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अयोध्या में स्थापित होगी चेतक पर आरूढ़ महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा

👤 manish kumar | Updated on:13 Jun 2021 6:55 AM GMT

अयोध्या में स्थापित होगी चेतक पर आरूढ़ महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा

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जयपुर। उत्तर प्रदेश में भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण भी हो रहा है। राष्ट्र स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप की प्रतिमा अयोध्या सर्किट में लगने के लिए रविवार को जयपुर से रवाना होगी। मेवाड़ भूमि पर अकबर के साथ लड़ाइयां लड़कर इतिहास में नाम दर्ज करवाने के लिए महाराणा प्रताप की चेतक पर सवार हल्दीघाटी युद्ध के मैदान में दुश्मनों से लड़ते हुए 1500 किलो वजनी कांस्य की प्रतिमा अयोध्या में स्थापित की जाएगी। प्रतिमा का निर्माण जयपुर के कारीगरों ने किया है।

उल्लेखनीय है कि मेवाड़ की शान महाराणा प्रताप की जीवनी पूरे विश्व के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने मेवाड़ भूमि की आन-बान व शान बचाने के लिए अपनी तलवार के जरिए संघर्ष किया। ऐसे वीर योद्धा महाराणा प्रताप की विशालकाय प्रतिमा देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में स्थापित होगी।

प्रतिमा को जयपुर के शिल्पकारों ने बड़ी बारीकी से तैयार किया है। प्रतिमा की खासियत यह है कि यह चेतक पर बैठे महाराणा प्रताप की अबतक बनी प्रतिमाओं से कुछ अलग है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रतिमा का अनावरण करेंगे।

महाराणा प्रताप की विशालकाय प्रतिमा का शिल्पकार महावीर भारती की देख-रेख में जयपुर में हुआ है। इसकी ऊंचाई 12 फीट है जोकि कांस्य से बनाई गई है। इसमें उनके कद के अनुरूप उन्हें विशालकाय बनाया गया है जिसमें उनका तेज, रौबीला चेहरा, चौड़ा सीना, मजबूत बाजू और योद्धा की पोशाक में उन्हें चेतक पर सवार किया गया है। प्रतिमा का वजन 1,500 किलो है और इसे बनाने में 6 माह का वक्त लगा है।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के जयपुर के प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेन्द्र कुमार रविवार को पुष्पांजलि अर्पित कर प्रतिमा को उत्तर प्रदेश के लिए रवाना करेंगे।

उल्लेखनीय है कि महाराणा प्रताप का जन्म सोलहवीं शताब्दी में राजस्थान में हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनका जन्म 09 मई 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ था। इस दिन ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी, इसलिए हिंदी पंचांग के अनुसार महाराणा प्रताप जयंती 13 जून को मनाई जाएगी। महाराणा प्रताप ने कई बार अकबर के साथ लड़ाई लड़ी। उन्हें महल छोड़कर जंगलों में रहना पड़ा। उनका पूरा जीवन संघर्ष में ही कट गया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।


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