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लॉकडाउनः मेहमान व दावत के बिना निकाह

👤 mukesh | Updated on:21 May 2020 10:44 AM GMT

लॉकडाउनः मेहमान व दावत के बिना निकाह

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- फरमान अली

कोविड-19 को लेकर घोषित लॉकडाउन के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से इस चुनौती को अवसर में बदलने का आह्वान किया। इस दौरान देश का एक तबका जाने-अनजाने ऐसी सामाजिक कुरीति को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ गया है, जिसमें लोगों ने निकाह जैसे सबसे आसान रस्म को दिखावे के चक्कर में खुद के लिए अभिशाप बना लिया। इस्लाम के जानकारों की मानें तो इस्लाम में परिणय सूत्र में बंधने के लिए निकाह सबसे आसान है, जिसमें मौलवी के अलावा लड़के व लड़की पक्ष के चंद लोग शामिल होते हैं और दूल्हा-दुल्हन का निकाह पढ़ा सकते हैं। इस दौरान यह जरूरी नहीं है कि ज्यादा लोग एकत्र होकर दावतें उड़ाएं और दुल्हन पक्ष पर बिना वजह आर्थिक बोझ लादा जाये। यहां तक कि केवल शरबत के एक प्याले पर भी निकाह पढ़ाया जा सकता है यानि नाम मात्र खर्चे पर सादगी के साथ निकाह किया जा सकता है और किया भी जाना चाहिए।

दिखावे के चक्कर में मुसीबत

कुछ पीढ़ी पहले तक लोग अपने बेटे-बेटियों के निकाह इस्लामिक तरीके से बहुत ही सादगी के साथ करते थे। जैसे-जैसे लोगों के पास पैसे की फ़राग़ती (उपलब्धता ) हुई लोग दिखावे में यकीन करने लगे। नतीजा यह हुआ कि शादी या निकाह के अवसर पर हजारों की संख्या में लोगों के लिए शानदार दावतों का आयोजन करने लगे और झूठी शानो-शौकत दिखाने के लिए शादी के नाम पर लाखों रुपये खर्च करने लगे। मध्यम वर्ग में शानो-शौकत दिखाने का रिवाज चल निकला और यह स्टेटस सिम्बल बन गया। जिसका दुष्परिणाम यह सामने आया कि लोग या तो अपनी सम्पति बेचकर या फिर कर्ज लेकर बेटी की शादी में बड़ी-बड़ी दावतों का इंतज़ाम करने लगे। बाद में इन्हें परेशानी उठानी पड़ी, दावत के लिए लिए गए कर्ज उतारते-उतारते जिन्दगी बीत गयी। बात यहीं नहीं रुकी बल्कि वर पक्ष उनसे भी यही अपेक्षा रखने लगे। जिनके पास बेचने को सम्पति नहीं और न कर्ज लेने की स्थिति, ऐसे लोगों की शादी लायक बेटियां घरों पर बैठने को मजबूर हो गयीं।

लॉकडाउन बना वरदान

कोरोना वायरस ने भले ही पूरे विश्व में तबाही मचा रखी हो लेकिन जिन लोगों के यहां बेटे व बेटियां शादी की उम्र को पहुंच गयी लेकिन आर्थिक कमजोरी के कारण शादी नहीं कर पा रहे थे, उनके लिए यह अवसर बनकर आया। मार्च, अप्रैल व मई माह में लोगों की शादी की तारीखें फिक्स थीं लेकिन लॉकडाउन घोषित होते ही सामूहिक दावत या भीड़ एकत्र करने पर रोक लग गयी, जिसके बाद अनेक लोगों ने जहाँ अपनी शादी की तारीखें आगे बढ़ा दीं, वहीं कुछ समझदार लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग सहित अन्य एहतिआतों का पालन करते हुए चंद लोगों की मौजूदगी में बिना दावत का आयोजन किए निकाह कर दिया। जिसके बाद समाज में इसको लेकर ऐसी हवा चली कि लॉकडाउन के दौरान लोगों ने बिना दहेज और बड़ी दावत के ही निकाह कर डाले जो रमजान माह में भी बदस्तूर जारी है।

एक अनुमान के मुताबिक देश प्रत्येक जिले में बड़ी संख्या में ऐसी शादियां हो चुकी हैं। औसतन एक जिले में लॉकडाउन की अवधि में ऐसे एक हजार निकाह भी मान लिए जाएं तो लोगों ने सैकड़ों करोड़ की बचत कर ली। जिसमें मेहमानों के लिए दावत और दावत स्थल के लिए होने वाले भारी-भरकम खर्च शामिल हैं।

यह अलग बात है कि लोगों को निकाह के लिए पैदल, मोटर साइकिलों पर जाना पड़ा। कई ने इंटरनेट का फायदा भी उठाया और ऑनलाइन निकाह किया। इस्लाम के जानकार हाफिज इंतज़ार अहमद कहते हैं कि लॉकडाउन समाज के लिए एक सबक है, खासतौर पर निकाह करने की जो परम्परा इस दौरान शुरू हुई इसे सामान्य समय आने पर भी जारी रखा जाना चाहिए।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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