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मंदिरों में उमड़े श्रद्धालु, किया दान पुण्य

👤 manish kumar | Updated on:16 Jan 2020 5:39 AM GMT

मंदिरों में उमड़े श्रद्धालु, किया दान पुण्य

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दान-पुण्य और धार्मिक क्रियाओं के लिहाज से खास माना जाने वाला मकर संक्रांति का पर्व उज्‍जैन सहित पूरे देश में बुधवार को मनाया गया। बड़ों के लिए यह दिन दान-पुण्य के लिहाज से खास है तो बच्चे गिल्ली-डंडे और पतंग में मस्त रहेे। सुबह जल्द स्नान कर तिल-गुड़, खिचड़ी दान करने और गायों को चारा डालने का सिलसिला शुरू हो गया। सुबह से ही मंदिरों में दर्शनार्थियों की भीड़ रही। यह भी मान्यता है कि अब तिल के समान रोजाना दिन बड़े होंगे और रात छोटी होगी। दिन-व-दिन सूर्य की ऊर्जा अधिक प्राप्त होगी।

पर्व पर युवाओं ने पतंगबाजी का आनंद लिया तों बच्चे गड्गडिय़ों में लड्डूओं को रखकर गली-गली घूमते दिखाई दे रहे थे। इसके साथ ही मैदानों पर गिल्ली-डंडा खेलने का सिलसिला भी लगातार जारी रहा और तो बड़े-बुजुर्गों को आशीर्वाद भी लिया। संक्रांति पर्व की खुशियों को मनाने के लिए लोग धार्मिक स्थलों पर पहुंचे जहां भगवान का आशीर्वाद लिया और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की गई। वहीं शहर के आसपास प्राचीन गुफाओं पर लगे मेले का लोगों लुत्फ उठाने के लिए पहुंचे, हालांकि बुधवार को अचानक बदले मौसम ने त्यौहार मनाने में व्यवधान जरुर पैदा किया, किन्तु श्रद्धालुओं में उत्साह बना रहा।

हुआ मेले का आयोजन

मकर संक्रांति पर्व के तहत मालपुर की गुफाओं पर गणेश पूजन के साथ ही मेले का शुभारंभ हुआ। तीन दिवसीय सिद्धेश्वर महादेव मंदिर गुफा परिसर में स्थित कुण्ड में हजारों लोगों ने पर्व पर स्नान का आनंद लिया है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ गुफाओं पर लगने वाले मेले में एकत्रित हुईं। मालपुर, केदारनाथ, चांदोल आदि प्राचीन गुफाओं एवं तीर्थ स्थलों पर ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के हजारों लोग पर्व का स्नान करने पहुंचे। वहीं श्रद्धालुओं ने स्नान के बाद भगवान शिव के दर्शन का सुख-समृद्धि की कामना की। मेले में बच्चों ने खिलौनों को खरीदा और चाट का जमकर स्वाद रखा और जमकर लुत्फ उठाया।

यह है मकर संक्रांति का महत्व

मकर संक्रांति पर देवताओं का दिन प्रारंभ होता है और दैत्यों की रात। प्रत्येक माह सूर्य की गति अनुसार एक राशि से दूसरी में प्रवेश करता है। भ्रमण करते हुए मकर राशि में जब आता है तो सूर्य दक्षिण से उत्तर पक्ष की ओर क्रमश: धीरे-धीरे बढ़ता है। इसलिए इसे उत्तरायण भी कहा गया है। संक्रांति का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि महाभारत के वयोवृद्ध भीष्म पितामह बाण शैय्या पर ही सोए रहे और उत्तरायण आने पर प्राण त्यागे थे।


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