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काशी में देव दीपावलीः 84 घाट, 15 लाख दीप

👤 mukesh | Updated on:1 Dec 2020 7:15 AM GMT

काशी में देव दीपावलीः 84 घाट, 15 लाख दीप

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- सियाराम पांडेय 'शांत'

84 घाट, 15 लाख दीप और सौ टके की बात। बतौर प्रधानमंत्री अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 23वीं बार पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी में केवल देव दीपावली का ही दीप नहीं जलाया, उन्होंने विकास का भी दीप जलाया। आस्था का भी दीया जलाया। अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को उन्होंने जहां करोड़ों रुपये की विकास परियोजनाओं की सौगात दी, अपने विरोधियों पर जमकर हमला बोला।

काशी में देव दीपावली इस साल भी सोल्लास मनाई गई। काशी में गंगा के सभी 84 घाटों पर 15 लाख दीप जलाए गए। पहला दीप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलाया। यह पहला अवसर है जब देव दीपावली पर किसी प्रधानमंत्री ने शिरकत की है और इतनी बड़ी तादाद में दीपक जलाए गए हैं। काशीवासियों का संकल्प था कि वे इसबार अयोध्या से भी भव्य दीपावली का आयोजन करेंगे और ऐसा हुआ भी। यूं तो काशी में शताब्दियों से देव दीपावली मनाई जा रही है लेकिन पिछले कुछ सालों से खासकर योगी आदित्यनाथ के शासन में काशीवासी अभूतपूर्व उत्साह के साथ देव दीपावली मना रहे हैं। अयोध्या में लंका विजय के बाद वहां के लोगों ने स्वत: दीप जलाकर भगवान राम का स्वागत किया था लेकिन काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान की परंपरा स्वयं काशीपुराधिपति भगवान शिव के आदेश पर शुरू हुई।

काशी में देव दीपावली प्रतीक है त्रिपुरासुर पर भगवान शिव के विजय का। तैंतीस कोटि देवता आज काशी में आते हैं और भगवान शिव तथा मां गंगा की पूजा करते और दिवाली मनाते हैं। पुराणों में कथा आती है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण किया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। उसके बाद उन्होंने इस तिथि को प्रकाश उत्सव के रूप में मनाने की घोषणा की थी। यही वजह है कि हर वर्ष देवता गण काशी में आकर देव दीपावली मनाने लगे। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान करने से देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। गंगा या किसी पवित्र नदी के पास पूर्णिमा की रात्रि में दीप जलाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर जलाए गए दीपक के प्रकाश से प्राणी के भीतर छिपी तामसिक वृत्तियों का नाश होता है। इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है। ब्रह्माजी का अवतरण भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही हुआ था।

भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागरण से प्रसन्न होकर समस्त देवी-देवता ने पूर्णिमा को लक्ष्मी-नारायण की महाआरती की थी। वह दिन कार्तिक पूर्णिमा का ही था। कार्तिक माह भगवान कार्तिकेय द्वारा की गई साधना का माह है। ऐसा कहा गया है कि जो व्यक्ति कार्तिक मास में श्रीकेशव के निकट अखण्ड दीपदान करता है, वह दिव्य कान्ति से युक्त हो जाता है। जो लोग कार्तिक मास में श्रीहरि के मन्दिर में रखे दीपों को प्रज्वलित करते हैं, उन्हें नर्क नहीं भोगना पड़ता है। काशी और गंगा के तो दर्शन से ही मुक्ति मिल जाती है।

प्रधानमंत्री ने नये कृषि कानून को लेकर किसानों के बीच उपजी आशंकाओं के लिए विपक्ष को जिम्मेवार ठहराया। वहीं विपक्ष के छल और अपनी गंगाजल जैसी नीयत का इजहार कर उन्होंने भारतीय राजनीति में एक नई बहस का सूत्रपात भी किया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार गंगाजल जैसी पवित्र नीयत से काम कर रही है, जिसके बेहतर परिणाम आने शुरू हो गये हैं और किसी को भ्रम में पड़ने की जरूरत नहीं। वाराणसी संसदीय क्षेत्र के मिर्जामुराद के खजुरी में 2,447 करोड़ रुपये की हंडिया-राजातालाब राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों के साथ दशकों से छल किया जा रहा था। पिछली सरकारों के कार्यकाल में किसानों को तरह-तरह के धोखे दिये जा रहे थे। कभी फसलों के न्यूनतम मूल्य दिलाने के नाम पर तो कभी सिंचाई परियोजनाओं के नाम पर और कभी किसानों के बकाया ऋण माफ करने के नाम पर। इन सबका लाभ कभी किसानों को नहीं मिल पाता था। इसलिए उनकी स्थिति लगातार खराब होती चली गई। नये कानून से किसानों को लाभ मिलने शुरू हो गये हैं। आने वाले समय में देश के सभी छोटे-बड़े किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलेगा लेकिन जो लोग किसानों के साथ छल करते रहे, अब वे निरंतर भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं। जिससे सावधान रहने की जरूरत है।

नये कृषि कानूनों को लेकर किसानों को अगर कोई शंका है तो सरकार उसे लगातार दूर कर रही है तथा इस प्रकार के प्रयास आगे जारी रहेंगे। अपने 40 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री ने 26 मिनट तक किसानों के मुद्दे पर ही बात की। वाराणसी के दशहरी और लंगड़ा आम की तारीफ करना भी वे नहीं भूले। उन्होंने किसानों को लगे हाथों यह बताने की भी कोशिश की कि अगर वे पुराने सिस्टम से ही लेनदेन को ठीक समझते हैं तो उनपर भी कहीं कोई रोक नहीं लगी है। नया कानून उनके लिए फायदेमंद है। इसमें उन्हें और आजादी दी गई है।

उन्होंने यह भी बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पूर्व की सरकारों ने कितनी खरीदारी की और भाजपा सरकार ने कितनी खरीदारी की। यह भी समझाया कि अगर मंडियों को ही खत्म करना होता तो वे उन्हें इतना मजबूत क्यों बनाते। उनकी योजनाओं तो मंडियों को और अधिक अत्याधुनिक बनाने की है।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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