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लोगों ने सामूहिक खेती और व्यवसाय से बदल दी गांव की तस्वीर

👤 mukesh | Updated on:5 Aug 2022 7:33 PM GMT

लोगों ने सामूहिक खेती और व्यवसाय से बदल दी गांव की तस्वीर

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- अनिल

लगभग 15-20 वर्षों तक नक्सलवाद की जद में रहा तोरपा प्रखंड के गुम्पिला गांव के लोग काफी लंबे अरसे से गरीबी, बेरेजगारी, बिजली पानी, सड़क, चिकित्सा, सिंचाई जैसी बुनियाद समस्याओं से झेल रहे हैं लेकिन अब इन समस्याओं से उबरने की राह गांव वालों ने स्वयं ढूंढ ली है।

ग्रामसभा के माध्यम से आय वृद्धि कर छोटी-मोटी समस्याओं के समाधान का रास्ता ग्रामीणों ने ढूंढ निकाला है। इस कार्य को आदिवासी और सदान दोनों वर्ग के लोग मिलजुल कर करते हैं। गांव में पांच एकड़ सामूहिक जमीन वर्षों से बेकार पड़ी थी। इसके आसपास लाह के पोषक पेड़ (बेर और कुसुम) बहुतायत में हैं। ग्रामसभा में निर्णय लेकर बेकार पड़ी जमीन पर सामूहिक खेती करने और पेड़ों पर लाह लगाने का निर्णय लिया गया। पिछले तीन साल से गांव के लोग मिलजुल कर खेती कर रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि पहाड़ जैसा काम हंसते-हंसते हो जाता है। उत्पादों को बाजार में बेचकर डेढ़ लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है।

एक रुपये सैकड़ा ब्याज पर दिया जाता है ऋण

खेती से मिलने वाली राशि पर ग्रामसभा का नियंत्रण होता है। यह पैसा गांव के लोगों को शादी-विवाह, बीमारी, पढ़ाई-लिखाई के लिए आवश्यकता पड़ने पर तीन से छह महीने के लिए ऋण के रूप में दिया जाता है। ब्याज प्रति सैकड़ा एक रुपये निर्धारित है। इस पूरी व्यवस्था का संचालन ग्रामसभा, गुम्पिला के माध्यम से किया जाता है। लिखा-पढ़ी, लेन-देन समेत संपूर्ण हिसाब-किताब ग्राम प्रधान हेरमन मुंडा, सचिव रंथू महतो और खजांची अविनाश लोंगा संभालते हैं। पिछले तीन वर्षों से इस व्यवस्था का संचालन सफलतापूर्वक ग्रामसभा कर रही है।

बढ़ रही है गांव की सामूहिक संपत्ति

ग्रामसभा सामूहिक खेती से होने वाली आय से ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से टेंट हाउस खोला। अब तक टेबल, बेंच, कुर्सी, डेग, बर्तन आदि खरीदे जा चुके हैं। ये सामान गांव के लोगों को काफी कम भाड़ा लेकर दिया जाता है। अब गांव के लोग शादी-विवाह और अन्य कार्यक्रमों में गांव से ही सारे सामान लेते हैं, जिसका भाड़ा बाजार से काफी कम होता है। इन पैसों को गांव के छोटे-मोटे विकास कार्य जैसे चापानल मरम्मत, सोलर जलमीनार की मरम्मत आदि में खर्च किया जाता है। सामूहिक प्रयास से गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति धीरे-धीर मजबूत होती जा रही है और ग्रामीणों में सहयोग की भावना भी बढ़ रही है।

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