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हमारी सड़पें कब होंगी सुरक्षित

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:17 Sep 2018 2:54 PM GMT

हमारी सड़पें कब होंगी सुरक्षित

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गणेश शंकर भगवती

पता नहीं इस देश के सत्ताधारी सत्ता संचालन के इस पहले नियम का कब परिपालन पारंभ करेंगे कि कोई भी व्यवस्था तभी आ सकती है जब उसके परिपालन के लिए कानूनों को कठोरता से लागू किया जाये। हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यही है कि अधिकार के पदों पर बैठे लोग केवल इसलिए कानूनों का निष्पक्षता से परिपालन नहीं करते ताकि कहीं लोग उससे नाराज न हो जाएं और दूसरे यदि अपना कोई उनकी जद में आए जाए तो उसे छुटकारा मिल सके। यही वजह है कि जिन क्षेत्रों में कानूनों का पूरी सख्ती से पालन किया जाना चाहिए वहां नेता भाषणों और उपदेशों के साथ तरह-तरह के ऐसे नकली आयोजन करते हैं जिनसे लक्ष्य तो हासिल नहीं होता परंतु जनता के समय और धन की बर्बादी अवश्य होती है।

किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि भारत में आज सड़कों पर होने वाली अकाल मौतें एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। पिछले कई बरसों में हुए अनेक युद्धों के साथ सीमा पर और आंतरिक स्तर पर उग्रवादियों से हुई मुठभेड़ों और हमलों में जितने लोग मारे गये उससे कहीं अधिक लोग इस देश में सड़कों पर दम तोड़ चुके हैं। शायद ही कोई ऐसा मिनट हो जब देश में सड़कों पर किसी की बलि न चढक्व रही हो। शहरों और कस्बों के बाहर लंबी दूरी की सड़कों की बात तो दरकिनार, नगरों की संकरी सड़कों तक पर इसलिए हादसे हो रहे हैं क्योंकि यहां के रीढक्वविहीन सत्ता संचालकों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे कानूनों को सख्ती से लागू कर सपें। सड़कों के पति सत्ता संचालकों का क्या नजरिया है, इसका पमाण गत दिवस तब सामने आया जब भोपाल में राज्य सड़क सुरक्षा परिषद् की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह कहा कि सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए जन जागृति अभियान चलाया जाएगा। उनके अनुसार इस अभियान में राज्य शासन के मंत्री भोपाल में सड़कों पर खड़े होकर लोगों को यातायात नियमों के पालन की समझाइश देंगे। यहां समझ में नहीं आता कि सड़क सुरक्षा के बारे में जब पहले ही तरह-तरह के अभियान चल चुके हैं और हर बरस सड़क सुरक्षा सप्ताह आदि मनाए जाते रहे हैं तब इस नये अभियान का क्या मतलब है? आखिर लोगों को कानून का पालन कराने के लिए इस तरह के निरर्थक कार्यकमों की जगह कठोरता से कानूनों का पालन करवाने से सरकार क्यों हिचक रही है।

इस तरह का अभियान चलाने की बजाए सरकार नगर के हर चौराहे और पमुख सड़क पर यातायात के पुलिस के जवानों को क्यों नहीं तैनात करती है जिनका एकमात्र काम यही हो कि जहां कहीं भी कोई वाहन चालक नियमों को तोड़ता पाया जाए उस पर तत्काल कार्रवाही हो। सरकार दोपहिया वाहन चालकों को अभी तक हेलमेट पहनने के लिए क्यों नहीं बाध्य कर पाई। हर बड़ी सड़क से लेकर चौराहों पर बिना हेलमेट के वाहन चलाने वालों पर कठोरता से क्यों कार्रवाई नहीं की जा सकती। इस बारे में पहले भी तरह-तरह की समझाइशें दी जा चुकी हैं और कई बार ऐसे समाचार आए हैं कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने स्वयं वाहन चालकों को समझाने के साथ नियम का पालन करवाने वालों को गुलाब तक भेंट किए हैं परंतु इसके बावजूद यातायात नियमों की धज्जियां उड़ते कहीं भी देखा जा सकता है।

जब यह स्पष्ट हो चुका है कि कुछ मामलों में समझाइश का कोई मतलब नहीं होता और केवल कठोर कार्यवाही एकमात्र उपाय है तो उस पर अमल से पशासन क्यों कतरा रहा है। भोपाल में ही न जाने कितनी बार अतिकमण न करने, अवैध निर्माण न करने, सड़कों पर वाहन पार्प न करने और ऐसी अनेक सलाहें दी गई हैं परंतु उनका कितना पालन हो रहा है इसका नमूना देखा जा सकता है। असली नकली कागजों से शहरों को राष्ट्रीय स्तर पर भले ही पुरस्कारों का जुगाड़ कर लिया जाए परंतु व्यवहारिक दृष्टि से नगरों की जितनी दुर्दशा है उसे कहीं भी देखा जा सकता है। यहां सवाल यह है कि जब सरकार स्वयं ही कठोरता से किसी कानून का पालन नहीं करना चाहती तो सीसीटीवी कैमरों को क्यों लगाया गया। पुलिस रोज इस बात का ब्यौरा जनता को क्यों नहीं देती कि इन कैमरों के मार्पत इतने वाहन चालकों को सजा दी गई। जिन कदमों से वास्तव में व्यवस्था आ सकती है उनको जब तक पूरी संकल्पबद्धता से नहीं उठाया जाएगा, तब तक हर क्षेत्र में वैसी ही दुर्दशा रहेगी जैसीं आज यातायात की है।

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