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मजाक जैसी है ओल्ड-ऐज पेंशन

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:14 Jan 2018 1:33 PM GMT

मजाक जैसी है ओल्ड-ऐज पेंशन

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विजय कपूर

यूपीए सरकार की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा रॉय ने एक बार फिर केंद्र सरकार- विशेषरूप से फ्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- से आग्रह किया है कि वरिष्" नागरिकों को जो न के बराबर पेंशन दी जा रही है, उसके बारे में कुछ किया जाये। सीनियर सिटीजंस को कम से कम इतना पैसा तो दिया जाये कि लगे उन्हें कुछ दिया जा रहा है, उनका भी ख्याल रखने के लिए सरकार चिंतित है। पेंशन परिषद ऐसे 100 से अधिक सिविल सोसाइटी संग"नों का नेटवर्क है जो पेंशन पाने वाले व्यक्तियों के लिए कार्य करता है। इस परिषद की तरफ से लिखते हुए अरुणा रॉय ने ध्यान दिलाया है कि 2006 में इंदिरा गांधी नेशनल ओल्ड ऐज पेंशन स्कीम लागू की गई थी, जिसके तहत बुजुर्गों को 200 रूपये फ्रति माह दिए जाते हैं, लेकिन आज 11 वर्ष बाद भी इस पेंशन राशि में कोई वृद्धि नहीं की गई है, जबकि महंगाई ने इन 200 रूपये का मूल्य भी 100 रूपये से कम कर दिया है, जोकि सरकार द्वारा निर्धारित एक दिन के न्यूनतम वेतन से भी कम है।
गौरतलब है कि 200 रूपये फ्रति माह की मामूली पेंशन फ्राप्त करना भी बुजुर्गों के लिए क"िन होता जा रहा है क्योंकि अधिकतर राज्यों में बिना आधार कार्ड के यह पेंशन नहीं दी जा रही है। बुजुर्गों की स्थिति यह है कि उंगलियों के निशान न आने की वजह से उनके पास आधार कार्ड या तो है नहीं और अगर है तो पेंशन लेते समय उंगलियों के निशान कार्ड से मेल नहीं खाते, जिससे अधिकारी उन्हें पेंशन देने से मना कर देते हैं। इसी कारण से बुजुर्गों को राशन भी नहीं मिल पाता है, जिससे भूख की वजह से अनेक मौतें हो चुकी हैं। दूसरे शब्दों में सरकार को बुजुर्गों की समस्याओं पर तुरंत फोकस करना चाहिए। बहरहाल, यह पहला अवसर नहीं है जब रॉय ने इस विषय पर सरकार को लिखा है और न ही मोदी पहले फ्रधानमंत्री हैं जिनसे उन्होंने इस संदर्भ में आग्रह किया है। कुछ वर्ष पहले उन्होंने तत्कालीन फ्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के निवास के सामने फ्रदर्शन भी किया था और तब उन्हें हिरासत में भी लिया गया था। लेकिन फ्रधानमंत्री या फ्रधानमंत्री कार्यालय से फ्रतिािढया तब भी और अब भी समान रही- खामोशी। बुजुर्गों के लिए कोई कुछ करना ही नहीं चाहता है।
यह चिंताजनक स्थिति है। बुजुर्गों के सिलसिले में गंभीर समस्या है जो निरंतर बढ़ती जा रही है, इस बारे में कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक के 104 मिलियन बुजुर्ग हैं। 2011 में बुजुर्गों का अनुपात 8.6 फ्रतिशत था जो निरंतर बढ़ता जा रहा है। साथ ही औसत भारतीय का 60 वर्ष के बाद कम से कम 18 वर्ष तक और जीवित रहने का अनुमान है, जिसका अर्थ यह है कि निर्भरता अनुपात में भी इजाफा हो रहा है। सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन आ रहा है। पहले संयुक्त परिवार व्यवस्था के कारण बुजुर्गों को सहारा मिल जाया करता था, लेकिन अब यह व्यवस्था ही न के बराबर रह गई है। फलस्वरूप बड़ी संख्या में बुजुर्ग दयनीय स्थिति में पहुंच गये हैं, जिनमें वह बुजुर्ग भी शामिल हैं जो अपने कामकाजी वर्षों में कम से कम मध्य वर्ग के तो थे। ऐसे लोगों के लिए कोई संस्थागत सहारा नहीं है, जबकि दोनों रहने व मेडिकल का खर्च निरंतर बढ़ता जा रहा है, उनकी बचत खत्म हो रही है और ओल्ड-ऐज पेंशन, जैसा कि रॉय बार बार कहती हैं, मजाक है।
अधिकतर बुजुर्ग बैंक में जमा अपने धन पर मिलने वाले ब्याज पर निर्भर करते थे, लेकिन ब्याज दरें निरंतर कम होती जा रही हैं। अवकाश ग्रहण करने के बाद केवल सरकारी कर्मचारियों को ही पेंशन मिलती है। अब यह समस्या इतनी चिंताजनक हो गई है कि असमता के हमारे समुद्र में जो लोग `सम्पन्न' समझे जाते थे, वह भी बुजुर्ग होने पर मुश्किल से ही दो वक्त की रोटी व दवा की व्यवस्था कर पाते हैं। इस पर सरकारी फ्रतिािढया अपर्याप्त ही रही है। परिवार अपने बुजुर्गों को बेसहारा व लावारिस छोड़ रहे हैं, यह घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसको ध्यान में रखते हुए सरकार ने 2007 में माता-पिता व वरिष्" नागरिकों की देखभाल व कल्याण के लिए कानून बनाया था, जिसके तहत बच्चों व रिश्तेदारों पर अपने पेरेंट्स व बुजुर्गों का गुजाराभत्ता अदा करना आवश्यक हो जाता है।
इस कानून के तहत यह भी फ्रावधान है कि बुजुर्ग अपनी फ्रॉपर्टी को वापस ले सकते हैं अगर उनके रिश्तेदार उनके फ्रति लापरवाह हो जाते हैं, उन्हें बेसहारा छोड़ने पर दंडनीय कार्यवाही हो सकती है, गरीबों के लिए ओल्ड-ऐज होम स्थापित करना भी तय किया गया, वरिष्" नागरिकों के लिए पर्याप्त मेडिकल सुविधाओं की व्यवस्था का भी फ्रावधान है और ऐसे ही अनेक लुभावने लक्ष्य हैं। लेकिन सामाजिक समस्या का समाधान कानून के सहारे करना असम्भव होता है और यही वजह है कि बुजुर्गों से संबंधित कानून भी अपने उद्देश्य की पूर्ति में पूर्णतः असफल रहा। बुजुर्गों की समस्याओं को देखने वाले सामाजिक न्याय मंत्रालय के पास भी सीनियर सिटीजंस के लिए एक भव्य कार्पाम है- इंटीग्रेटेड फ्रोग्राम फॉर ओल्डर पर्सन्स, जो 1992 से लागू है। लेकिन इसमें फंड्स की भयंकर कमी है और इसकी फ्रशासनिक व्यवस्था लचर है। मंत्रालय ने स्वयं स्वीकार किया है कि

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