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संभाल कर रखनी होगी यह दोस्ती !

👤 mukesh | Updated on:28 March 2021 9:40 AM GMT

संभाल कर रखनी होगी यह दोस्ती !

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- डॉ. प्रभात ओझा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय बांग्लादेश यात्रा के कुछ पहले की तिथियों पर नजर डालें। अभी 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस परेड में नई दिल्ली के राजपथ पर बांग्लादेश की एक सैन्य टुकड़ी भी परेड करती हुई आगे बढ़ रही थी। इसे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों में नई शुरुआत माना गया। फिर नौ मार्च को भारत और बांग्लादेश के बीच बने मैत्री सेतु का उद्घाटन हुआ। पुल के शुरू होने से त्रिपुरा के सबरूम और बांग्लादेश के चिट्टागोंग बंदरगाह की दूरी सिर्फ़ 80 किलोमीटर रह जाएगी। निश्चित ही इस पुल के जरिए कारोबार और लोगों के आने-जाने में बहुत आसानी होगी।

ये दोनों दिन, दो पड़ोसी देशों के बीच मजबूत होते रिश्तों की बानगी हैं। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय बांग्लादेश यात्रा पूरी होने पर दोनों देशों की ओर से संयुक्त बयान में कहा गया है,''दोनों नेताओं ने अपने-अपने जल संसाधन मंत्रालयों को छह साझी नदियों- मानु, मुहुरी, खोवाई, गुमती, धार्ला और दूधकुमार के पानी के बंटवारे को लेकर अंतरिम समझौता प्रारूप को शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया।'' संयुक्त बयान में दोनों नेताओं ने शांत, स्थिर और अपराधमुक्त सीमा के लिए प्रभावी सीमा प्रबंधन के महत्व पर भी बल दिया।

पहले नदियों के जल बंटवारे का मसला लेते हैं। जिस फेनी नदी पर मैत्री सेतु बना है, उसके जल बंटवारे का मसला भी बांग्लादेश की ओर से लंबित है। मोदी की ताजा यात्रा के दौरान भारत ने बांग्लादेश से इस नदी के जल बंटवारे के लिए मसौदे को भी शीघ्र अंतिम रूप देने का अनुरोध किया है। साझा बयान में दोनों देशों ने अन्य छह नदियों के बारे में अंतरिम प्रस्ताव का जिक्र किया ही है। ऐसे में हम अन्य प्रमुख जल विवाद पर नजर दौड़ाएं। तत्‍कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और शेख हसीना ने 1996 में गंगा जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे। समझौते के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में फरक्‍का बांध में जनवरी से मई तक पानी का बहाव कम रहा करता है। तय हुआ कि पानी की उपलब्‍धता 75 हजार क्‍यूसेक से बढ़ने पर भारत 40 हजार क्‍यूसेक पानी अपने पास रख सकता है। यदि 70 हजार क्‍यूसेक से कम हो तो पानी दोनों देशों के बीच बांटा जाएगा। ऐसी स्थिति में 70 से 75 हजार क्‍यूसेक तक रहने पर बांग्‍लादेश को 35 हजार क्‍यूसेक पानी मिलेगा। बांग्‍लादेश में आमतौर पर इस समझौते का विरोध होता रहा है। संतोष की बात है कि लंबे समय तक शेख हसीना के पीएम रहने से समझौते की गंभीरता बनी हुई है। जब 2017 में हसीना भारत आई थीं, तब भी उन्‍होंने भारत के साथ कई समझौतों को बांग्‍लादेश के हित में बताया था।

भारत-बांग्लादेश के बीच सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल से होकर असम में ब्रह्मपुत्र नदी (बांग्लादेश में जमुना) में विलय होने वाली तीस्ता नदी का जल बंटवारा दोनों देश के बीच बड़ा विवाद है। तीस्ता नदी सिक्किम के लगभग पूरे मैदानी इलाके के साथ पश्चिम बंगाल के भी आधा दर्जन ज़िलों की जीवन रेखा की तरह है। साथ ही यह बांग्लादेश के लगभग 2 हजार,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भी कवर करती है। इसके पानी पर सितंबर 2011 में कोई समझौता हो पाता, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आपत्ति जताई। फिर इस समझौते को रद्द कर दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2015 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बांग्लादेश का दौरा किया। आज पांच वर्ष बाद भी तीस्ता जल विवाद सुलझ नहीं सका है। इस विवाद का भी शीघ्र समाधान दोनों देशों के लिए बेहतर होगा। वैसे भी नदियां दोनों के लिए बहुत मायने रखती हैं। बांग्लादेश में करीब 400 नदियां हैं। इनमें से 54 दोनों देशों के बीच बहती हैं। फिर 53 का तो सीधे दक्षिण की ओर बहाव है। स्वाभाविक है कि बांग्लादेश को लगे कि भारत इस भौगोलिक कारण से इन नदियों पर सर्वाधिकार रख सकता है। निश्चित ही जल बंटवारा दोनों के बीच संबंध सुधार में बड़ा मसला है।

ध्यान रहे कि बांग्लादेश के निर्माण के लिए पाकिस्तान से युद्ध में भारत ने भी सहयोग किया था। भारत ने तब बांग्लादेश राष्ट्र का समर्थन करते हुए अपनी शांति सेना भेजी थी। हाल के करीब एक दशक में दोनों देशों के बीच व्यापार में तेजी से वृद्धि हुई है। वर्ष 2018-19 में ही भारत से बांग्लादेश को 9.21 बिलियन डॉलर का निर्यात हुआ था। इसी तरह बांग्लादेश से भारत में 1.04 बिलियन डॉलर का आयात हुआ। दूसरी ओर चीन हमारे इस दूसरे पड़ोसी बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है। साल 2019 में ही दोनों के बीच लगभग 18 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। हालांकि यह व्यापार अधिकांशतः चीन के पक्ष में झुका है। फिर चीन ने बांग्लादेश को लगभग 30 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता देने का भी एलान किया है। इसके मुकाबले भारत ने बांग्लादेश को 10 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता दी है। इससे भारत की वित्तीय सहायता 30 बिलियन डॉलर पर पहुंच गई है। इस तरह तो भारत ने बांग्लादेश को सबसे अधिक सहायता दी है।

यह जरूर है कि हाल के दिनों में चीन के साथ बांग्लादेश के रक्षा संबंध मजबूत हुए हैं। चीन उसके लिए सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता देश है। हाल ही में बांग्लादेश ने चीन से दो पनडुब्बियां भी खरीदी हैं। इसपर भी गौर करना होगा कि बांग्लादेश की सैन्य जरूरतों में चीन और अधिक न बढ़ पाए। यह देखना होगा कि बांग्लादेश सीमा सुरक्षा और पूर्व तथा पूर्वोत्तर राज्यों में शांति व्यवस्था के मामले में भी भारत के लिए खास है। दोनों देशों की सीमाएं करीब 4 हजार,096 किलोमीटर लंबी हैं। दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया में आतंकवादी संगठनों का पैर पसारना भारत के लिए भी चिंता का विषय रहा है। दोनों देशों की सीमा से लगे इलाकों में इन संगठनों की दखल के संकेत मिले हैं। शेख हसीना सरकार ने काफी हद तक इन पर अंकुश लगाया है। यह स्थिति भारत के लिए भी मुफीद हो सकती है।

जल विवाद का निराकरण, सीमाओं पर आतंकी हलचल पर नियंत्रण के साथ दोनों देशों के बीच व्यापार और सामरिक रिश्तों का मजबूत होना बहुत जरूरी है। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि इन दोनों देशों के बीच रिश्ते भावनात्मक भी हैं। बांग्लादेश की आजादी के अभी 50 साल ही हुए हैं। वहां के लोगों के जेहन में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में भारत का योगदान आज भी बना हुआ है। यही कारण है कि भारत में नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद बांग्लादेश में आयी हलकी तलखी अब दूर भी होने लगी है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान इस पर हलके-फुलके विरोध के सिवा सर्वव्यापी स्वागत ही हुआ। गौर करने पर देखते हैं कि कोराना काल में भी भारत ने बांग्लादेश के साथ पर्दे के पीछे से कूटनीतिक संबंध बेहतर करने के प्रयास शुरू कर दिए थे। बांग्लादेश की तटीय सीमा के मुद्दे पर जब इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने बांग्लादेश के पक्ष में फैसला सुनाया, तो भारत ने उस पर सब्र से काम लेते हुए फैसले का स्वागत किया। अब बांग्लादेश की आजादी की 50 वीं वर्षगांठ और उसके राष्ट्रनायक बंगबंधु मुजीबुर्रहमान की जन्मशताब्दी पर समारोह में भारतीय प्रधानमंत्री का शामिल होना पूरी दुनिया के लिए अलग तरह का संदेश है।

पीएम की यात्रा में दोनों देशों ने संपर्क, वाणिज्य, सूचना प्रौद्योगिकी और खेल जैसे क्षेत्रों में पांच समझौते किए। ये समझौते हमारी विकास साझेदारी को मजबूत करेंगे। इससे दोनों देशों के बीच रिश्तों को और अधिक मजबूती मिलेगी। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने भरोसा दिया है कि भारत की कीमत पर उनका देश किसी और से दोस्ती को बढ़ावा नहीं देगा। सही मायनों में बांग्लादेश के साथ भारत को भी यह रिश्ता संभालकर रखना होगा।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के न्यूज एडिटर हैं।)

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