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रेखा एक फिल्मी लीजेण्ड

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:17 Sep 2018 3:03 PM GMT

रेखा एक फिल्मी लीजेण्ड

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अंजनी सक्सेना

अपनी चार दशक की अभिनय यात्रा में अनेक मील पत्थर स्थापित करनेवाली रेखा किसी पहचान की मोहताज नहीं है।

साठ के दशक के आखिरी सालों में जब मदास के शिवाजी गणेशन की सांवली सी बेटी ने मुंबई की तरफ रूख किया तो मुकाबले के लिए साधना, शर्मिला, सायरा और आशा पारेख जैसी अभिनेत्रियों को सामने पाया। उस दौर में रेखा में कोई ऐसी खासियत भी नहीं थी कि उसे लेकर कोई सनसनी फैले। काफी पयासों के बाद मोहन सहगल की फिल्म सावन भादो में नवीन निश्चल के साथ रेखा को काम करने का मौका मिला। तब नवीन निश्चल भी नये थे। 1969 में शुरू हुई फिल्म 1970 में पदर्शित भी हो गई। फिल्म की सफल्ता के बावजूद रेखा की किस्मत नहीं चमक सकी।

करीब तीन-चार साल तक रेखा को फिर संघर्ष करना पड़ा। कुछ फिल्में जरूर आई परंतु वह असर नहीं छोड़ पाई जो सावन भादो ने छोड़ा था। इसका एक कारण यह भी था कि बाद की फिल्मों में रेखा ने अपना सांवला सलोना सुंदर बदन उघाड़ कर नहीं दिखाया था। कुछ साल बाद आई फिल्म पाण जाए पर वचन न जाए ने रेखा को जीवनदान दिया। सुनील दत्त केसाथ आई इस फिल्म का कथानक डाकू समस्या पर आधारित था, लेकिन इस फिल्म की सफलता में भी रेखा का जिक कुछ दृश्यों की वजह से हुआ था। रंजीत के रेखा के साथ वाले कुछ बलात्कार दृश्यों को फिल्म के पोस्टर पर छाप कर निर्देशकों ने खूब चांदी काटी पर रेखा के कैरियर की एक अंधी गली की तरफ मोड़ दिया, जिससे निकलने में रेखा को बरसों लग गए। फिर आई धर्मेन्द के साथ फिल्म कीमत इसमें भी उसी तरह के बदन दिखाऊ दृश्यों की पुनरावृत्ति थी। इस तरह निर्देशकों ने रेखा को सेक्स सिम्बल की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।

धर्मा, कहानी किस्मत की, वो मैं नहीं, कर्मयोगी जैसी कई फिल्में रेखा के खाते में दर्ज हैं जो पूरी तरह नायक पधान थी, पर रेखा को उनमें सिर्प इसलिए रखा जाता था कि दर्शकों ने उसे पसंद किया था। कहानी किस्मत की अर्जुन हिंगोरानी की वह फिल्म थी, जिसने सफल्ता के कई झंडे गाड़े थे, लेकिन सारा श्रेय धर्मेन्द को मिला या निर्देशक को। यही हाल धर्मा, कर्मयोगी और वो मैं नहीं का था जिनमें कमशः पाण, राजकुमार और नवीन निश्चल का सितारा बुलंदी पर पहुंचा। वास्तव में रेखा के दिन फिरे, अमिताभ से पल्लू बांधने के बाद। 1976 में आई दुलाल गुहा की दो अंजाने भले ही असफल रही, पर दर्शकों को अमिताभ के साथ रेखा की जोड़ी भली लगी। साल भर बाद यानी 1977 में इस जोड़ी की दो फिल्में आई ऋषिकेश मुखर्जी की अलाप और राकेश कुमार की खून पसीना। हालांकि कथानक के लिहाज से दोनों में जमीन-आसमान का अंतर था।

अलाप पूरी तरह पारिवारिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म थी, जबकि खून पसीना दर्शकों द्वारा ज्यादा पसंद की गई। इस सफलता के बाद अमिताभ-रेखा की जोड़ी की फिल्मों की भीड़ लग गई। कमशः मुकद्दर का सिकंदर पकाश मेहरा, गंगा की सौगंध सुल्तान अहमद, मिस्टर नटवरलाल राकेश कुमार, सुहाग मनमोहन देसाई, राम बलराम शक्पि सामंत, सिलसिला यश चोपड़ा तक यह दौर चलता रहा। सिलसिला इस जोड़ी की आखिरी फिल्म थी, जो बाकी फिल्मों की तरह फार्मूला न होकर एक पेम त्रिकोण थी। यही वह समय था जब रेखा का फिल्मी नायक (यानी अमिताभ) उनके निजी जीवन में भी नायक के रूप में देखा जाने लगा पर बात आगे बढ़ती इससे पहले ही दोनों के रास्ते बदल गए।

रेखा की जिंदगी का एक ऐसा त्रासद सच है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। रेखा की जब भी जोड़ी बनी टूटने के लिए ही बनी। विश्वजीत, किरण कुमार, नवीन निश्चल, विनोद मेहरा, सुनील दत्त, अमिताभ बच्चन और मुकेश अग्रवाल। इनमें मुकेश अग्रवाल ही एक शख्स था, जिसने रेखा से पूरे समाज के सामने डंका पीटकर शादी की थी लेकिन अग्रवाल की खुदकुशी ने सारी ख्gाशियों पर पानी फेर दिया। इस खुदकुशी का दोषी रेखा को ठहराया गया। रेखा को उन चंद अभिनेत्रियों में से एक माना जा सकता है जो बढ़ती उम्र के साथ और भी ज्यादा खूबसूरत हो गई वर्ना सावन भादो और ऐलान की रेखा को देखकर कौन कह सकता था कि दोयम दर्जे की फिल्मों से अपना कैरियर शुरू करने वाली अभिनेत्री एक दिन सफलता की चोटी पर होगी। रेखा का यह सांवलापन भी इस दौरान धुल गया, जो एक खामी की तरह रेखा से चस्पा था। जीनत अमान कभी उसकी पतिद्वंद्वी थी, पर आज लगभग ओझल हो चुकी हैं। आंसू बने अंगारे में यदि वह पुलिस की वर्दी में सड़क के गुंडों को पीटती नजर आती है तो मैडम एक्स में अमिताभ मार्का एंग्रीवूमैन भूमिका में है। कुछ वैसी ही भूमिका खिलाड़ियों का खिलाड़ी में है। यदि इस अभिनेत्री की वास्तविक पतिभा वाली फिल्मों का जिक किया जाए तो खूबसूरत पहली फिल्म थी, जिसमें ऋषिकेश मुखर्जी ने रेखा को उसकी पूरी पतिभा के साथ निखरने का मौका दिया था।

इस फिल्म में रेखा ने एक ऐसी चुलबुली लड़की का किरदार अदा किया था, जो एक सख्त महिला के अनुशासन को पिघला कर मोम बना देती है, फिर आई गोविंद निहालानी की विजेता जिसमें पति और बेटे के अंतर्द्वद्व में फंसी मां की वेदना को रेखा ने साकार किया था। यह भूमिका पूरी तरह खूबसूरत के विपरीत थी पर रेखा ने इसे भी बखूबी किया। जब्बार पटेल की मुसाफिर गिरीश कर्नाड की उत्सव, ऋषिकेश मुखर्जी की झूठी और श्याम बेनेगल की कलयुग के साथ रेखा ने कई ऐसे निर्देशकों के साथ काम किया जो कला फिल्मों के निर्देशक माने जाते हैं। उमराव जान (मुजफ्फर अली) और उत्सव (शशिकपूर) भी रेखा की उन चुनिंदा फिल्मों में से है, जो रेखा को अभिनेत्री रेखा बनाने के लिए हमेशा याद किए जाएंगे।

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