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डाइबिटीज व बीपी से किडनी हो रही है फेल, हर साल हो रही हैं 6 लाख मौतें

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:6 May 2018 2:33 PM GMT
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लुधियाना-(राजकुमार)। महामारी का रूप धारण कर चुकी डाइबिटीज और ब्लड पेशर की बीमारी किडनी फेलियर का कारण बन रही है। इसकी वजह से देश में हर साल 6 लाख लोग किडनी फेल होने की वजह से मर रहे हैं। ऐसे केवल 10 फीसदी लोगों को सही इलाज मिल पा रहा है। हर साल 6 हजार लोगों को ही किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा मिल पाती है जबकि 60 हजार लोग डायलसिस पर जी रहे हैं। एसपीएस हॉस्पिटल में हेमोडायलसिस कोर्स पर अपडेट करने के लिए उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से पहुंचे सौ से अधिक टेक्निशियनों को नेफोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट व को-आर्डिनेटर डॉ. राहुल कोहली ने यह जानकारी दी।

सीनियर कंसल्टेंट डॉ. बख्शीश सिंह ने कहा कि सभी जिला अस्पतालों व छोटे शहरों में भी भले ही डायलसिस की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन क्वालिटी विकसित करने पर जोर देना जरूरी है।
आज की इस सीएमई का मकसद रेनल रिप्लेसमेंट थैरेपी (सीआरटी) में हो रही अपडेशन की जानकारी देना है। क्योंकि मेडिकल स्पेशलिस्टों के मुताबिक पिछले एक दशक में डाइबिटीज व ब्लड पेशर महामारी के रूप में बढक्व रहा है। जिसकी वजह से कोनिक
किडनी डिजीज (सीकेडी) भी बढक्व रहे हैं।
इंडियन कारूंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक देश के रुरल एरिया में 7.5 फीसदी और शहरी हिस्सों में 28 फीसदी तक डाइबिटीज के मरीज बढक्व रहे हैं। इससे सीकेडी में ढाई से लेकर 13 पतिशत की बढक्वौत्तरी हो रही है।
चिंता की बात यह है कि डाइबिटीज की चपेट में आने वाले लोगों की उम्र 20 से 40 साल के भीतर है और इसी उम्र में किडनी की समस्या भी होने लगी है। हालांकि सभी जिला हॉस्पिटलों में डायलसिस की सुविधा मौजूद है, लेकिन जागरुकता के अभाव में लोग इसका फायदा नहीं उठा पाते। किडनी फेलियर की परेशानी झेल रहे अधिकतर मरीज डॉक्टरों की ओर से रिक्मेंड की गई थैरेपी आर्थिक तंगी के कारण नहीं ले पाते। उन्होंने बताया कि पश्चिमी देशों में लोग हफ्ते में 3 बार हेमोडायलसिस की सुविधा लेकर ही 15 से 20 साल तक का जीवन जी लेते हैं। आज की सीएमई का मकसद डायलसिस टेक्निशियनों को इस संबंध में अपडेट करना है।

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