वन्दना का भक्ति का अनोखा तरीका, जरूरतमंदों को बांट रही निशुल्क मिट्टी के श्रीगणेश
भोपाल । भगवान की भक्ति के अपने अलग-अलग रूप हैं। कोई वंदन करके ईश्वर आराधना करता है तो कोई गरीब नारायण की सेवा को भगवान की भक्ति समझता है, कुछ लोग ऐसे भी हैं कि जिस स्वरूप की आराधना करते हैं, उनके आकार गढ़कर जरूरत मंद लोगों को मुहैया कराते हैं। यहां हम सभी जानते हैं कि सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले भगवान गणेश का पूजन जरूर किया जाता है। क्योंकि वे बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता हैं। प्रथम पूज्य श्री गणेश का जन्मोत्सव गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है ।
यहां उनके अनेक भक्तों में एक भक्त राजधानी भोपाल में वन्दना नेमाड़े भी है । पेशे से शिक्षिका हैं, लेकिन पर्यावरण के प्रति विशेष सचेत हैं। भगवान की आराधना भी हो जाए और प्रकृति को हम कम से कम नुकसान पहुंचाएं की सोच रखनेवाली केंद्रीय विद्यालय में सेवारत मैडम इन विशेष दिनों में गणेश चतुर्थी से शुरू होकर जिसे चाहिए उन्हें अनन्त चतुर्दशी तक अपने हाथों से मिट्टी के श्रीगणेश बनाकर निशुल्क उपलब्ध करा रही हैं।
उन्होंने हिस को बताया कि भोपाल मानव संग्रहालय से 'टेराकोटा' का प्रशिक्षण लेने में वे सफल रहीं। जहां उन्होंने अनेक आकार उकेरना शुरू कर दिए थे । इनमें सबसे ज्यादा आनंद अपने आराध्य श्री गणेश के प्रतिरूप बनाने में उन्हें आता था। इसलिए आगे मैडम वन्दना नेमाड़े ने वर्षभर और खासकर श्री गणेश के विशेष दिनों में उनकी मूमिर्तया बनाना जारी रखा है। इस विशेष 'टेराकोटा' के बारे में वन्दना बताती हैं कि यह वास्तव में एक इतालवी शब्द है जिसका कि अर्थ पकी हुई मिट्टी या आग में पकाई गई किसी भी प्रकार की मिट्टी से है। हालांकि सामन्य प्रयोग में इसका अर्थ किसी वस्तु से लगाया जाता है, जिसमें कि प्राय: बर्तन, प्रतिमा या कोई संरचना, जिन्हें अपरिष्कृत और रंधित मिट्टी से बनाया जाता है शामिल है। इस टेराकोटा की कारीगरी में मिट्टी की मुर्ति का रंग पकाने के बाद हल्का गेरुआ लाल हो जाता है। इनमें चमक नहीं होती।
उन्होंने बताया कि अब तक पिछले 11 सालों में वे हजारों की संख्या में श्री गणेश की मूर्तियां टेराकोटा पद्धति से बनाकर दान कर चुकी हैं। यदि मेरे पास श्रीगणेश के विशेष पूजा दिनों के अलावा सालभर में कभी भी कोई आता है और उन्हें भगवान गणेश चाहिए रहते हैं तो मैं उन्हें अपनी ओर से उपलब्ध करा देती हूं।
वन्दना कहती हैं कि कई बार मनाकरने के बाद भी कुछ लोग अपनी श्रद्धानुसार राशि घर के मंदिर में ले जा रहे गणेश स्वरूप के बदले रख जाते हैं। जिनका कि उपयोग वे परमार्थ के कार्य में करती हैं। गणेश चतुर्थी के बाद से लेकर एकादशी तक इस साल के बीते 08 दिनों के अनुभव को साझा करते हुए केंद्रीय विद्यालय 2 की शिक्षिका वन्दना नेमाड़े ने यह भी कहा कि हर साल की तरह इस साल भी बड़ी संख्या में नितरोज श्री गणेश बनाकर मेरे द्वारा जरूरत मंदों को मुहैया कराए गए हैं। मेरे घर के आस-पास और जानने वालों में कई लोगों ने मुझसे श्री गणेश लिए और अपने घरों में भक्तिभाव के साथ उन्हें विराजमान किया है । जिनका कि वे अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन करेंगे।
उन्होंने गणेश उत्सव के साथ एक बात और जोड़ी कि यह उत्सव हमें जीवन-मृत्यु का बोध कराता है। वास्तव में हम जैसे खुशी-खुशी इस संसार में आते हैं, वैसे ही वापिस चले जाते हैं। मिट्टी से आकर लेकर आखिरकार मिट्टी में ही समा जाते हैं। वे कहती हैं कि यदि सभी मनुष्य इस बात को समझकर लोक व्यवहार करें तो फिर कहीं कोई समस्या ही नहीं रहेगी । एजेंसी हिस