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नए संदर्भों में हरतालिका तीज व्रत स्त्री -सशक्तिकरण का प्रतीक है

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:20 Aug 2017 3:37 PM GMT

नए संदर्भों में हरतालिका तीज व्रत   स्त्री -सशक्तिकरण का प्रतीक है

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" राजकुमार 'दिनकर'

गौर से देखें तो दुनिया की हर कहानी में एक दर्शन छिपा होता है और हर दर्शन एक कहानी में जाकर खत्म होता है या कहें कि पूर्णता हासिल करता है र् कहानियों के संदर्भ में जहाँ तक भारतीय माइथोलोजी की बात है तो उसे तो मूक विज्ञान ही कहा जाना चाहिए र् क्योंकि भारतीय माइथोलोजी अपनी हर कहानी में एक विराट दर्शन ही नहीं,एक उत्कृष्ट समाजबोध या समाज विज्ञान भी छिपाए हुए है र् अब हरतालिका तीज के व्रत को ही लें र् इसे अगर आधुनिक संदर्भों से देखें तो यह व्रत पर्व स्त्राr सशक्तिकरण का एक शानदार प्रतीक है र्
यह इसकी कहानी से समझा जा सकता है र् वर्षा ऋतु को तो यूँ भी प्रेम और पवित्रता के पर्वों का ऋतु कहा जाता है र् शायद इसीलिये शास्त्राrय संगीत में प्रेम की जितनी उपष्ट वंदिशें होती हैं, सब वर्षा ऋतु में गाई जाती है र् ठुमरी,कजरी,दादरा,कहरवा,सावनी,भदमासा सब के सब वर्षा ऋतु के सांगीतिक उपहार हैं र् शास्त्राrय संगीत के 80ज्ञ् रागों के साथ कुदरत जिस ऋतु में सबसे रसिक अंदाज में वंदिश करती है,वह वर्षा ऋतु ही है र् हरतालिका तीज व्रत भी इसी वर्षा ऋतु में ही भादों मास की शुक्ल तृतीया को आता है र् इसके हिन्दुस्तान के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग नाम भी है र् इसे कहीं शैलजा तृतीया,कहीं हरियाली तीज तो कहीं वर तृतीया भी कहते हैं र् वैसे हरतालिका तीज के बाद इसका दूसरा सबसे लोकप्रिय नाम गौरी तृतीया है र्
यह व्रत वास्तव में मनचाहे प्रेमी के साथ विवाह की कामना और इसके लिए कोशिश की जाने की कहानी है र् यह व्रत कथा हमें बताती है कि सच्चा प्यार सिर्फ कामना से ही नहीं मिल जाता,इसके लिए कई बार घोर तपस्या यानी कड़ा संघर्ष भी करना पड़ता है जैसे पार्वती ने शिव के लिए किया र् यह व्रत कथा हमें बताती है कि अपने प्रेमी के साथ विवाह की कामना और इसके लिए समाज से विद्रोह तक का बीड़ा उठाने वाली कोशिशें सफल होती हैं जैसे माँ पार्वती की हुई र् इसलिए यह कहानी आज भी न केवल प्रासंगिक है बल्कि इसे मजबूत बनाये जाने की जरुरत है र् इस व्रत कथा से यह जानकर भी प्रेरणा ली जा सकती है कि हजारों साल पहले भी समाज से टकराने का स्त्राr दम रखती थी और अपने सच्चे प्रेम के लिए किसी भी कठिन परीक्षा से गुजरने को तैयार रहती थी र्
बहरहाल अब मूल व्रत कथा पर आते हैं यानी उस कहानी पर जो इस व्रत के पीछे है र् कहते हैं यह वह कहानी है जिसे शिव ने पार्वती को सुनाया था र् कथा के मुताबिक भगवान शिव ने इसमें पार्वती के पिछले जन्म के बारे में उन्हें कुछ इस तरह बताया था "हेगौरी! पिछले जन्म में तुमने छोटे होते ही बहुत पूजा और तप किया था र् इस घोर तप में तुमने न तो कुछ खाया था और न ही कुछ पीया था र् बस हवा ही ग्रहण की थी र् घोर गर्मी और सर्दी में भी तुम समाधिस्त रहीं र् यहाँ तक कि बारिश में भी तुमने जल नहीं पीया र् तुम्हे इस हालत में देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुखी थे र् उनको दुखी देख नारद मुनि मृत्युलोक आये और कहा, "मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ र् आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं, इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ"
नारदजी की बात सुनकर ऐ शैलजा आपके पिता ने कहा - अगर भगवान विष्णु ये चाहते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है र् परंतु जब तुम्हे इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम दुःखी हो गईं र् तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तो तुमने कहा कि 'मैंने सच्चे मन से भगवान शिव अर्थात मुझसे वरण किया है,किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है र् अब मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ र् अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा' लेकिन तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी र् उसने कहा-'प्राण छोड़ने का यहाँ कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिये र् आर्य नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करे र् मैं तुम्हे घनघोर वन में ले चलती हूँ जो साधना थल भी है और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हे खोज भी नहीं पायेंगे र् मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे'
कहानी में शिव कहते हैं , ' हे प्रिये तुमने ऐसा ही किया र् तुम्हारे पिता तुम्हे घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए र् इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं र् तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया र् तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुँचा व तुमसे वर मांगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा 'मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ. यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये र् 'तब 'तथास्तु' कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया र् उसी समय तुम्हारे पिता तुम्हें अपने बंधु-बांधवों के साथ खोजते हुए तुम तक पहुंचे र् तुमने सारा वृतांत बताया और कहा कि मैं घर तभी जाउंगी अगर आप महादेव से मेरा विवाह करेंगे र् तुम्हारे पिता मान गए और उन्होने हमारा विवाह करवाया र्
इस व्रत का महत्त्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्राr को मन वांछित फल देता हूँ र् इस तरह यह व्रत अपने प्रेम और अपनी पसंद की शादी के लिए स्त्राr की विजयगाथा है र्

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