सातवें दिन कालरात्रि के दरबार में उमड़ा आस्था का सैलाब
वाराणसी। शारदीय नवरात्र के सातवें दिन श्रद्धालुओं ने परम्परानुसार काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र स्थित कालरात्रि के दरबार में हाजिरी लगाई. दरबार में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु आधी रात के बाद से ही पहुंचने लगे थे.
भोर में जगदम्बा की मंगलाआरती के बाद मंदिर का पट खुलते ही जय काली के गगनभेदी जयकारे के साथ दर्शन पूजन का क्रम शुरू हो गया. श्रद्धालुओं ने माता के दिव्य और अलौकिक रूप के चरणों में विविध पुष्प, धूप, दीप, नैवद्य, नारियल और लाल चुनरी अर्पित कर परिवार के लिए मंगल कामना की.
आदिशक्ति का सातवां स्वरूप भयानक और डरावना है. कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है. इनकी श्वास से अग्नि निकलती है.
मां के बाल बिखरे हुए हैं, इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति चमकती है. इसके बावजूद मातारानी का यह स्वरूप जनकल्याण कारी शुभफल देने वाला है.
पराअम्बा का यह स्वरूप काल और तामसी शक्तियों का विनाश करने वाला है. देवी भागवत पुराण के अनुसार मां कालरात्रि की पूजा करके आप अपने क्रोध पर विजय प्राप्त कर सकते है.
सातवें दिन की पूजा में साधक का मन 'सहस्त्रवार' चक्र में स्थित रहता है. मातारानी की कृपा से ब्रम्हाण की समस्त सिद्धियों का द्यार खुलने लगता है. यदि कोई साधक अकाल मृत्यु के भय से ग्रसित रहता हैं तो मां उसे भयमुक्त करती है।