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किसानों को जैविक खेती की ओर लौटना आवश्यक- प्रभुलाल सैनी

👤 admin 4 | Updated on:23 Jun 2017 3:28 PM GMT
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वीर अर्जुन संवाददाता

जयपुर। ''भारत देश कीं 1960 से पूर्व जैविक खेती के मामले में पूरी दुनिया में पहचान थी। इसके बाद से हरित क्रांति के दौर में खाद्यान्न की पूर्ति हेतु रासायनिकयुक्त खेती को बढ़ावा दिया गया जिससे कि खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाया जा सका। देश के खाद्यान्न की मात्रा में वृद्धि तो हुई, लेकिन इसके दुष्परिणाम आज हमें प्रत्यक्ष में दिखाई दे रहे हैं।

इन दुष्परिणामों को रोकने के लिए हमें वापस जैविक खेती की ओर बढऩा होगा।'' उक्त विचार श्री प्रभुलाल सैनी, कृषि मंत्री, राजस्थान ने 'कट्स' द्वारा राजस्थान में जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु परियोजना 'प्रोओर्गेनिक- प्प्' के शुभारम्भ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त कियें।

मंत्री ने प्रतिभागियों को बताया कि राजस्थान सरकार भी जैविक खेती केा बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में डूंगरपुर जिले को पूर्ण जैविक जिला घोषित किया गया है। इसके साथ ही, भारत सरकार से संचालित परम्परागत कृषि विकास योजना को भी राजस्थान के विभिन्न जिलों में क्रियान्वित की जा रही है। इस योजना के तहत जैविक खेती करने वाले किसानो ंको भी प्रोत्साहित भी किया जाएगा।इस अवसर पर राजस्थान विधानसभा के उपाध्यक्ष श्री राव राजेन्द्र सिंह ने गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में अपने सम्बोधन मे ंकहा कि जैविक खेती को प्रोत्साहित करने का विचार सराहनीय हैैं। जैविक खेती के माध्यम से किसान की आय में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सिक्किम राज्य का क्षेत्रफल राजस्थान के पश्चिम भाग जितना ही है। इस रेगिस्तान वाले क्षेत्र को भी राजस्थान सरकार सम्पूर्ण जैविक खेती क्षेत्र कर सकती है। चूंकि इस क्षेत्र में अब बाड़मेर तक इंदिरा गांधी नहर का पानी आ चुका है, किसानों को जैविक खेती के लिए अनुदान भी दिया जा सकता है। श्री विकास सीताराम भाले, आयुक्त, कृषि विभाग ने अपने विशिष्ट सम्बोधन में कहा कि देश में यूरिया खाद व कीटनाशक का अत्यधिक इस्तेमाल हो रहा है, इससे कृषि में उत्पादकता तो बढ़ रही है, लेकिन यह सतत् विकास में योगदान नहीं दे रहा है। जैविक खेती को बढ़ाने के लिए किसानों को जगरूक करने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी जागरूक करना होगा। क्योंकि मांग नहीं बढ़ेगी तो उत्पादन भी नहीं होगा। डॉ. शीतल प्रसाद शर्मा, निदेशक, स्टेट इन्स्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर मैनेजमेंट ने कहा कि कृषि उत्पाद का घरेलू प्रमाणीकरण को सुधारने की जरूरत है। डॉ. हेमा यादव, निदेशक, नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर मैनेजमेंट ने कहा कि जैविक उत्पादों को बाजार तक कैसे पहुंचाया जाए और कैसे किसानों को अधिक मुनाफा दिलाया जाए पर ध्यान देने की जरूरत है।

प्रारम्भिक सम्बोधन में जॉर्ज चेरियन, निदेशक, 'कट्स' ने जैविक खेती की भौगोलिक स्थिति के बारे में अवगत कराया। चेरियन ने जैविक खेती के आंकड़ों का वर्णन करते हुए देश व विदेश स्तर पर तथ्य प्रस्तुत किए तथा बताया कि आज जैविक खेती के प्रति इतनी आवाज उठने के बावजूद भी मात्र 0.4 प्रतिशत भूमि ही जैविक खेती के उपयोग में काम आ रही है। इस परियोजना के माध्यम से सतत् विकास को बढ़ाया जायेगा।

राजदीप पारीक, परियोजना अधिकारी ने परियोजना की आगामी गतिविधियों के बारे में प्रस्तुतिकरण के द्वारा विस्तार से अवगत कराया। दीपक सक्सेना, सहायक निदेशक ने अपने स्वागत सम्बोधन में सतत् विकास व जीवनशैली को जोड़ते हुए परियोजना का संक्षिप्त परिचय दिया। डॉ. कनिका वर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, होम साइंस डिपार्टमेंट, राजस्थान विश्वविद्यालय ने कहा कि जैविक खाद्यान्न उत्पादों से पोषण तत्व अधिक मात्रा में भोजन के रूप में लिये जा सकते हैं। इसके लिए किसानों के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी जागरूक करने की जरूरत है।

श्री पी.एल. पटेल, वागधारा संस्था, बांसवाड़ा ने आदिवासी क्षेत्रों में रासायनिक खाद व कीटनाशकों का उपयोग तो कम हो रहा है। आदिवासी क्षेत्रों में सामुदायिक जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। उक्त बैठक में जिले में जैविक खेती पर सराहनीय कार्य करने वाले किसान, स्वयं सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, विश्वविद्यालय के शोध प्रतिनिधि सहित सौ से अधिक भागीदारों ने सक्रिय भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान कृषि मंत्री द्वारा परियोजना के ब्रोशन का अनावारण किया गया तथा वर्ष
2016 के लिए श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए चैतन्य कुमार मीणा को 'ग्राम गदर ग्रामीण पत्रकारिता' पुरस्कार भी प्रदान किया गया।

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