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प्रियंका वाड्रा मुस्लिमों के बीच हो रहीं लोकप्रिय, अखिलेश के लिए नुकसानदेह

👤 mukesh | Updated on:14 Jan 2022 7:10 PM GMT

प्रियंका वाड्रा मुस्लिमों के बीच हो रहीं लोकप्रिय, अखिलेश के लिए नुकसानदेह

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- उमेश चतुर्वेदी

हाल के दिनों में लगातार तीन बार कांग्रेस के लिए संकट मोचक की भूमिका निभा चुकीं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी पर उत्तर प्रदेश के कांग्रेसियों का भरोसा बढ़ता जा रहा है। उन्हें लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों में वे पार्टी को कम से कम ऐसी स्थिति में लाने में जरूर कामयाब होंगी, जिसे सम्मानजनक कहा जा सके। पार्टी के एक पूर्व महासचिव कहते हैं कि प्रियंका समझदार हैं। उन्होंने जिस तरह पहले राजस्थान, फिर पंजाब और अब उत्तराखंड में रणनीतिक कौशल का परिचय दिया है, उससे लगता है कि वे राजनीति और जमीनी हकीकत को तो समझती ही हैं, बल्कि पार्टी नेताओं के मानस को भी समझती हैं।

हालांकि सवाल यह है कि क्या अपने रूठे नेताओं को मना लेना वोट हासिल करने की भी गारंटी हो सकता है? सामान्यतया ऐसी तुलना अटपटा लग सकती है, लेकिन कांग्रेस के नेता मानते हैं कि प्रियंका में इतनी समझ है कि वे वोटरों को भी लुभा सकती हैं। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नेता इसे दूर की कौड़ी बता रहे हैं।

हाल ही में उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने एक तरह से बागी रुख अख्तियार कर लिया था। उन्होंने ट्वीटर के जरिए ना सिर्फ अपनी व्यथा जाहिर की थी, बल्कि उन्होंने एक तरह से बागी रुख अख्तियार कर लिया था...अपने ट्वीट में रावत ने लिखा था, "है न अजीब सी बात, चुनाव रूपी समुद्र को तैरना है, सहयोग के लिए संगठन का ढांचा अधिकांश स्थानों पर सहयोग का हाथ आगे बढ़ाने की बजाय या तो मुंह फेर करके खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। जिस समुद्र में तैरना है, सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं। जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे मेरे हाथ-पांव बांध रहे हैं। मन में बहुत बार विचार आ रहा है कि हरीश रावत अब बहुत हो गया, बहुत तैर लिये, अब विश्राम का समय है!"

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। ऐसे मौके पर हरीश रावत की बगावत पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती थी। बेशक रावत मान गए हैं, लेकिन यह भी तय है कि उनके मानने के बावजूद पार्टी के ही कई जानकार मानते हैं कि कांग्रेस को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। बहरहाल जैसे ही रावत बागी हुए, प्रियंका सक्रिय हुईं। रावत को दिल्ली बुलाया और उनकी बातें सुनीं। इसके बाद रावत ने ट्वीट करके खुद कहा कि 'हरदा' मान जाएगा। हरीश रावत को प्यार से उत्तराखंड में हरदा कहा जाता है। साफ है कि प्रियंका के हस्तक्षेप से उत्तराखंड कांग्रेस की यह बगावत थम गई है।

इसके पहले पंजबा कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया था। वे पंजाब के हालिया नियुक्त मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की कार्यशैली और कुछ फैसलों से नाराज थे। सितंबर में जब नवजोत सिंह सिद्धू ने इस्तीफा दिया था तो माना गया था कि वे नए मुख्यमंत्री द्वारा उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा को गृह विभाग आवंटित किए जाने, नए कार्यवाहक पुलिस प्रमुख और राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति से नाराज थे। उनकी भी नाराजगी प्रियंका ने दूर की और वे अपना इस्तीफा वापस लेने को राजी हुए। करीब डेढ़ साल पहले जुलाई 2020 में राजस्थान में सचिन पायलट ने तकरीबन बगावत कर दी थी। उस वक्त भी प्रियंका ने ही कमान अपने हाथ में ली थी और उन्हें भी मना लिया था। ऐसा माना जा रहा है कि प्रियंका की बात पर कांग्रेस क्षत्रप भरोसा करते हैं, इसीलिए उनकी बात मानने से उन्हें परहेज नहीं रहता।

प्रियंका की इसी शैली के चलते उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी भी आशान्वित हैं। उन्हें लगता है कि प्रियंका की मौजूदा स्वीकार्यता उत्तर प्रदेश को वोटरों को भी लुभाएगी। उत्तर प्रदेश के एक कांग्रेसी नेता कहते हैं कि इसी स्वीकार्यता को वे राज्य के चुनावों में भुनाने का प्रयास करेंगे। लेकिन प्रियंका का एक संकट यह है कि उनके जो सलाहकार हैं, पूरी लड़ाई को फोकस नैरेटिव की बुनियाद पर ही कर रहे हैं। नैरेटिव की लड़ाई में संदेश यह जा रहा है कि कांग्रेस अपनी पुरानी शैली में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण ही ओर बढ़ रही है। यह सच है कि अल्पसंख्यकों के एक हिस्से में प्रियंका की भी स्वीकार्यता बढ़ी है। यह अखिलेश के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। क्योंकि हाल के कुछ वर्षों में माना जा रहा है कि राज्य के करीब 18 फीसद मुस्लिम मतदाताओं का वोट थोक में समाजवादी पार्टी को ही मिलता है। जाहिर है कि प्रियंका की अल्पसंख्यक समुदाय में जितनी स्वीकार्यता बढ़ेगी, अल्पसंख्यकों के एक हिस्से की जैसे-जैसे वह चहेती बनेंगी, समाजवादी पार्टी के लिए स्थिति ठीक नहीं होगी। यही वजह है कि मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए हाथ आया कोई मौका अखिलेश भी नहीं छोड़ रहे, बल्कि वे जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों के असल अलंबरदार वे ही हैं। इस लिहाज से देखें तो उत्तर प्रदेश में प्रियंका की असली लड़ाई भारतीय जनता पार्टी की बजाय अखिलेश से दिख रही है। यह बात और है कि उनके सलाहकार शायद ही इस तथ्य को स्वीकार कर पाएं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तम्भकार हैं)

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