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किसान आंदोलन और आमजन का नुकसान

👤 mukesh | Updated on:21 Dec 2020 11:15 AM GMT

किसान आंदोलन और आमजन का नुकसान

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- योगेश कुमार सोनी

नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े किसानों के आंदोलन का असर अब कई क्षेत्रों पर पड़ रहा है। आंदोलन का प्रभाव अब पूरे देश पर पड़ने लगा है। यह दिल्ली से सटे राज्यों तक सीमित नहीं रह गया है। इससे न केवल आम आदमी प्रभावित हुए हैं बल्कि कोरोना काल की विषम परिस्थियों में सीमित रूप से शुरू हुई व्यापारिक गतिविधियों पर भी इसका असर पड़ रहा है। कच्चे माल और तैयार उत्पादों की ढुलाई में भारी परेशानी हो रही है। व्यापारियों के अनुसार ढुलाई की लागत 10 से 15 प्रतिशत बढ़ गई है।

देश के दो प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई और एसोचैम का कहना है कि यदि यही हाल रहा तो आर्थिक स्थिति के समीकरण बहुत बिगड़ जाएंगे। इसके अलावा हर रोज लगभग 3500 करोड़ का नुकसान हो रहा है। दोनों संगठनों ने सरकार व किसानों से आग्रह किया है कि समाधान निकालते हुए आंदोलन खत्म किया जाए। यदि ऐसा नहीं होता है तो इकोनॉमी को उबारने में बड़े स्तर पर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

अर्थशास्त्रियों के अनुसार छोटे व्यापारियों की सप्लाई चेन प्रभावित होने की वजह से पूरा उद्योग जगत प्रभावित हो रहा है। आंदोलन की वजह से दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के कई क्षेत्रों में माल आने में बहुत कठिनाई हो रही है। इसके अलावा देश के अन्य राज्यों से पंजाब व हरियाणा के अलावा दिल्ली में सामान पहुंचाने में समय बहुत अधिक लग रहा है, जिसकी वजह से ट्रांसपोर्टरों का किराया चार से पांच गुणा बढ़ गया है। ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि आंदोलन की वजह से हमारा ईंधन ज्यादा लग रहा है। इसके अलावा महीने में जहां पन्द्रह चक्कर तक लगते थे, अब मात्र तीन-चार रह गए। कुछ ट्रांसपोर्टर डर की वजह से अपने वाहन भेजने में भी हिचकिचा रहे हैं।

यदि कृषि उत्पादों के विपणन पर गौर करें तो देश के कई राज्यों के किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। चूंकि कुछ खाद्य पदार्थों व वस्तुएं चेन सिस्टम से आती हैं। दिल्ली से दूर कुछ राज्यों में जो माल आता है वो दूसरे राज्यों से होकर आता है, जिस वजह से लगभग पूरा भारत प्रभावित हो रहा है। कोरोना की वजह से धीरे-धीरे संकट से निकला जा रहा है। पर्यटन राज्यों को भी कुछ उम्मीद जागी थी लेकिन दिल्ली के बॉर्डर बंद होने की वजह से वे फिर प्रभावित हो गए। मार्च से पर्यटन क्षेत्र बिल्कुल ठप था लेकिन अब शुरुआत हुई ही थी कि आंदोलन के कारण फिर स्थिति चिंताजनक हो गई। पर्यटक स्थल की हालात सबसे ज्यादा खराब इसलिए हो रही है चूंकि कोई भी व्यक्ति घूमने-फिरने तब ही जाता है जब उसके पास बुनियादी खर्च से अधिक पैसा हो। इसकी थोड़ी शुरुआत भी हुई लेकिन मामला फिर शून्य पर आ गया।

पर्यटक स्थलों पर सबसे ज्यादा दिल्ली-एनसीआर के लोग जाते हैं। एक सर्वे के अनुसार पूरे भारत के पर्यटक स्थलों से कुल आय में लगभग 40 प्रतिशत आय दिल्ली के लोगों से होती है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि राजधानीवासी सबसे ज्यादा घूमते हैं। इसमें कॉर्पोरेट जगत की यात्राएं भी शामिल हैं। दिल्ली-एनसीआर में देश की सभी बड़ी कंपनियां है, जिसकी वजह से व्यापारिक व कॉर्पोरेट जगत से जुड़े लोगों को बहुत ज्यादा बाहर आना-जाना पड़ता है। एक तो पहले से ही कोरोना की वजह से लोग बाहरी राज्यों में आने-जाने से परहेज कर रहे थे और अब आंदोलन की वजह से निकलने में परेशानी महसूस कर रहे हैं। होटल इंडस्ट्री की हालात खराब होने के कारण कई लोगों की नौकरी जा चुकी है। वेटर से शैफ तक इस क्षेत्र से निराश होकर अन्य क्षेत्रों में जा रहे हैं।

पिछले दिनों से देखा जा रहा है दोनों पक्षों के बीच कोई हल नहीं निकल पा रहा। दरअसल इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि विपक्षी दल किसानों को भड़काने का काम कर रहे हैं। जिन राजनीतिक पार्टियों का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है वे भी अपनी रोटी सेंकने का प्रयास कर रही हैं। आंदोलन करना किसी भी व्यक्ति, संगठन या पार्टी का अधिकार है लेकिन आपकी वजह से दूसरों को नुकसान उठाना पड़े तो यह गलत है। अब कुछ ऐसा ही हो रहा है। वर्चस्व की लड़ाई में सरकार व किसान भूल रहे हैं कि इस लड़ाई का अप्रत्यक्ष रूप से कौन लोग फायदा उठा रहे हैं व किसको नुकसान हो रहा है।

देश की रफ्तार के लिए अब किसान संगठनों को गंभीरता से सोचते हुए कोई हल निकालने की जरूरत है। किसी भी चीज की अति बुरी होती है और शायद अब आंदोलन में भी ऐसा ही हो रहा है। दोनों पक्षों को अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए देश की तरक्की के बारे में सोचने की जरूरत है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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