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खराब हो रही दिल्ली की हवा

👤 mukesh | Updated on:17 Oct 2020 9:06 AM GMT

खराब हो रही दिल्ली की हवा

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- सियाराम पांडेय 'शांत'

हवा का खराब होना मुहावरा है लेकिन दिल्ली में एक यथार्थ है। हवा तो हवा है, बनती-बिगड़ती रहती है। कभी अनुकूल, कभी प्रतिकूल। बड़े बुजुर्गों ने भी कहा है कि आंधी आवै, बैठ गवांवै। आंधी कुछ समय की होती है लेकिन वायु प्रदूषण तो स्थायी समस्या है। इसमें तो सांस लेना भी मुश्किल है। सच्चाई यह है कि दिल्ली में हवा बेहद खराब हो गई है। वायु गुणवत्ता सूचकांक 365 से 400 के बीच हो गया है और इसी के साथ केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच राजनीतिक बहस भी शुरू हो गई है। दिल्ली सरकार ने राज्य में बढ़ते प्रदूषण के लिए समीपवर्ती राज्यों के किसानों को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है। जब भी दिल्ली में प्रदूषण बढ़ता है किसानों की पराली को खलनायक ठहराने का सिलसिला आरंभ हो जाता है।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण में पराली जलाने की भूमिका महज 4 प्रतिशत है, बाकी 96 प्रतिशत कारक स्थानीय हैं। उनका यह तर्क केजरीवाल को रास नहीं आया है। उन्होंने कहा है कि सच को नकारने से समस्या का समाधान नहीं होगा। इस मुद्दे पर राजनीति करने से बात नहीं बनेगी। ठोस प्रयास करने होंगे लेकिन ये ठोस प्रयास करेगा कौन। केजरीवाल को समझना होगा कि समस्या की वजह और उसका निदान दोनों समस्या के इर्द-गिर्द ही रहते हैं। 51-100 को संतोषजनक, 101-200 को मध्यम, 201-300 को सामान्य, 301-400 को बहुत खराब और 401-500 को गंभीर माना जाता है। हर जाड़े में दिल्ली में वायु प्रदूषण और स्मोक की समस्या सिर उठाती है। लोगों की सांसें फूलने लगती हैं। आंखें जलने लगती हैं। एलर्जी से उनका जीना मुश्किल हो जाता है। जबतक हालात काबू से बाहर नहीं होते, सरकार की कुम्भकर्णी निद्रा टूटती नहीं। बड़ा सवाल यह है कि जब सरकार वायु प्रदूषण के कारणों को ही नहीं जानना चाहती तो वह इस भयावह समस्या का समाधान क्या करेगी?

बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए दिल्ली-एनसीआर में जो ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) अब लागू किया गया है, उसे बहुत पहले लागू किया जाना चाहिए था। इस योजना के तहत अगले आदेश तक आवश्यक सेवाओं को छोड़कर डीजल-पेट्रोल जनरेटर पूरी सर्दी बंद रहेंगे। प्रदूषण का स्तर और बढ़ा तो दूसरी पाबंदियां भी लागू की जाएंगी। इन नियमों को लागू करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी ने भी कमर कस ली है। औचक निरीक्षण के लिए 50 टीमें गठित करने के साथ सभी सिविल एजेंसियों को निर्देश दिए हैं कि वह अपने-अपने क्षेत्रों में नियमों को पालन सुनिश्चित कराएं। बिजली कंपनियों को बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, हेल्थ केयर सेवा, दिल्ली मेट्रो, रेलवे, एलीवेटर समेत दूसरी आवश्यक सेवाओं को छूट दी गई है। केंद्रीय पयार्वरण मंत्री जावड़ेकर ने दिल्ली के लोगों से तंग गलियों और सड़कों पर वाहन लेकर जाने से बचने की अपील है और लोगों को नसीहत दी है कि कम दूरी के लिए वे या तो पैदल चलें या फिर साइकिल का इस्तेमाल करें। खुले में कूड़ा न फेकें और कूड़ा न जलायें। निर्माण कार्य में भी सभी दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए।

हालांकि पिछले कुछ वर्षों से बोर्ड के 50 दस्ते ठंड के मौसम में प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिल्ली-एनसीआर के शहरों का दौरा करते हैं। इस साल यह काम व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। ये दस्ते उत्तर प्रदेश के नोएडा, गाजियाबाद और मेरठ, हरियाणा के गुरुग्राम, फरीदाबाद, बल्लभगढ़, झज्जर, पानीपत और सोनीपत तथा राजस्थान के भिवाड़ी, अल्वर और भरतपुर जाएंगे। उक्त शहरों में जिन स्थानों पर प्रदूषण अधिक होगा, वहां प्रदूषण के लिए जिम्मेदार लोगों और संस्थाओं पर जुर्माना लगाएंगे। राज्य सरकारों को भी प्रदूषण कम करने की सलाह दी जायेगी। आम लोग भी 'सफर' ऐप के जरिये अपने आसपास प्रदूषण फैलाने वालों की शिकायत कर सकते हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राजधानी में प्रदूषण से लड़ने के लिए आज से 'लाल बत्ती जली, गड्डी बंद' अभियान की शुरुआत भी की है। उन्होंने वाहन चालकों से अपील की है कि सभी संकल्प लें कि रेडलाइट पर वे अपनी गाड़ी बंद करेंगे। यह एक अच्छी पहल है इससे प्रदूषण तो रुकेगा ही, डीजल और पेट्रोल की खपत भी घटेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने तीव्र प्रदूषण की जांच के लिए एनजीटी के आदेश से संबंधित उद्योगों और अधिकारियों द्वारा अनुपालन की मांग वाली याचिका पर केंद्र औद्योगिक इकाइयों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट द्वारा मध्य प्रदेश के सिंगरौली और उत्तर प्रदेश के सोनभद्र स्थित एनटीपीसी का प्रदूषण जांचने को कहा गया है। जाहिर तौर पर यह सब पर्यावरण के सेहत सुधारने के लिए है।

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने नाले के निर्माण में पर्यावरण मानकों के तहत काम न करने पर पीडब्ल्यूडी पर 20 लाख का जुर्माना लगाया है। उन्होंने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण को पत्र लिखकर राष्ट्रीय राजधानी के 300 किमी के दायरे में कोयले से बिजली उत्पादन करने वाली 11 बिजली उत्पादन कंपनियों पर रोक लगाने की मांग किए जाने की बात कही है। ये 11 कंपनियां सल्फर डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम करने हेतु फ्लू गैस निरगंधिकरण संतत्र लगाने के दो मौके चूक चुके हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उन्हें उत्सर्जन मानकों को पूरा करने के लिए दिसंबर 2017 की अवधि दी थी, फिर इस अवधि को बढ़ाकर 31 दिसंबर 2019 कर दी थी। इस अवधि को बीते भी 10 माह हो गए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हाल में ही इन बिजली उत्पादक संयंत्रों से कहा है कि 18 लाख प्रतिमाह जुर्माना देकर वे अपने कारखाने चला सकते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि बोर्ड को जनता के हितों से ज्यादा जुर्माना प्रिय है।

उत्तर प्रदेश में 1640, हरियाणा में 161 और राजस्थान में 164 ऐसे ईंट भट्ठे हैं जो प्रदूषण फैलाने के लिए खासे जिम्मेदार हैं। दिल्ली में ही कम कल कारखाने नहीं हैं। अस्पतालों के कचरे कहाँ किस तरह डंप हो रहे हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है। उद्योग-धंधे चलेंगे तो प्रदूषण भी होगा। कोरोना काल में जब दिल्ली बंद थी, पूरा देश लॉकडाउन में था, प्रदूषण स्वतः कम हो गया था। नदियों का जल साफ हो गया था। अभी कारोबार ठीक से शहरों में शुरू भी नहीं हुआ है। कड़ाके की ठंड भी नहीं पड़ी है, तब अचानक प्रदूषण का खतरनाक स्तर बताता है के सरकारें प्रदूषण को लेकर गंभीर नहीं हैं।दिल्ली में सम-विषम वाहनों के संचालन जैसे प्रयोग भी हो चुके हैं लेकिन उससे भी समस्याएं घटी नहीं है। वायु प्रदूषण से बचना तभी संभव है, जब लोग जागरूक हों। अन्यथा सरकार के प्रयोग सतह से ऊपर कभी नहीं उठ पाएंगे।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)

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