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मानवता के नायक

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:17 Sep 2018 3:52 PM GMT

मानवता के नायक

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राजेंद यादव

विगत दिनों केरल की बाढ़ के दृश्यों को टीवी पर देखते हुए कई बार बहुत घबराहट हुई, लेकिन जिस तरह लोगों को एक-दूसरे की मदद करते देखा उससे मानवता में आस्था भी मजबूत हुई। लगा कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। इंसानियत जिंदा है अभी। एक मनुष्य की पुकार पर दूसरा मनुष्य मदद के लिए हाथ बढ़ाता है।

केरल का राहतकार्य देखकर जीवन में विश्वास बढ़ा। यह भरोसा हुआ कि मनुष्य अपने जज्बे से तमाम मुसीबतें झेल लेगा। वह कभी अकेला नहीं पड़ेगा। बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए नैशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ) और सुरक्षा बल तो बाद में आए, सबसे पहले मोर्चा संभाला मछुआरों ने। उन्होंने दिन-रात एक करके लोगों को बचाया। सरकार ने खुश होकर हर मछुआरे को 3000 रुपये देने का ऐलान किया, लेकिन उन्होंने पैसे लेने से इनकार कर दिया यह कहते हुए कि मानवता की भलाई की कीमत नहीं होती। सोशल मीडिया पर वायरल हुई 32 वर्षीय जैसल केपी नामक मछुआरे की तस्वीर भुलाए नहीं भूलती। जैसल कुछ महिलाओं और बच्चों को नाव से ले जा रहे थे। जब कुछ महिलाओं को नाव में चढ़ने में दिक्कत हुई तो जैसल ने लेटकर अपनी पीठ को सीढ़ी बना दिया।

सेना, एनडीआरएफ, इंडियन कोस्ट गार्ड और रैपिड ऐक्शन फोर्स के जवान दिन-रात हर तरह की मुसीबतें झेलकर लोगों को बचाते रहे। वे सिर्फ ड्यूटी नहीं कर रहे थे। वे `ड्यूटी'

से बहुत कुछ ज्यादा कर रहे थे। अगर एनडीआरएफ के कन्हैया कुमार सिर्फ ड्यूटी निभाने की जेहनियत में होते तो वह एक टूट रहे पुल से एक बच्ची को नहीं निकाल पाते। यह काम उन्होंने अपनी जान पर खेल कर किया। आखिर क्या जरूरत थी। कलेक्टर एनएसके उमेश को अपने कंधों पर चावल की बोरी ढोने की? जाहिर है वह महज सरकारी ड्यूटी नहीं कर रहे थे, इंसानियत के पति अपना फर्ज निभा रहे थे।

शौर्य चत्रढ विजेता कैप्टन पी राजकुमार ने एक ऐसे इलाके से 26 लोगों को एयरलिफ्ट किया जहां मौजूदा स्थिति में इंसान का जाना बेहद मुश्किल था। 62वीं वाहिनी स्थित बीएसएफ यूनिट ने बचाव अभियान के लिए मुख्यालय से अनुमति आने का इंतजार नहीं किया। उसके जवान बचाव में जी-जान से जुट गए। उन्होंने अपना राशन बाढ़ पीड़ितों में बांट दिया। उन्होंने अपनी जेब से तत्काल 1.80 लाख रुपये जमा कर पीड़ित को दे दिए। हमें अपने सिस्टम और उसकी एजेंसियों का सिर्फ दोष देखने की आदत सी हो गई है। बुराई की इतनी चर्चा होती है कि हमें लगता है कि हमारे चारों ओर सब कुछ बुरा ही है। असल में बुराई जोर-जोर से बोलती है और अच्छाई चुप रहकर अपना काम करती है।

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