Home » खुला पन्ना » क्यों न बंद हो मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अजान

क्यों न बंद हो मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अजान

👤 mukesh | Updated on:18 May 2020 11:57 AM GMT

क्यों न बंद हो मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अजान

Share Post

- आर.के. सिन्हा

अगर मस्जिदों से लाउडस्पीकरों पर अजान न दी जाए तो क्या इस्लाम खतरे में आ जाएगा? क्या अजान इस्लाम का अभिन्न अंग है। इन सवालों के अलग-अलग उत्तर हैं। पहले सवाल का जवाब तो यह है कि 1400 साल पुराने इस्लाम धर्म को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि लाउडस्पीकर से अजान न भी दी जाए। इस्लाम में मस्जिदें भी बाद में ही बनी और उन दिनों लाउडस्पीकर जैसा उपकरण था भी नहीं तो अजान एक मोइज्जिन ही तो देता था। आज भी वही देता है लेकिन भारत में अब लाउडस्पीकर लगाकर। दूसरे सवाल का जवाब है कि अजान बेशक इस्लाम का इसके प्रारंभिक दिनों से ही अभिन्न अंग है। इस्लाम, अजान और लाउडस्पीकर के संबंधों पर विगत दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मील का पत्थर फैसला सुनाया है। अपने फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लाउडस्पीकर से अजान देना इस्लाम का धार्मिक भाग कतई नहीं है। हां, यह जरूर है कि अजान देना इस्लाम की धार्मिक परम्परा है। इसलिए मस्जिदों से मोइज्जिन बिना लाउडस्पीकर अजान दे सकते हैं। इस फैसले का चौतरफा स्वागत होना चाहिए। मुस्लिम संगठनों को भी कोर्ट के इस फैसले को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए था। पर फिलहाल कोई पहल होती दिखाई नहीं दे रही।

यह संयोग माना जाएगा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के उपर्युक्त फैसले से कुछ दिन पहले 9 मई को बॉलीवुड के मशहूर गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर अपने ट्वीट में लाउडस्पीकर पर अजान को परेशान करने वाला बताया था। जावेद अख्तर ने अपने ट्वीट में लिखा "भारत में लगभग 50 साल तक लाउडस्पीकर पर अजान देना हराम रहा लेकिन अब जब हलाल हुई है तो खत्म ही नहीं हो रही। लेकिन इसे खत्म करना चाहिए। उम्मीद है कि दूसरों को हो रही परेशानी को समझते हुए लाउडस्पीकर पर अजान देना खुद ही बंद कर देना चाहिए।" जावेद अख्तर ने इस तरह लाउडस्पीकर पर अजान देने को लेकर अपनी राय पेश की है। उस समय तो उन्हें पता भी नहीं था कि कोर्ट क्या फैसला देगी। एक बात सबको पता होनी चाहिए कि अब भी भारत में कई मस्जिदों में लाउडस्पीकरों का इस्तेमान किए बगैर ही अजान दी जाती है। अगर किसी को यकीन न हो तो वह दिल्ली की एतिहासिक शिया जामा मस्जिद में जाकर इस तथ्य की पुष्टि कर सकता है। इसके इमाम मौलाना मोहम्मद मोहसिन तकी गर्व से बताते हैं कि हमारी मस्जिद में लाउडस्पीकर पर अजान नहीं दी जाती। शिया जामा मस्जिद में लाउडस्पीकर पर अजान नहीं दी जाती तो क्या यहाँ नमाज पढ़ने आने वाले सच्चे मुसलमान नहीं है? क्या जावेद ने लाउडस्पीकर पर अजान देने को गलत बताकर कोई पाप कर दिया?

कुछ समय पहले प्लेबैक सिंगर सोनू निगम ने भी लाउडस्पीकर पर अजान देने की प्रथा रोकने की मांग की थी। तब उनके खिलाफ तमाम मुस्लिम संगठन और कथित प्रगतिशील तत्व हाथ धोकर पीछे पड़ गए थे। उनका तो इतना भर कहना था कि फिल्मी जगत के लोग देर रात तक काम करके जब घर लौटते हैं और सोने की कोशिश में लगे होते हैं, उस समय सुबह की अजान शुरू हो जाती है जिसका शोर कष्टप्रद होता है। आपको याद होगा कि तब पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक परिषद् के उपाध्यक्ष सैयद शाह कादिरी ने सोनू निगम के खि‍लाफ फतवा जारी करते हुए कहा था कि जो कोई भी सोनू निगम को गंजा करेगा और पुराने जूते की माला पहनाएगा, उसे 10 लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा। पर उस शख्स पर तो किसी ने क़ानूनी कार्रवाई तक करने की मांग नहीं की थी। हालांकि सोनू निगम ने अपने हिन्दू धर्म में फैली कुरीतियों पर कसकर हल्ला बोला था। कहा था- रास्ते में जो उत्सव होते हैं," वो लोग दादागीरी करते हैं, नाचते हैं। ऐसा करने से पुलिस की तकलीफ हो जाती है।" सोनू निगम ने यह भी कहा था कि लोग धर्म के नाम पर शराब पीते हैं, फिल्मी गाने बजाते हैं।" कहने की जरूरत नहीं कि उनके संकेत किसकी तरफ थे।

क्या जो सोनू निगम की जान के पीछे पड़ गए थे वे अब भी कोर्ट के फैसले का भी विरोध करेंगे? वे जो भी करें यह तो उनकी मर्जी है पर कोर्ट ने गलत कुछ भी नहीं कहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण मुक्त नींद का अधिकार व्यक्ति के जीवन के मूल अधिकारों का हिस्सा है। किसी को भी अपने मूल अधिकारों के लिए दूसरे के मूल अधिकारों का उल्लंघन करने का अधिकार तो नहीं है न?

अब इस सारे मामले की तह में चलते हैं। दरअसल वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन घोषित किया गया है। इसके चलते उत्तर प्रदेश में भी सभी प्रकार के आयोजनों व एक स्थान पर भीड़ एकत्र होने पर रोक लगी। इसके लिए लाउडस्पीकर बजाने पर भी रोक है। लाउडस्पीकर से अजान पर रोक लगाने का निर्देश दिया था। इसके खिलाफ गाजीपुर से बहुजन समाज पार्टी के बाहुबली सांसद अफजाल अंसारी कोर्ट में चले गए। उन्होंने रमजान के महीने में लाउडस्पीकर से मस्जिद से अजान की अनुमति न देने को धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की थी।

बहरहाल, इसबार कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के चलते रमजाने के महीने में भी मस्जिदों से अजान नहीं सुनी गई। ऐसा नहीं कि अजान न हुई होगी। ऐसा तो हो ही नहीं सकता। मोइज्जिन साहब की अजान के बगैर नमाज अदा नहीं हो सकती। लिहाजा अजान भी हुई होगी और मस्जिद के इमाम, मोइज्जिन और मुतवल्ली ने शारीरिक दूरी के साथ नमाज भी अदा की ही होगी लेकिन लाउडस्पीकर का भोंपू अजान के साथ नहीं जोड़ा गया।

समझ में नहीं आता कि मस्जिदों-मंदिरों-गुरुद्वारों को लाउडस्पीकर की जरूरत क्यों पड़ती है? नमाज और पूजा का काम शांति से भी तो हो सकता है। दरअसल कुछ विसंगतियों के चलते ही ऐसा होता है। कुछ इसी तरह की विसंगतियों का असर है कि रमजान को अब कुछ लोग रमादान और खुदा हाफिज को अल्ला हाफिज भी कहने लगे हैं। यह परिवर्तन इस्लाम की वजह से नहीं कट्टरपंथियों की वजह से हुआ है। कट्टरपंथ किसी भी धर्म के लिये अच्छा नहीं होता। आज इसी कट्टरपंथ ने कई उदार और उद्दात्त हिन्दुत्व को भी संकीर्ण बना दिया है। तुलनात्मक चीजें हैं तो तुलना तो होगी ही। किसी भी क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रिया तो स्वाभाविक प्रकृति का नियम है। किसी भी धार्मिक स्थान से तेज आवाज में शोर होना गलत है। धर्म कभी यह नहीं कहता है कि दूसरों को किसी तरह की तकलीफ दी जाए। आप अपने धर्म का पालन जरूर करिए। परंतु, ये भी आपकी जिम्मेदारी बनती है कि उससे किसी को तकलीफ न हो। यह तर्क ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में दिया है। जब इस्लाम का उदय हुआ तो उस समय लाउडस्पीकर नहीं थे। सतयुग, त्रेता, द्वापर युग में भी लाउडस्पीकर नहीं थे। जो लोग अपने अनुसार धर्म की परिभाषा गढ़ रहे हैं, वह बहुत ही गलत और अक्षम हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

Share it
Top