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वापस लौटे मजदूर ही लिखेंगे गांवों की खुशहाली की कहानी

👤 mukesh | Updated on:31 May 2020 10:22 AM GMT

वापस लौटे मजदूर ही लिखेंगे गांवों की खुशहाली की कहानी

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- डॉ. सुरेन्द्र सागर

कोरोना वायरस से पूरी दुनिया की रफ्तार थम चुकी है। अमेरिका जैसी महाशक्तियों ने अदृश्य वायरस के सामने घुटने टेक दिये। इसकी चपेट में आकर आज दुनिया के लगभग दो सौ देशों में हाहाकार मचा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय रहते सम्पूर्ण देश मे लॉकडाउन लागू करके न सिर्फ देश को वैश्विक महामारी की चपेट में आने से बचाने की कोशिश की बल्कि पूरी दुनिया को नया रास्ता भी दिखाया। प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया को संदेश दिया कि लॉकडाउन ही अदृश्य वायरस को खत्म करने का एकमात्र तात्कालिक उपाय है, जिसका पालन कर लोग जान बचा सकते हैं।

भारत मे लॉकडाउन के बीच लोग रातोंरात दिल्ली, मुंबई, गुजरात, पंजाब और हरियाणा जैसे महानगरों और विकसित राज्यों की चकाचौंध छोड़कर अपने-अपने गांवों की तरफ निकल पड़े। कोरोना संकट के बीच फैक्ट्री मालिकों ने उनलोगों का साथ छोड़ दिया, जिनके भरोसे गांव छोड़कर प्रवासी श्रमिक बनकर लोग काम की तलाश में बाहर गए थे। वैश्विक संकट के समय जब फैक्ट्री मालिकों ने श्रमिकों से संवाद बंद कर दिया तो अंततः लोगों को अपने गावों की याद आई। भूख, प्यास और आर्थिक तंगी के बीच लोग जब गांवों तक पहुंचने के लिए पैदल ही सड़कों पर निकल पड़े तो भारत की असली तस्वीर शहर के लोगों ने भी देखी। भारत गावों का देश है और भारत की आत्मा गांवों में ही बसती है, इसे लोगों ने बड़े करीब से देखा। लॉकडाउन में रेल थम गई, बसें बन्द हो गई, वाहनों का चलना बन्द हो गया, सड़कें वीरान हो गई फिर भी लोगों ने हिम्मत नहीं हारी। जैसे-तैसे लोगों के गांवों की तरफ बढ़ने का सिलसिला जारी रहा। बिहार की बेटी ज्योति अपने लाचार पिता को साइकिल पर बिठाकर 1200 किलोमीटर की दूरी तय कर अपने घर पहुंच गई। भारत के गांव ही हैं जिनमें इतनी शक्ति और ऊर्जा है कि शहर भले उनसे किनारा कर लें, गांव कभी अपनों को मरने नही देंगे। इस स्थिति को देखते हुए ही भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने नीतिगत फैसला लिया और उसके बाद श्रमिक स्पेशल ट्रेनें पटरियों पर निर्बाध गति से दौड़ने लगी।

लाखों लाख लोग आज अपने गांव पहुंच रहे हैं और एकान्तवास से 14 दिनों के आवासित जीवन बिताकर अपने घरों को लौट रहे हैं। गांवों की खुशहाली लौट रही है और लोग अब गावों में ही अपने हुनर व कौशल से रोजगार के अवसर तलाश रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अब गावों की तस्वीर बदलने का फैसला लिया है और 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक पैकेज दिए हैं। आर्थिक पैकेज मुख्य रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग प्रवासी मजदूर बनकर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यो की आर्थिक उन्नति के खेवनहार बनते हैं किंतु अब यही लोग अपने राज्यों मे रहकर उद्योग-धंधे का हिस्सा बनेंगे और गांवों में ही रोजगार की व्यवस्था करेंगे। कोरोना ने गावों को सुख, समृद्धि और आर्थिक विकास की तरफ चलने का सबक सिखा दिया है। आनेवाले दिनों में गावों की खुशहाली की धमक महानगरों में भी सुनाई देगी।

गांवों के बने उत्पाद का प्रचार भी गांवों में होगा और उसकी मार्केटिंग भी गांवों में होगी। लोकल जब वोकल बनेगा तो बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों के मालिक भी गांवों की ताकत का अहसास करेंगे जिन्होंने कोरोना के संकट के बीच जारी लॉकडाउन में गांव से शहर गए श्रमिकों के दो जून की रोटी का इंतजाम नहीं कर पाए।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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