Home » खुला पन्ना » केंद्र की सख्‍ती के बीच भारतीयों की अपने जीवन के प्रति लापरवाही

केंद्र की सख्‍ती के बीच भारतीयों की अपने जीवन के प्रति लापरवाही

👤 mukesh | Updated on:31 March 2020 6:17 AM GMT

केंद्र की सख्‍ती के बीच भारतीयों की अपने जीवन के प्रति लापरवाही

Share Post

- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

विश्‍वभर में कोरोना वायरस (कोविड-19) का संकट गहराया हुआ है, तमाम देशों की अर्थव्‍यवस्‍थाएं संकट में आ चुकी हैं। हर देश की सरकार अपने नागरिकों को इस महामारी से बचाने के लिए भरसक प्रयास कर रही हैं किन्तु कुछ ऐसे भी देश हैं, जो अपने लाख प्रयत्‍न करने के बाद भी इसके संक्रमण को कम नहीं कर पा रहे हैं। जैसे कि इटली में कोरोना 10,023 लोगों की जान ले चुका है। स्पेन में अबतक 5,982 लोगों की जान जा चुकी है, चीन में मौत का यह आंकड़ा 3,182 लोगों का है। ईरान में 2,640 लोगों की मौत हो चुकी है और अमेरिका में 2000 से अधिक मौतें अबतक हो चुकी हैं।

चहुंओर कोरोना का हाहाकार मचा हुआ है। विश्‍वभर में लगभग 7 लाख लोग कोरोना की चपेट में हैं। साढ़े बत्‍तीस हजार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। शायद इसलिए इसके बड़े खतरे को भांपकर भारत सरकार ने अपनी तैयारियां बहुत पहले जनवरी में ही शुरू कर दी थीं, जब यह महामारी चीन से बाहर भी नहीं निकली थी। यही कारण है कि आज भारत में कोविड-19 के संक्रमण से मरनेवालों की संख्‍या फिलहाल कम है। किेंतु जिस तरह से भारत के हर राज्‍य में इन दिनों उतावलेपन के दृश्य उभर रहे हैं, उससे क्‍या हम वास्‍तव में इस वायरस पर विजय पा पाएंगे? यह प्रश्‍न भी हम सभी के सामने है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाख कोशिश कर लें लेकिन जब आम भारतीय अपनी रोजमर्रा की जद्दोजहद से ऊपर उठकर इसके बारे में बताए निर्देर्शों का पालन नहीं करेगा तो कैसे हम इस वायरस से होनेवाले सामूहिक संक्रमण को रोकेंगे? जहां तक परेशानियों का सवाल है, शायद ही दुनिया का कोई आदमी हो, जो यह कहे कि उसे कोई परेशानी नहीं है। जब देश के प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि 21 दिन घर में ही रहने का अनुशासन रखें, नहीं तो देश 21 साल पीछे चला जाएगा तो उनके कथन की भावुक और मार्मिक अपील को हम सभी को समझने की आवश्‍यकता है। पूरा देश लॉकडाउन पर है, हो सकता है इन 135 करोड़ लोगों में से बहुतों को गृहबन्दी की स्‍थ‍िति में पीएम मोदी पर गुस्‍सा आ रहा हो, लेकिन सोचनेवाली बात यही है कि प्रधानमंत्री का इस तरह से निर्णय लेना भला किसके हित में है? कम से कम केंद्र की भाजपा सरकार या मोदी जैसे नेताओं के व्‍यक्‍त‍िगत हित में नहीं, बल्‍कि कहना यही होगा कि देश की शत-प्रतिशत जनसंख्‍या के हित में है।

चीन से निकलकर कोराना को जबतक दुनिया के देश समझ पाते, तबतक तो वह लोगों को अपना ग्रास बनाने लगा था। किसी भी देश के लिए लॉकडाउन या कर्फ्यू लगाना उस देश की अपनी अनुशासन या सुरक्षा के मद्देनजर चर्मोत्‍कर्ष अवस्‍था है, भारत सरकार ने इसे समय रहते पहचान लिया। जिन्‍होंने देर की, वे इटली या स्‍पेन के रूप में हमारे सामने हैं। अमेरिका की भी आज कोई अच्‍छी स्‍थ‍िति नहीं है। उसने लॉकडाउन घोषित नहीं किया है तो उसका खामियाजा भी भुगत रहा है, कोविड-19 के संक्रमण से रोज सैकड़ों जानें वहां जा रही हैं। दूसरी ओर भारत जैसा विशाल जनसंख्‍या वाला देश है, जहां अभी उस मुकाबले मृत्‍यु का आंकड़ा न के बराबर है। लेकिन ऐसे में जब दिल्ली के बस अड्डों जैसे देश के कोने-कोने में दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ उमड़ती दिखती है, जीवन सुरक्षित कर लेने से अधिक अपने घर पहुंचने की जल्‍दी दिखती है तब अवश्‍य लगता है कि कहीं लॉकडाउन का मूल मन्तव्य खतरे में न पड़ जाए।

यही वजह है‍ कि लॉकडाउन के 5वें दिन केंद्र सरकार को राज्यों के लिए इसे सख्ती से लागू करवाने के निर्देश देने पड़े हैं। गृह मंत्रालय ने राज्यों से लॉकडाउन तोड़ने वालों को 14 दिन क्वारंटाइन में भेजने के लिए कहा है। कैबिनेट सेक्रेटरी को वीडियो कांफ्रेंसिंग कर राज्यों से कहना पड़ गया कि राज्यों की सीमाएं कड़ाई से सील हों, कोई मूवमेंट न हो । कुछ भी गलत होता है तो डीएम एक्ट के तहत डीएम और एसपी निजी तौर पर इसके लिए जिम्मेदार माने जाएंगे। केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस की बीमारी से निपटने के लिए ड्यूटी पर लगाए गए सभी कम्युनिटी हेल्थ वर्कर्स के लिए 50 लाख का बीमा घोषित कर दिया। राज्यों को सलाह दी गई कि वह प्रवासी श्रमिकों सहित गरीबों और जरूरतमंद लोगों के भोजन एवं आश्रय की पर्याप्त व्यवस्था उनके कार्यस्‍थलों पर ही करे। केंद्र ने इस उद्देश्य के लिए राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) का इस्तेमाल करने के लिए आदेश जारी किए हैं।

राज्यों से यह भी कहा गया है कि वे लॉकडाउन की अवधि के दौरान बिना किसी कटौती के श्रमिकों के कार्यस्थल पर उनके पारिश्रमिक या वेतन का समय पर भुगतान सुनिश्चित करें। इस अवधि के लिए श्रमिकों से घर का किराया या हाउस रेंट देने की मांग नहीं की जानी चाहिए। उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो मजदूरों या विद्यार्थियों को परिसर (कमरा या घर) खाली करने के लिए कह रहे हैं। भारत सरकार द्वारा एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के एलान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम तक सभी इसे उचित कदम मानते हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत देश के 80 करोड़ लाभार्थियों को पांच किलो अतिरिक्त गेहूं या चावल अगले तीन महीने तक देने का निर्णय करते हैं। अप्रैल के प्रथम सप्ताह में देश के 8 करोड़ किसानों के खाते में 2000 रुपये की किस्त डालने और तकरीबन 3 करोड़ बुजुर्ग, विधवा और दिव्यांगों को 1000 रुपये अतिरिक्त देने का निर्णय सरकार की जनपक्षधरता का परिचय है।

यह भी तय है कि कहीं न कहीं उज्ज्वला योजना के तहत 8 करोड़ महिला लाभार्थियों को तीन महीने तक मुफ्त सिलिंडर देने और 20 करोड़ महिला जनधन खाताधारकों को प्रति माह 500 रुपये का निर्णय उन्हें आर्थिक संबल प्रदान करेगा। लॉकडाउन की वजह से आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे निर्माण क्षेत्र से संबद्ध 3.5 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों के 31 हजार करोड़ रुपये के फंड की व्यवस्था भी उत्साहजनक है। किंतु इतना सब होने के बाद भी लोग घरों से निकलते रहेंगे, भीड़ में भागते रहेंगे तो कहना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी और समूची केंद्र सरकार के लाख प्रयत्‍नों के बाद भी हम कोरोना से लड़ाई लड़ने में फेल हो जाएंगे।

निश्‍चित ही अभी हमारे पास कुछ वक्‍त है सम्‍हलने का। कोरोना मौत के मामले में अपने देश को इटली, स्‍पेन, चीन इरान नहीं बनने देने का। अबतक आधे दिन गुजर चुके हैं, आधे और गुजर जाएंगे। केंद्र के साथ राज्‍य सरकारे कंधे से कंधा मिलाकर इस वक्‍त जंग लड़ रही हैं। कुछ दिन घर से अपनों से दूर रह लेने पर जान रही तो कुछ नहीं बिगड़ने वाला, जहां तक धन की बात है तो वह भी फिर से आ ही जाएगा, किंतु उसके लिए भी जीवन का सुरक्षित रहना जरूरी है। जहां तक भूख का प्रश्‍न है तो इसके लिए भी तमाम प्रयास हरस्‍तर पर जगह-जगह किए जा रहे हैं। सही तो यही होगा कि ''पलायन पुरोगमन नहीं है, आदमी को चाहिए वह जूझे, परिस्‍थ‍ितियों से लड़े।'' भागे नहीं, अन्यथा ये कोरोना उसे तो ग्रास बनाएगा ही उसके जरिए अनेकों के जीवन को भी संकट में डाल देगा।

(लेखक फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्‍य एवं पत्रकार हैं।)

Share it
Top