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रतलाम के महालक्ष्मी मंदिर में 100 करोड़ का श्रृृंगार
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रतलाम। जेवर, नगदी, जवाहरात से श्रृृंगार के लिए देशभर में प्रसिद्ध महालक्ष्मी मंदिर पर दीप पर्व की शुरुआत के साथ ही दर्शन के लिए भीड़ जुटी। धनतेरस पर मंगलवार को रात तक लंबी कतारें लगी रहीं। करीब 30 हजार श्रद्धालुओं ने मंदिर के वैभव को निहारा और वर्ष भर समृृद्धि के लिए कुबेर पोटली लेकर मंगल कामना की।
इस बार करीब 100 करोड़ के जेवर, नगदी, जवाहरात से मंदिर में सजावट की गई है। गत वर्ष भी यही स्थिति थी। रतलाम के माणकचौक स्थित महालक्ष्मी मंदिर पर धनतेरस से भाईदूज तक आकर्षक सजावट के साथ ही रुपए, जेवर से श्रृृंगार किया जाता है।
ये सभी चीजें भक्त ही मंदिर में पुजारी को जमा कराते हैं और भाईदूज को ले जाते हैं। मान्यता है कि इससे वर्ष भर समृृद्धि बनी रहती है। मंदिर से श्रीयंत्र, सिक्का, कौड़ियां, अक्षत, कंकूयुक्त कुबेर पोटली सिर्फ महिलाओं को दी जाती है। इसके चलते सुबह पट खुलने के साथ ही महिलाओं की भीड़ उमड़ी।
रियासतकाल से चली आ रही परंपरा
महालक्ष्मी मंदिर का ज्ञात इतिहास महाराजा लोकेंद्र सिंह (3 फरवरी 1947 के बाद) के समय का है। पहले यहां एक मूर्ति थी। बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया। बताया जाता है कि लोकेंद्र सिंह के पूर्वजों के समय से ही यह परंपरा चली आ रही है। राजा अपनी समृृद्धि बनाए रखने के लिए विशेष पर्व पर मंदिर में धन आदि चढ़ाते थे।
आजादी के बाद आम श्रद्धालु भी मंदिर में आभूषण आदि रखने लगे। श्रद्धालुओं के अनुसार यहां नकदी-आभूषण चढ़ाने से साल भर बरकत बनी रहती है। श्रद्धालुओं द्वारा दी जाने वाली रकम की पूरी जानकारी मंदिर के एक रजिस्टर में उसके नाम के साथ दर्ज की जाती है। श्रद्धालु के नाम के साथ टोकन नंबर भी लिखा जाता है। फिर उसी नंबर का टोकन श्रद्धालु को दिया जाता है। पर्व बीतने के बाद मंदिर में संबंधित टोकन जमा कराने पर श्रद्धालु को रकम आदि लौटा दी जाती है।
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