Home » पंजाब » इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम भारत में काम न करने का दूसरा कारण बना : एचसीएफआई

इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम भारत में काम न करने का दूसरा कारण बना : एचसीएफआई

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:5 May 2018 2:07 PM GMT
Share Post

चंडीगढ़, (सुनीता शास्त्राr)। पमुख नेशनल हैल्थ एनजीओ, एचसीएफआई द्वारा किये गये एक अध्ययन में खुलासा किया गया है कि लगभग 5 से 10 पतिशत आबादी में इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम (आईबीएस) के लक्षण मौजूद होते हैं, हालांकि, उनमें से अधिकांश लोग इसका इलाज नहीं कराते हैं। अध्ययन का उद्देश्य चिकित्सक और रोगी के दृष्टिकोण से आईबीएस का विश्लेषण करना था, ताकि रोजमर्रा के जीवन पर पभाव, पहचान की दर और उपचार के विकल्पों पर इसके पभाव को जाना जा सके। यह जानना दिलचस्प होगा कि हालांकि 84.6 पतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि पेट के दर्द या आईबीएस के अन्य लक्षणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन इनमें से 58 पतिशत राहत के लिए बाजार से दवा ले लेते हैं और डॉक्टर को नहीं दिखाते हैं।एक विपरीत परिणाम यह था कि लगभग 13.3 पतिशत चिकित्सकों ने कहा कि वे अपने मरीजों को पिपरमिंट ऑयल लिखते हैं। गैस्ट्रोएन्टरेलॉजिस्ट, सीनियर सलाहकार और हेड डिपार्टमेंट ऑफ गैस्ट्रोएन्टरेलॉजी और हैप्sटोलॉजिए, श्री बालाजी हॉस्पिटल, कांगड़ा के डॉ. राजीव डोगरा ने कहा कि इन दिनों अधिकांश आबादी में आईबीएस की समस्या आम हो गयी है। जबकि काम के सिलसिले में लगातार यात्राएं, बैठे रहने वाली जीवन शैली और बाहर का खाना खाने से यह कंडीशन उत्पन्न होती है, लेकिन सिर्प ये ही कारण जिम्मेदार नहीं होते हैं। आईबीएस पेट में इन्फेक्शन और तनाव के कारण भी ट्रिगर हो सकता है। इस बीमारी को पकड़ना मुश्किल इसलिए हो जाता है, आईबीएस का सबसे सामान्य लक्षण है- मलत्याग की आदतों में परिवर्तन के साथ पेट में दर्द। पेट में दर्द मरोड़ के साथ उठता है और इसकी तीव्रता भिन्न होती है। कुछ लोगों का कहना है कि कि भावनात्मक तनाव और खाने में गड़बड़ी से दर्द बढ़ सकता है, और मलत्याग करने से दर्द में राहत मिलती है। महिलाएं पेट के दर्द और मासिक धर्म के बीच संबंध नोटिस कर सकती हैं।

Share it
Top