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कोरोना संकट और कॉरपोरेट जगत

👤 mukesh | Updated on:30 March 2020 7:15 AM GMT

कोरोना संकट और कॉरपोरेट जगत

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- डॉ. अजय खेमरिया

पूरा देश लॉकडाउन पर है। प्रधानमंत्री की भावुक और सख्ती मिश्रित अपील का असर 135 करोड़ लोगों पर स्पष्ट नजर आ रहा है लेकिन गृहबन्दी की लक्ष्मण रेखा में कुछ सवाल बहुत ही वेदना के साथ कसमसा रहे हैं। दिल्ली के बस अड्डों पर उमड़ी दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ ने लॉकडाउन के मूल मन्तव्य को ही बेमानी कर दिया। दिल्ली की तस्वीरें या दूसरे राज्यों की सड़कों पर पैदल अपने घरों की ओर चले जा रहे लोग भारत के विकास पर सवाल हैं। पूरे 21 दिनों तक लॉकडाउन को डंडे के जोर पर कायम रखना भी बड़ा संकट है।

जिस तरह से दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ शहरों में जुट रही है उसने 21 दिनी गृहबन्दी पर कुछ व्यवहारिक सवाल तो खड़े कर ही दिए। मोदी देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं, उनकी छवि और भरोसे की डोर अपने समकालीन नेताओं में सर्वोच्च हैं इसलिये बेहतर होगा देश के खजाने के संग कॉरपोरेट जगत पर भी वह बाध्यकारी सीएसआर लागू कर देते। बीच संकट में बुनियादी स्वास्थ्यगत ढांचे में सुधार तो अभी संभव नहीं है और प्रधानमंत्री खुद कह चुके कि इटली, चीन, स्पेन, ईरान या अन्य विकसित देशों की तरह भारत में स्तरीय बुनियादी ढांचा नहीं है। लेकिन क्या 21 दिनी लॉकडाउन की चुनौतियां लोकधन के युक्तियुक्त मरहम की आवश्यकता को स्वयंसिद्ध नहीं कर रहीं हैं। सरकार के स्तर पर देश के बड़े पूंजीपतियों, मठ-मंदिरों, मदरसों, चर्चों, गुरुद्वारों पर कुछ बाध्यकारी सामाजिक दायित्व निर्धारित नहीं किये जाने चाहिये?

प्रधानमंत्री ने कहा कि 21 दिनों की लक्ष्मण रेखा का पालन न करने पर देश 21 साल पीछे जा सकता है। निःसन्देह यह सत्य ही है और हर भारतीय को इसकी पालना करनी ही होगी। लेकिन यह भी तथ्य है कि गरीबों को 21 दिन बगैर सरकारी मदद के काटना असंभव है क्योंकि हमारा सामाजिक-आर्थिक ढाँचा गरीब आदमी के लिए कोई स्पेस देता ही नहीं है। आज करोड़ों लोग कल की रोटी के लिए चिंतित हैं। कस्बों और गांवों में खाने-पीने की चीजें आसमान के भाव मिल रही हैं। मैदानी स्तर पर युद्धकालीन अफरातफरी है। यह स्थिति भी कोरोना वायरस की तरह ही खतरनाक है। आज सही मायनों में जनकल्याणकारी राजव्यवस्था की परीक्षा की घड़ी भी आ गई है।

लक्ष्मण रेखा के अंदर प्रधानमंत्री के आदेश पर सारा देश रहने के लिए तैयार है लेकिन रेखा के अंदर की विषम परिस्थितियों को भी ईमानदारी से स्वीकार करना सरकार का नैतिक दायित्व है। करोड़ों लोग आज सड़कों पर भूखे हैं। अगले कुछ दिनों बाद न उनके पास धन होगा न बाजारों में जरूरत का सामान। जिन लोगों की गृहबन्दी के लिए निषिद्ध किया गया है उनके जीवित रहने के लिए लॉकडाउन (जिसके बढ़ने की पूरी संभावना है) अवधि में 6 लाख करोड़ राशि की जरूरत होगी। यह रकम कहां से आयेगी? ऑक्सफेम इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार 15 करोड़ भारतीय 2004 से ही कर्ज में फंसे हैं, ये लोग कॉरपोरेट माफी के दायरे में भी नहीं आते हैं।

बेहतर होगा सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के समानांतर आर्थिक सुरक्षा का भरोसा भी आम आदमी के मन मस्तिष्क में निर्मित करे। देश के ख्यातिनाम मंदिरों, मठों, डेरों की कुल सम्पति लगभग 10 लाख करोड़ है। मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों की अथाह दौलत भी आंकड़ों में कम नहीं है। मोदी देश के सबसे ताकतवर, लोकप्रिय और विश्वसनीय नेता हैं। उन्हें एक सर्जिकल स्ट्राइक इन दोनों तबकों पर करने की आवश्यकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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