मथुरा का है बड़ा महत्व, यहाँ आकर श्रीहरि के दर्शन का फल मिलता है
आदियुग में भगवान वराह ने महासागर के जल में, जहां बड़ी उंची लहरें उठ रही थीं, डूबी हुई पृथ्वी को जैसे हाथी सूंड से कमल को उठा ले, उसी प्रकार स्वयं अपनी दाढ़ से उठाकर जब जल के ऊपर स्थापित किया, तब मथुरा के माहात्म्य को इस प्रकार वर्णन किया था− यदि मनुष्य मथुरा का नाम ले ले तो उसे भगवन्नामोच्चारण का फल मिलता है। यदि वह मथुरा का नाम सुन ले तो श्रीकृष्ण के कथा श्रवण का फल पाता है। मथुरा का स्पर्श प्राप्त करके मनुष्य साधु संतों के स्पर्श का फल पाता है। मथुरा में रहकर किसी भी गंध को ग्रहण करने वाला मानव भगवच्चरणों पर चढ़ी हुई तुलसी के पत्र की सुगंध लेने का फल प्राप्त करता है। मथुरा का दर्शन करने वाला मानव श्रीहरि के दर्शन का फल पाता है। स्वतः किया हुआ आहार भी यहां भगवान लक्ष्मीपति के नैवेद्य− प्रसाद भक्षण का फल देता है। दोनों बांहों से वहां कोई भी कार्य करके श्रीहरि की सेवा करने का फल पाता है और वहां घूमने फिरने वाला भी पग−पग पर तीर्थयात्रा के फल का भागी होता है।