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मैं मूलत कवि हूँ और कवि ही रहूँगा-प्रसून जोशी

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:20 Aug 2017 3:32 PM GMT

मैं मूलत कवि हूँ और कवि ही रहूँगा-प्रसून जोशी

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लोकमित्र

भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड को पहली बार एक ऐसा मुखिया मिला है जो इस दुनिया का होते हुए भी इससे काफी हद तक निर्लिप्त है। जी,हाँ सुनने में थोडा अटपटा लग सकता है लेकिन प्रसून जोशी ऐसे ही हैं। फिल्मी दुनिया में नए किस्म के गीतकार के तौरपर प्रसिद्धप्रसून 16 सितम्बर 1968 को अल्मोड़ा में पैदा हुए थे। उनके पिता डीके जोशी शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। प्रसून की प्रारंभिक शिक्षा गोपेश्वर और नरेंद्रनगर गढ़वाल में हुई। गाजियाबाद से एमबीए करने के बाद वह 1992 में विज्ञापन की दुनिया से जुड़ गए।
हालाँकि ]िफल्मी दुनिया का सपना हमेशा से उनके दिल में पल रहा था,इसीलिए भी उन्होंने अपने प्रोफेशनल जीवन को मुंबई के हिसाब से डिजायन किया था। लेकिन फिल्मों की ही एक विधा विज्ञापन की दुनिया में होने के बावजूद माया नगरी में उनकी इंट्री आसानी से नहीं हुई,उन्हें इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। प्रसून जोशी ने 17 साल की उम्र में लिखना शुरू कर दिया था। लेकिन साहित्यिक लेखन को करियर बनाने के बारे में उन्होंने कभी नहीं सोची । एमबीए करने के बाद प्रसून ने दस साल एक कंपनी में काम किया। फिर मैकैन एरिक्सन से जुड़े। आखिरकार राजकुमार संतोषी की फिल्म लज्जा से उन्हें फिल्मों में एंट्री मिली।
लेखक, गीतकार, एड गुरु और मार्केटिंग इंडस्ट्री की मशहूर शख्सियत बन चुके जोशी को अब तक दो बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। ये अवार्ड उन्हें तारे जमीं पर और चिटगॉव फिल्मों के गीतों के लिए मिला है । 2015 में कला, साहित्य और एडवरटाइजिंग के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है। लेकिन एक बात शायद सब लोग न जानते हों सेंसर बोर्ड के नए अध्यक्ष प्रसून जोशी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पर्सनालिटी डेवलप करने में भी उनका अहम योगदान है। `मोदी जी आ रहे हैं'इस पंचलाइन का मैनेरिज्म उन्होंने ही तैयार किया था। साथ ही अब की बार,मोदी सरकार की लयात्मकता ध्वनित करने में उनका विशेष योगदान रहा है। वैसे मूल रूप से ये पंचलाइन उनकी लिखी हुई नहीं है । यह दिल्ली के एक कॉपी राइटर की है। लेकिन ठंडा मतलब कोकाकोला कहने वाले प्रसून ने पीएम मोदी के कई विदेशी कैंपेन के जिंगल्स भी डिजाइन किये हैं ।
सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष बनाये जाने के बाद जब उनसे सवाल किया गया कि आप तो अक्सर कहते रहे हैं कि मैं फिल्मी दुनिया का आदमी नहीं हूँ,मैं तो मूलत कवि हूँ । लेकिन अब तो आप बॉलीवुड के बॉस हैं,क्या अब भी आप कहेंगे आप मूलत कवि हैं ? इस सवाल पर प्रसून जोशी ने कहा, `मैं अब भी यही कहूँगा कि मैं मूलत कवि हूँ। जहाँ तक बॉस होने की बात है तो मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि न तो इस पद में बॉस जैसी कोई जगह होती है और न ही बॉसपना मेरे कहीं वजूद में ही है । मैं अब तक के प्रोफेशल जीवन में भी कभी बॉसपने की प्रवृत्ति का शिकार नहीं रहा हूँ।' गौरतलब है कि साल 2015 में उनकी लिखी एक कविता बहुत मशहूर हुई थी, 'शर्म आ रही है ना' । यह कविता उन्होंने रियो ओलंपिक में देश की बेटियों की उपलब्धियों से प्रेरित होकर लिखी थी। प्रसून महिलाओं को निशाना बनाकर लिखे जाने वाले अश्लील गानों से बहुत चिढ है इसलिए द्विअर्थी बोल लिखने वाले संभल जाएँ।
यह कविता प्रसून ने पहली बार अपने दोस्त पत्रकार अर्नब गोस्वामी को सुनाई थी,जिन्होंने इसे उसी शाम को प्रसारित क्या था। उनके मुताब़िक इस कविता ने लोगों को अंदर तक झकझोर दिया और यह लोकप्रिय होती चली गई।'' प्रसून मानते हैं कि देश में महिलाओं की स्थिति बहुत सोचनीय हो गई है । उनके मुताब़िक आजादी के 70 साल बाद भी महिलाओं की दशा में कोई मूलभूत सुधार नहीं हुआ है। महिलाओं को सिर्फ जुबानी बराबरी भर दी गयी है,धरातल पर कुछ ज्यादा नहीं हुआ। महिलाओं के जीवन में सुधार के लिए वे सख्त कानूनों के हिमायती हैं । सिमेमा के बारे में उनका सोचना है कि सिनेमा में बदलाव की जरूरत है । अश्लील गानों के बारे में उनका कहना है कि ऐसे गानों ने महिलाओं की इज्जत तार-तार कर दी है। इस तरह के गानों और उनके लिखने वालों के वे सामाजिक बहिष्कार के हिमायती हैं।
लेखन को लेकर उनके सिर्फ मीठे अनुभव ही नहीं हैं कडुवे अनुभव भी हैं। वह कहते हैं, "मेरी पहली पुस्तक 17 साल की उम्र में प्रकाशित हुई थी जिसे कोई खरीदता नहीं था। लगातार दो-तीन पुस्तकें प्रकाशित होने के बाद मुझे समझ में आ गया कि कविता मुझे पाल नहीं सकती, मुझे ही कविता को पालना पड़ेगा।" प्रसून ने जीवन में बहुत रिस्क लिए हैं या कहना चाहिए प्रयोग किये हैं । वह विज्ञान के छात्र थे,घर वाले उन्हें इंजीनियर या वैज्ञानिक देखना चाहते थे,लेकिन उन्होंने एमएससी करने के बाद एमबीए किया। विज्ञापन की दुनिया में आने के बाद जीवन के तमाम मूलभूत दर्शन बदल गए। इस दुनिया की बदौलत ही वह तमाम संगीतकारों और अभिनेताओं के संपर्क में आ सके जिसमें आमिर खान, ए आर रहमान और शंकर-अहसान-लॉय जैसों से आज उनकी दोस्ती है। हालाँकि रोटी न दे सकने के बाद भी उन्होंने कभी कविता का दामन नहीं छोड़ा। इसीलिये उनके गीतों में बिना बुलाये कविता चली आयी। प्रसून स्वभाव से ही मल्टीडाईमेंश्नल हैं। वह हमेशा कई प्रोजेक्टों में एक साथ उलझे रहते हैं। कभी गद्य पर तो कभी पद्य पर। इस सबके बावजूद वह बहुत अच्छे ढंग से अपनी नौकरी भी मैनेज करते हैं। वह इन दिनों एक पौराणिक टीवी सीरीज लिखने में व्यस्त हैं।
प्रसून की राजनीति में भी गहन रूचि है। हालाँकि वह भविष्य में राजनीति के क्षेत्र में हाथ आजमाने को लेकर संशय में हैं। वह कहते हैं, "मैंने कभी सािढय राजनीति से जुड़ने के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा है।'' प्रसून के पसंदीदा गीत हैं, 'हवन करेंगे', 'मस्ती की पाठशाला' और 'गेंदा फूल', जिनमें उनके मुताब़िक हर कोई बिना समझौता किए थिरक सकता है।
डप्रसून जोशी के तमाम लेखों,भाषणों और इंटरव्यूज के आधार पऱ

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