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कोरोना काल में मोदी को लेकर राहुल की तल्खी

👤 mukesh | Updated on:29 Jun 2020 9:16 AM GMT

कोरोना काल में मोदी को लेकर राहुल की तल्खी

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- सियाराम पांडेय 'शांत'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश अभियान का शुभारंभ कर दिया है। इस बीच उन्होंने पूरे दस मिनट तक उत्तर प्रदेश सरकार की सराहना की। इसे बहुत हल्के में नहीं लिया जा सकता। कुछ लोग कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री विदेश जाएं या देश के किसी राज्य में, वहां के मुखिया को सम्मान देते ही हैं फिर इसमें नया क्या है? इसे समझने के लिए इस बात पर गौर करना होगा कि केंद्र सरकार की सभी योजनाओं को उत्तर प्रदेश में पुरजोर ढंग से क्रियान्वित कराने की हरसंभव कोशिश योगी सरकार ने की है। तभी तो प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि आपदा को अवसर के रूप में तब्दील करने के मामले में उत्तर प्रदेश देश के सभी राज्यों से आगे है। उन्होंने कहा कि विषम कोरोना काल में उन्होंने न केवल चिकित्सा सुविधा को चाक चौबंद रखा, बल्कि प्रवासी श्रमिकों के हितों की भी रक्षा की। उन्हें सुरक्षित घर पहुंचाने से लेकर उनके रोजगार तक की व्यवस्था की। दुनिया के सुपरपावर कहे जाने वाले देशों इंग्लैंड, फ्रांस, इटली और स्पेन की तुलना करते हुए कहा कि इनकी कुल आबादी उत्तर प्रदेश की आबादी 24 करोड़ से बहुत कम है। फिर भी वहां कोरोना संक्रमितों और उससे मरने वालों की संख्या उत्तर प्रदेश के कोरोना पीड़ितों और कोरोना से मरने वालों से कहीं ज्यादा है। उन्होंने इतना जरूर कहा कि कोरोना का इलाज जबतक मिल नहीं जाता तबतक दो गज दूरी के सिद्धांत को अपनाए रखने में ही हम सबका कल्याण है।

प्रधानमंत्री कोई बात कहें और राहुल गांधी मुद्दा न बनाएं, यह संभव नहीं है। उन्होंने कहा है कि देश में नए इलाकों में कोरोना तेजी से फैल रहा है लेकिन सरकार के पास इसे हराने का कोई प्लान नहीं हैं। प्रधानमंत्री खामोश हैं। उन्होंने सरेंडर कर दिया है और बीमारी से लड़ने से इनकार कर दिया है। चीन के मामले में दिए गए अपने बयान में प्रधानमंत्री को सरेंडर तो वे बहुत पहले ही करा चुके हैं। राहुल गांधी के पास एक मोर्चा तो है नहीं। संघर्ष के लिए एकाग्रता जरूरी होती है। राहुल को राजनीति करनी है, एकाग्रता का अभ्यास थोड़े करना है। सो कभी वे समस्या की इस डाल पर तो कभी समस्या की दूसरी डाल पर उछलकूद करते नजर आते हैं। उनके हिसाब से सरकार अगर लड़े तो वह हमेशा लड़ती ही रह जाएगी और एक भी समस्या की तह तक नहीं पहुंच पाएगी।

भारत एक अरब 38 करोड़ की आबादी वाला देश है। एक अरब 38 करोड़ समस्याओं को एक व्यक्ति एक साथ एक झटके में कैसे हल कर सकता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंसान हैं, भगवान नहीं। प्रधानमंत्री अगर यह कह रहे हैं कि सरकार का मार्गदर्शन भारत का संविधान करता है और इसलिए सरकार धर्म, लिंग, जाति, नस्ल या भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं करती है। हम 138 करोड़ भारतीयों को सशक्त बनाने की इच्छा से निर्देशित होते हैं और हमारा मार्गदर्शन भारत का संविधान करता है तो इसमें कदाचित कुछ गलत भी नहीं है। लेकिन, राहुल गांधी को इतनी सामान्य सी बात समझ में क्यों नहीं आती?

इसमें संदेह नहीं कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। एकदिन में सर्वाधिक 18,552 नए मामलों का सामने आना और 384 लोगों का मरना डराता है। हालात यह है कि भारत में कोरोना संक्रमितों की तादाद पांच लाख से अधिक हो गई। भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या भी बढ़कर 15,685 हो गई है। देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या एक लाख तक पहुंचने में 110 दिन लगे थे लेकिन 27 जून को पांच लाख का आंकड़ा छूने में मात्र 39 और दिन लगे। यह बेहद भयावह तस्वीर है।

सवाल यह है कि कोरोना के बढ़ते मामलों और उससे होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार कौन है? अकेले मोदी सरकार या कांग्रेस समेत अन्य विपक्ष भी। प्रधानमंत्री ने जब लॉकडाउन का निर्णय लिया था तब भी कांग्रेस उनके निर्णय की आलोचना कर रही थी। फिर प्रवासी मजदूरों के पलायन मामले में उसने केंद्र सरकार को घेरना आरंभ कर दिया। सरकार चाहती थी कि जो जहां है, वहीं रहे लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों में फैक्ट्रियों पर ताले जड़ दिए गए, मजदूरों को काम से निकाल दिया गया। उन्होंने जो काम किया था, उसका भुगतान तक नहीं किया गया। वर्ना वे पैदल चलने को विवश ही क्यों होते? जिस समय नरेंद्र मोदी ने देश भर में लॉकडाउन लागू किया तो राहुल गांधी में अल्बर्ट आइंसटीन की आत्मा आ गई थे। वे उन्हीं की भाषा बोलने लगे थे कि यह लॉकडाउन साबित करता है कि अज्ञानता से अधिक खतरनाक चीज केवल घमंड है। इससे पहले भी राहुल गांधी ने लॉकडाउन के बावजूद कोरोना संक्रमितों की बढ़ती संख्या को लेकर चार ग्राफ ट्वीट किए थे। इसमें उन्होंने यह बताने और जताने की कोशिश की थी कि देश में बार-बार लॉकडाउन लगाया जा रहा है लेकिन कुछ हासिल नहीं हो पा रहा है बल्कि कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा व कांग्रेस के लोग अगर वाकई सच समझ रहे होते तो उन्हें पता होता कि संक्रामक रोग भीड़ बढ़ने से फैलते हैं। प्रधानमंत्री ने लोगों को घर में रहते हुए एक-दूसरे से दूरी बनाए रखने की नसीहत दी थी तो इसमें उनकी दूरदृष्टि थी। कांग्रेस ने कोरोना से निपटने के कोई प्रयास किए होते तो बात समझ भी आती लेकिन वह कोरोना से लड़ रहे लोगों का मनोबल तोड़ने में ही अपनी 'शल्य' वीरता समझती रही। उसने प्रवासी मजदूरों को मदद पहुंचाने का प्रयास किया भी लेकिन उसमें भी उसने बसों की जगह ऑटो के नंबर यूपी सरकार को सौंप दिए। राजीव गांधी फाउंडेशन के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष से डोनेशन प्राप्त करने का मामला हो या फिर चीन से, कांग्रेस का चेहरा बेनकाब होने लगा है। जिस बीमारी से निपट पाने में दुनिया के समर्थ और शक्तिशाली देश भी परेशान हैं। जिस बीमारी के लक्षणों पर ही दुनिया के स्वास्थ्य वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं, जिसकी वैक्सीन या उचित दवा विकसित नहीं हो पाई है, उस बीमारी के इलाज से ज्यादा बचाव की जरूरत है। प्रधानमंत्री अगर इस रोग से बचकर रहने की बात कर रहे हैं तो इसमें आत्मसमर्पण जैसी बात कहां है? उत्तर प्रदेश में न केवल कोरोना महामारी से निपटने के प्रयास हो रहे हैं बल्कि गांवों में ही रोजगार सृजन के प्रयास आरंभ हो गए हैं।

अब पलायन गांव से शहर की ओर नहीं, शहर से गांव की ओर हो रहा है। गांव, ब्लॉक, तहसील और जिला स्तर पर उद्योग लगाने के ताने-बाने बुने जाने लगे हैं। आपदा आती ही इसलिए है कि उसका सामना किया जाए। यह पहली और आखिरी आपदा नहीं है। जब कोई नई बीमारी आती है तभी उसका इलाज ढूंढ़ा जाता है। इसमें समय लगता है। राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को हथेली पर सरसों उगाने की बजाए धैर्य का परिचय देना चाहिए। अगर आप कुछ कर सकते हैं तो सरकार को सुझाव दें कि आपके पास कोरोना से लड़ने का यह तरीका है और नहीं तो जो इसके लिए लड़ रहे हैं, उन कोरोना योद्धाओं का सम्मान बढ़ाएं। इसी में देश का कल्याण निहित है।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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