पितृपक्ष -श्राद्ध है पितरों की मुक्ति का मार्ग
मेरठ । पितृपक्ष का समय अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने का उत्तम समय होता है। पितरों को प्रसन्न करने से देवता भी प्रसन्न होते हैं। कहा जाता है कि पितृपक्ष में जो भी अर्पण किया जाता है वह पितरों को ही मिलता है। इससे पितर खुशी से आशीर्वाद देते हैं।
औघड़नाथ मंदिर के पुजारी त्रिपाठी ने बताया कि जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करते उन्हें पितृदोष लगता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में रुकावटें, घर में कलह का वातावरण उत्पन्न हो जाता है। इसलिए पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध या पूजा करना आवश्यक है।
पितृपक्ष का समय 14 सितंबर से शुरू होकर 28 सितंबर को समाप्त होगा। 28 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या का श्राद्ध होगा। पुजारी ने बताया कि पितरों की पूजा करके व्यक्ति आयु, पुत्र, यश, व धन धान्य प्राप्त करता है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना कल्याणकारी होता है। इससे व्यक्ति को पितर ऋण से मुक्ति मिलती है। शुद्ध मन से किया गया तर्पण पितरों को तृप्त करता है, जिससे पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
पितरों को तृप्त करने के लिए तर्पण में दूध, काले तिल, फूलों से उनका तर्पण किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन में पिंडदान से पितरों को भोजन दिया जाता है। इन दिनों यदि कोई भिखारी भी द्वार पर आ जाए तो उसे भी खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके की जाए तो बहुत शुभ माना जाता है क्योंकि पितर लोक दक्षिण दिशा में बताया गया है। जो जीवन हमे मिला है वह हमारे पूर्वजों की देन है। इसलिए हम उनके ऋणी हैं। उस पित्र ऋण को चुकाने के लिए ही श्राद्ध किया जाता है।
पुजारी ने बताया कि इन दिनों गायत्री मंत्र, भगवत महापुराण का पाठ, सूर्य देवता को अर्घ्य देना, व ब्राह्मण या जरूरतमंद बच्चे या बूढ़े को खाना खिलाना अत्यंत श्रेष्ठ होता है। एजेंसी