जीवनरक्षा सर्वोपरि होती है। जान है तो जहान है। जिंदा रहे तो नुकसान की भरपाई भी कर लेंगे, इस भावभूमि के साथ आगे बढ़ते हुए ही हम कोरोना को शिकस्त दे सकते हैं।

कोरोना के खिलाफ जंग में पिछले कई दिनों से देश पूरी तरह थम-सा गया है। एकदिन बैठने का मतलब है विकास की दौड़ में एक साल पीछे चले जाना। 21 दिन में भारतीय अर्थव्यवस्था का क्या होगा, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती। कोई भी लोक कल्याणकारी राज्य अपनी जिम्मेदारियों से नजरें नहीं फेर सकता। भारत ने अपने नागरिकों को परेशानी न हो, इसके लिए कुछ बेहद बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने की कोशिश की है। नागरिकों के लिए एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का एलान कम बड़ी राहत नहीं है। इससे सरकार की नेकनीयती का पता चलता है और जनता के बीच भी भरोसा पैदा होता है कि सरकार उनके साथ है। विश्वास से भरे लोग किसी भी बड़ी जंग को हंसते-खेलते हुए जीत लेते हैं। भारत ने इससे पहले भी कई बड़ी लड़ाइयां जीती है और यह लड़ाई भी वह जीत लेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।

विश्व के तमाम देशों ने लॉकडाउन कर रखा है, वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति लॉकडाउन कर अमेरिका को पीछे नहीं ले जाने की बात कर रहे हैं। कुछ इसी तरह की सोच पाकिस्तान की भी है। इस तरह के ढुलमुल रवैये से कोरोना को मात देना कितना मुमकिन होगा, यह किसी से छिपा नहीं है। भारत सरकार भी कह रही कि अगर हम नहीं चेते तो मई में कोराना वायरस से प्रभावित लोगों की तादाद भारत में साढ़े चार लाख से अधिक हो सकती है। इस आंकड़े की कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए भारत अग्रिम पंक्ति की जिम्मेदारी जरूर निभा रहा है लेकिन ज्यादातर देशों ने प्रदेश और शहरों को लॉकडाउन कर कोरोना के संक्रमण को नियंत्रित करने का प्रयास किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उनके इस निर्णय का स्वागत किया है लेकिन उसके महानिदेशक टेडरोस अधानोम गेब्रियेसस को उक्त उपाय पर्याप्त नहीं लग रहे। उनके हिसाब से लॉकडाउन कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलाव को धीमा तो कर सकते हैं लेकिन इस वैश्विक महामारी को पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकते। उन्होंने सभी देशों से लॉकडाउन के समय का उपयोग करने और कोरोना वायरस पर हमला करने का आह्वान किया है। इस हमले का अपेक्षित स्वरूप क्या होना चाहिए, यह तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया ही नहीं।

भारत सरकार द्वारा एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के एलान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि यह आर्थिक पैकेज सही दिशा में पहला कदम है जबकि पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम पहले ही लॉकडाउन को ऐतिहासिक कदम बता चुके हैं। इस बावत अगर राहुल गांधी ने चार सूत्रीय सुझााव दिये हैं तो चिदंबरम ने दस सूत्रीय। आपदा की घड़ी में हर सुझाव का स्वागत किया जाना चाहिए और उसमें जो उचित लगे, उसपर अमल करना चाहिए।

वित्तमंत्री सीतारमण ने चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को तीन माह तक 50 लाख का बीमा कवर देने की बात कहकर 22 लाख स्वास्थ्य कर्मचारियों और 12 लाख चिकित्सकों का दिल जीत लिया है। इस प्रयास से वे और अधिक ऊर्जा के साथ काम करेंगे। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत देश के 80 करोड़ लाभार्थियों को पांच किलो अतिरिक्त गेहूं या चावल अगले तीन महीने तक देने का निर्णय भी काबिलेतारीफ है। अप्रैल के प्रथम सप्ताह में देश के 8 करोड़ किसानों के खाते में 2000 रुपये की किस्त डालने और तकरीबन 3 करोड़ बुजुर्ग, विधवा और दिव्यांगों को 1000 रुपये अतिरिक्त देने का निर्णय सरकार की जनपक्षधरता का परिचय देता है। उज्ज्वला योजना के तहत 8 करोड़ महिला लाभार्थियों को तीन महीने तक मुफ्त सिलिंडर देने और 20 करोड़ महिला जनधन खाताधारकों को प्रति माह 500 रुपये का निर्णय उन्हें आर्थिक संबल प्रदान करेगा।

दीनदयाल योजना के तहत महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को 20 लाख तक का ऋण देने की वित्तमंत्री की घोषणा भी अबतक की सबसे बड़ी योजना है। पहले उन्हें 10 लाख तक का लोन दिया जाता था। मनरेगा मजदूरों की दिहाड़ी भी बढ़ाकर 182 रुपये से 202 रुपये कर दी गई है। लॉकडाउन की वजह से आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे निर्माण क्षेत्र से संबद्ध 3.5 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों के 31 हजार करोड़ रुपये के फंड की व्यवस्था भी उत्साहजनक है। अगले तीन महीने तक ईपीएफ में सरकार योगदान देगी। ईपीएफ का 12 फीसदी जो कर्मचारी देता है और 12 फीसदी जो कंपनी देती है, यह दोनों ही अगले तीन महीने तक सरकार देगी। लेकिन यह सिर्फ उन्हीं कंपनियों के लिए लागू होगा जहां 100 से कम कर्मचारी हैं और 90 फीसदी कर्मचारियों का वेतन 15 हजार रुपये से कम है। पीएफ स्कीम रेगुलेशन में बदलाव कर नॉन रिफंडेबल एडवांस 75 फीसदी जमा रकम या तीन महीने के वेतन को निकालने की सुविधा भी दी जा रही है।

वैसे जिस तरह अभी भी लोग देश-विदेश से येन-केन प्रकारेण लौट रहे हैं, वह भी कम चिंता का विषय नहीं है। कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया में मचे हड़कंप के बीच बस्ती जिले में अबतक चीन, थाईलैंड, हॉलैंड, श्रीलंका, हांगकांग, मस्कट, इंडोनेशिया, सउदी अरब सहित विभिन्न देशों से 165 लोग आ चुके हैं। इनमें से अधिकांश की जांच स्वास्थ्य विभाग कर चुका है। मध्य युग में पूरे यूरोप पर शासन करने वाला रोम यानी इटली परजीवी वायरस कोरोना के सामने हताश और निराश है। मध्य-पूर्व को रौंदने वाला उस्मानिया साम्राज्य ईरान-टर्की खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। ब्रिटिश साम्राज्य जिसका कभी सूर्य अस्त होता नहीं था, उसके वारिस तक को कोरोना हो चुका है। खुद को आधुनिक युग की शक्ति समझे जाने वाले रूस की हालत खस्ता है। अमेरिका और चीन दोनों ही कोरोना वायरस से परेशान है। सबकी नजर भारत पर है। सब जानना चाहते हैं कि संकट की इस घड़ी में भारत के विचार क्या है? ऐसे में भारत का उत्तरदायित्व और भी बढ़ जाता है।

भारत को एलोपैथिक चिकित्सा के अलावा यहां की आर्ष चिकित्सा पद्धति पर भी अन्वेषण करना चाहिए। कौन-सी आयुर्वेदिक औषधि कोरोना जैसे वायरस के खात्मे में सहायक है, इसपर मंथन होना चाहिए। भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सा का गौरवमयी इतिहास रहा है। आक्रांताओं के हमले में बहुत सारे चिकित्सा और निदान से जुड़े ग्रंथ नष्ट हो चुके हैं लेकिन भारत के पास अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जो दुनिया को राह दिखा सकता है। जरूरत है जो भी आयुर्वेदिक चिकित्सा से जुड़ी किताबे हैं, उन्हें खंगाला जाए। आयुर्वेदिक दवाएं प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालतीं, अतएव उनके प्रयोग में बुराई नहीं है। कोराना वायरस हमारी भविष्य की स्वास्थ्य तैयारी का संकेत है। काश, हम इस दिशा में बढ़ पाते। अच्छा होता कि लॉकडाउन के समय का उपयोग हम पोलियो और टीबीरोधी अभियानों की तरह कर पाते तो इससे हमें कोरोना के समूल उन्मूलन में मदद मिलती।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

Share it
Top