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शनि की साढ़ेसाती कब कष्टदायी होती है

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:17 Sep 2018 3:00 PM GMT

शनि की साढ़ेसाती कब कष्टदायी होती है

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रवीन्दनाथ सिंह `उदय'

रतीय ज्योतिष शास्त्र में शनि की गणना सर्वाधिक पभावशाली ग्रह के रूप में की गई है। यह जितना अनिष्ट फल पदायक है, उतना ही उत्कृष्ट और अभीष्ट फलदायक भी है। यह अलग बात है कि आज के युग में शनि के नैसर्गिक गुणों को न समझ पाने वाले ज्योतिषियों ने शनि की ढैया या उसकी साढ़ेसाती का जो हौवा खड़ा कर दिया है, उससे शनि का वीभत्स और भयावह स्वरूप ही पदर्शित हुआ है। विश्व के 25 पतिशत व्यक्पि शनि की साढ़ेसाती और 16.66 पतिशत व्यक्पि इसकी ढैया के पभाव में सदैव रहते हैं। तो क्या 41.66 पतिशत व्यक्पि हमेशा शनि की साढ़ेसाती या ढैया के पभाव से ग्रस्त रहते हैं। वे व्यक्पि जो न शनि की साढ़े साती और न ही उसकी ढैया के पभाव में होते हैं, उन पर कोई विशेष संकट नहीं आते? यदि आते हैं तो फिर शनि को ही हम क्यों इस नजरिए से देखते हैं? सत्य तो यह है कि साढ़ेसाती का ढैया का पभाव शुभ होगा या अशुभ इसका निर्धारण करने के लिए हमें शनि के आकार-पकार, रूप-रंग और स्वभाव के साथ-साथ जन्म कुण्डली में उसकी स्थिति और अन्य ग्रहों के साथ सम्बन्धों पर भी विशेष ध्यान देना होगा।

शनि अन्य ग्रहों की अपेक्षा बहुत विशाल एवं सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर स्थित है। यह पूर्णतया कान्तिहीन ग्रह है और अन्यान्य ग्रहों की अपेक्षा इसकी गति भी सर्वाधिक मन्द है। इसीलिए इसका नाम तम, शनेश्वर या मंद भी है। इसकी उत्पत्ति सूर्य से हुई है। सूर्य के गोल पिण्ड से एक अंग टूटकर अलग हो गया जो अत्यधिक वेग के कारण सूर्य से बहुत दूर जाकर एक निश्चित बिन्दु पर अवस्थित हो सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से उसकी परिकमा करने लगा। इसके अर्पज, सूर्य पुत्र, भानुज आदि नाम से पचलित होने का यही कारण है।

शनि का व्यास 75 हजार मील और सूर्य से इसकी दूरी 88 करोड़ मील है। सूर्य की एक पूरी परिकमा करने में इसे 295 वर्ष लग जाते हैं। हालांकि यह अपनी धुरी पर 10 घंटे 12 मिनट में ही एक चक्कर कर लेता है। हमारे 70 वर्ष शनि के एक वर्ष के बराबर होते हैं। एक भूचक अर्थात् सभी (बारह) राशियों की एक परिकमा पूरी करने में इसे 29 वर्ष 5 माह 17 दिन और 5 घंटे लग जाते हैं। यह पृथ्वी से 89 करोड़ मील दूरी पर है और इसे एक राशि पर लगभग ढाई वर्ष भ्रमण करना पड़ता है।

शनि तम पधान होने के नाते तामसी स्वभाव का होता है। इसमें नपुंसकत्व की मात्रा अधिक होती है। यह दो राशि कमशः मकर और कुम्भ का स्वामी है। तुला के 20 अंश तक इसकी उच्च राशि और मेष के 20 अंश तक इसकी नीच राशि मानी जाती है। पुंभ इसकी मूल त्रिकोण राशि है।

सूर्य, चन्द और मंगल शत्रु ग्रह, मेष, कर्प, सिंह और वृश्चिक शत्रु राशि हैं जबकि बुध, शुक और राहु इसके मित्र ग्रह और वृष, मिथुन, कन्या और तुला इसकी मित्र राशियां हैं। इसी पकार गुरु इसका न तो मित्र है और न ही शत्रु यानी सम है और धनु व मीन राशियां भी इसके लिए सम हैं। इसी पकार मेष राशि जहां नीच राशि है, वहीं शत्रु राशि भी और तुला जहां मित्र राशि है वहीं उच्च राशि भी है। शनि वात रोग, मृत्यु, चोरी-डकैती मामला, मुकदमा, फांसी, जेल, तस्करी जुआं, जासूसी, शत्रुता, लाभ-हानि दिवालिया, राजदंड, त्याग-पत्र, राज्य भंग, राज्य लाभ या व्यापार-व्यवसाय का कारक माना जाता है। शनि जिस राशि में स्थित होता है उससे तृतीय, सप्तम और दशम राशि पर पूर्ण दृष्टि रखता है। इसकी ढैया ढाई वर्ष की और साढ़ेसाती साढ़े सात वर्ष की होती है। सौर वर्ष की गणना से साढ़े सात वर्ष में 2700 दिन होते हैं, जबकि एक राशि में सवा दो नक्षत्र के हिसाब से कुल 9 नक्षत्र होते हैं। अर्थात् तीन राशि नक्षत्रों के 27 चरण के भ्रमण में शनि को 2700 दिन या साढ़े सात वर्ष लग जाते हैं। इस पकार किसी भी नक्षत्र के एक चरण का भ्रमण करने में शनि को पायः 100 दिन लग जाते हैं।

अतः स्पष्ट है कि शत्रु, मित्र, सम, उच्च, नीच, निज और मूल त्रिकोण राशियों के अनुसार शनि की साढ़ेसाती हो या ढैया अपना अलग-अलग फल देगी। कुछ में अत्यंत निकृष्ट तो किसी में अत्यन्त श्रेष्ठ फल भी पदान करने में समर्थ होगा, जबकि अन्य स्थितियों में वह शुभाशुभ मिश्रित फल पदायक ही होगा। गोचर कालिक स्थितियों के साथ जन्मांग चक के ग्रहें का तालमेल देखे बिना इन शुभाशुभ फलों का सही निर्धारण नहीं किया जा सकता है। चरणों के हिसाब से भी फलों में परिवर्तन होता रहता है। ये परिवर्तन भी शुभाशुभ या मिश्रित हो सकते हैं।

शनि की साढ़ेसाती तब शुरू होती है जब शनि गोचर में जन्म राशि से 12वें घर में भ्रमण करने लगता है और तब तक रहती है जब वह जन्म राशि से द्वितीय भाव में स्थित रहता है। वास्तव में शनि जन्म राशि से 45 अंश के 45 अंश बाद तक जब भ्रमण करता है तब उसकी साढ़ेसाती होती है।

इसी पकार चंद राशि से चतुर्थ या अष्टम भाव में शनि के जाने पर ढैया आरंभ होती है। सूक्ष्म नियम के अनुसार जन्म राशि से चतुर्थ भाव के आंरभ से पंचम भाव की संधि तक और अष्टम भाव के आरंभ से नवम् भाव की संधि तक शनि की ढैया होनी चाहिए। इस पकार जन्म नक्षत्र से 27 चरण और 65 चरण के बाद शनि की स्थिति से चतुर्थ और अष्टमभाव मध्य होता है। इससे 4 चरण आगे और4 चरण पीछे तक वह भाव होता है। अर्थात् जन्म नक्षत्र 23 चरण व्यतीत होने पर 24 चरण में जो राशि और नक्षत्र आए और उसमें शनि संचरण करे तब शनि की ढैया (पहली) आरंभ होती है और 32वां चरण जो राशि या नक्षत्र हो, उसमें शनि जब तक रहे तब तक पहली ढैया रहती है। इसी पकार जन्म नक्षत्र से 62वें चरण में जो राशि या नक्षत्र हो उसमें शनि के जाने पर दूसरी ढैया आरंभ होगी और 69 चरण तक जो राशि या नक्षत्र हो उसमें शनि जब तक रहेगा तब तक उसकी दूसरी ढैया रहेगी।

अस्तु पाठकों को पत्र-पत्रिकाओं या विभिन्न पंचांगों में निर्दिष्ट फलादेशों से भयभीत नहीं होना चाहिए।

इसके अतिरिक्प भी अनेक कारण हैं जब साढेक्वसाती या ढैया का पभाव या तो पड़ता ही नहीं या पड़ता भी है तो वह नहीं के बराबर होता है। यथा-

1. मान लीजिए चन्द राशि से आपके लिए शनि की साढेक्वसाती चल रही है, लेकिन जन्म लग> से इस पकार का योग नहीं हो रहा है, तब शनि की साढ़ेसाती का पूर्ण अशुभ फल आपको नहीं पाप्त होगा।

2. शनि की साढ़ेसाती चल रही है, किंतु गोचर में शनि जिस राशि में है, वह शनि की निज, स्वमूल त्रिकोण उच्च या मित्र राशि है तो शनि की साढ़ेसाती का पभाव आप पर अशुभ न होकर शुभ फलदायक ही होगा।

3. जन्म कुण्डली में शनि योग कारक हो, किसी ग्रह से युक्प या दृष्ट हो, शुभ भावों का अधिपति होकर शुभ भावों में विराजमान हो और जिस घर में बैठने से साढ़ेसाती आरंभ हो रही हो वह राशि भी उच्च या स्वमूल त्रिकोण राशियों में से हो तो साढ़ेसाती शुभफल पदायक होगी।

4. यदि कालखण्ड के अनुसार शनि का निवास दाहिनी भुजा, पेट, मस्तक, नेत्र में हो तो शनि की साढेक्वसाती कमशः विजय, लाभ, राजसुख और सुख पदान करने वाली होगी।

5. यदि शनि जन्मकालिक आश्रित राशि से तीसरे, छठें या ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो भी शनि की साढ़ेसाती का पूर्ण अशुभ पभाव नहीं पड़ेगा।

6. शनि की साढ़ेसाती या ढैया का पूर्ण अशुभ पभाव तभी होगा जब चन्द लग्न और जन्म लग> दोनों से ही ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई हो और शनि अपनी नीच, शत्रु राशि में स्थित हो, पाप ग्रहों से युक्प या दृष्ट हो और किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो। जीवन की पथम साढ़ेसाती का पभाव भी जीवन में नहीं के बराबर ही होता है। अतः केवल शनि की साढ़ेसाती या ढैया से हताश होने की कोई जरूरत नहीं है।

मान लिया उपरोक्प सभी दृष्टि से शनि की साढ़ेसाती अशुभ फल पदायक है, किंतु महादशा, अन्तरदशा और पत्यन्तर दशा किन्हीं ऐसे ग्रहों की है जो जन्म कुण्डली में योग कारक, शुभभावों के स्वामी या शुभग्रह या कारक ग्रहों के साथ या उनसे दृष्ट हो तो भी शनि की साढ़ेसाती के पभाव को क्षीण कर देंगे।

अस्तु आप अपनी कुण्डली में शनि की साढ़ेसाती का निर्धारण और उसके फलादेश के संबंध में किसी ऐसे ज्योतिषी की राय ले लें जो आपको इन सम्पूर्ण दृष्टियों से आपकी जन्म कुण्डली की शास्त्राrय समीक्षा या सम्यक विवेचन कर सपें।

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