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जानलेवा सेल्फी

👤 mukesh | Updated on:6 July 2020 11:46 AM GMT

जानलेवा सेल्फी

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- योगेश कुमार सोनी

महाराष्ट्र के पालघर के ज्वाहर इलाके मांडवी में स्थित नदी में पिकनिक मनाने गए 5 लोगों की मौत हो गई। कुल 13 लोगों का समूह था जिसमें मरने वाले पांच युवा बेहद जोखिम वाली जगह पर जाकर सेल्फी ले रहे थे। बहुत देर न दिखने पर साथियों ने पुलिस को सूचना दी और फिर एनडीआरएफ की टीम बुलाकर उनको ढूंढा गया और सभी मृत पाए गए। हालांकि ऐसी खबरें अब बहुत आम हो चुकी हैं क्योंकि आजकल के युवा सेल्फी के इतने बड़े शौकीन हो चुके हैं कि वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं जिसकी वजह से वह अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं।

विगत दिनों आयी एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में जोखिम वाले स्थानों पर सेल्फी लेने के दौरान हुई से मौतों की संख्या सबसे ज्यादा 60 प्रतिशत भारत में है। यह आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला है। पूरे विश्व में आधे से भी अधिक ऐसे मामले हमारे देश में हो रहे हैं। सेल्फी शौक अब बीमारी का रूप ले रहा है। इससे ग्रस्त होने वाले वर्ग में सबसे ज्यादा युवा हैं। अलग व कुछ विचित्र करने की ख्वाहिश में ऐसी जगह या इस तरह सेल्फी लेने का प्रयास करते हैं, जिससे उनकी जान पर बन आती है। युवा वर्ग इस बात से बेखबर हैं कि यह उनके लिए तेज गति से बढ़ रही आदत अब बड़ी बीमारी बन चुकी है।

सेल्फी से जुड़ी नकारात्मक खबरें तो रोजाना आती रहती हैं बावजूद इसके हम ऐसी घटनाओं से सबक नहीं ले रहे। एक रिपोर्ट के मुताबिक पुरी दुनिया मे लगभग दस करोड़ सेल्फी प्रतिदिन ली जाती है। इस आंकड़े से यह तो पता चल रहा है कि सेल्फी के प्रति लोगों की कितनी दीवानगी है। गूगल सर्वे के दौरान यह पता चला है कि युवा वर्ग पूरे दिन में दस से ज्यादा घंटे अपने फोन के साथ ही बिताते हैं और कोरोना की वजह से यह समय और अधिक बढ़ गया। चूंकि आजकल लोग घर पर ज्यादा समय व्यतीत कर रहे हैं व इस दौरान एकदिन में सेल्फी शौकीन करीब पन्द्रह फोटो अपलोड कर रहे हैं। देश की जनसंख्या लगभग 137 करोड़ है, जिनमे से 122 करोड़ लोगों के पास मोबाइल फोन है।

सेल्फी के चक्कर में एक अजीब बीमारी का जन्म हुआ है और जिन अस्पतालों में ऐसे मरीजों का इलाज किया गया वे सब 'ओबेसिव कॉमपलूसिव डिसऑर्डर' से पीड़ित निकले। ऐसे मरीज सोशल मीडिया पर बार-बार अपनी सेल्फी अपलोड कर लाइक व कमेंट आने का इंतजार करते थे। ऐसा नहीं होने पर ये लोग निराश हो जाते थे। इसके बाद दोबारा फोटो अपलोड करते थे। यदि फिर लाइक या अच्छा कमेंट नहीं आया तो एक दिन में पचास से अधिक सेल्फी अपलोड करते थे, जिससे उन्हें इस बीमारी का सामना करना पड़ा। यदि सब ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं कि सेल्फी से होने वाली बीमारियों के लिए स्पेशल अस्पताल बनने लगेंगे। युवा वर्ग की दिशा व दशा एक अजीब स्थिति में जा रही है। सोशल मीडिया के इस युग के सकारात्मक पहलुओं को यदि गहनता से समझा जाए तो यह एक वरदान है लेकिन लोग इसके नकारात्मक पहलुओं से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।

युवा वर्ग फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम सहित अन्य सोशल माध्यम को केवल सेल्फी अपलोड करने का माध्यम समझते लगे हैं। इन्हें यह समझ आ जाए कि यदि इन माध्यमों का सही प्रयोग किया जाए तो कितना फायदेमंद साबित हो सकता है। चूंकि वे इस गहनता को समझने का प्रयास भी नहीं करते और न ही समझने को तैयार हो पाते है इसलिए ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। आखिर यह लोग कब समझेंगे कि जिंदगी अनमोल है, इसपर केवल उनका ही नहीं परिवार का भी हक है। इसका मायना या अर्थ स्वयं समझने की जरूरत है क्योंकि आपकी जिंदगी से आपका पूरा परिवार जुड़ा होता है। कम आयु में मरने से परिवार उम्र भर उस गम से उबर नहीं पाता। माता-पिता बच्चों की सभी खुशियां का ध्यान रखते हैं। मोबाइल को भी आपकी जरूरत का हिस्सा समझकर आपको दिलाते हैं लेकिन कई बार हम उसका सही प्रयोग से ज्यादा दुरुपयोग कर लेते हैं जिसका नतीजा घर में एक बड़ी अनहोनी से भुगतना पड़ता है।

सेल्फी लेना गलत या बुरी बात नहीं है लेकिन समय व स्थिति को देखकर ही चलें। ऐसी भी क्या जरूरत पड़ती है कि इसके लिए जान तक जोखिम में डाल दिया जाए या दिन में कई बार सेल्फी ली जाए। आजकल के युवा अलग-अलग अंदाज में सेल्फी लेकर अपने दोस्तों को प्रभावित करने के चक्कर में अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रहे हैं लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि ऐसा करने से उससे जुड़े हर इंसान को कितना बड़ा झटका लगता है। इसलिए इस शौक को शौक तक रहने दें, जीवन को दांव पर लगाने वाला स्टंड न बनाएं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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