Home » रविवारीय » अशोक कुमार से दादा मुनि तक

अशोक कुमार से दादा मुनि तक

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:28 Sep 2018 5:28 PM GMT

अशोक कुमार से दादा मुनि तक

Share Post

अंजनी सक्सेना - विनायक फीचर्स

बॉलीवुड में अभिनेता अशोक कुमार ने जो ख्याति अर्जित की और फिल्म जगत को जो अमूल्य योगदान दिया वह अविस्मरणीय है। सिल्वर स्कीन पर अशोक की सहज अभिव्यक्पि और पात्र को जीवंत करने की कला विरले ही कलाकारों में दिखाई देती है। 13 अक्टूबर 1911 को भागलपुर बंगाल में जन्में इस कलाकार का नाम कुमुद लाल पुंजीलाल गांगुली था। परिवार में किसी ने नहीं सोचा था कि बेटा कुमुद बाद में चलकर अशोक कुमार के रूप में इतनी ख्याति अर्जित करेगा। उन्हें बाद में संजय अशोक कुमार के रूप में भी जाना गया, लेकिन अशोक कुमार और फिर दादा मुनि के रूप में ज्यादा जाने गए। प्यार से सभी इंडस्ट्री में उन्हें बडक्वे भाई की तरह सम्मान देते थे और इसीलिए इस नाम से पुकारते थे।

बहुत कम लोगों को पता है कि वे सिर्प एक्टर ही नहीं पेंटर के रूप में भी ख्याति रखते थे। उनकी कॉलेज की शिक्षा कलकता के पेसीडेंसी कॉलेज में सम्पन्न हुई। 1936 में बॉम्बे टॉकीज के पोडक्शन में बनी `जीवन नैया' से उन्होंने अपने फिल्म सफर की शुरुआत की। यह भी इत्तेफाक था कि फिल्म के मुख्य कलाकार नज्म उल हुसैन बीमार पडक्व गए और कंपनी को नए हीरो की तलाश थी। फिर क्या था अशोक कुमार का भाग्य तो जैसे इंतजार में था उन्हें फलक पर बैठाने के लिए। निर्देशक और स्टूडियो के हेड हिमांशु रॉय को अशोक भा गए, क्योंकि तब अशोक उनकी लेबोरेटरी में काम करते थे। फिर क्या था और एक महान कलाकार की फिल्मी पारी की शुरुआत हो गई और छह दशकों तक अशोक सिल्वर स्कीन पर छाए रहे। इसके बाद अशोक कुमार ने पीछे मुडक्वकर नहीं देखा और 1936 में देविका रानी के साथ आई उनकी फिल्म ने तो उन्हें इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया, इस फिल्म का नाम था `अछूत कन्या'। आजादी से पहले सामाजिक विषय पर आधारित इस फिल्म को खूब सराहा गया, जिसमें एक ब्राह्मण लडक्वका छोटी जाति की लडक्वकी के पेम की गिरफ्त में आ जाता है। इसके बाद 1937 में आई उनकी फिल्म इज्जत, सावित्री और 1938 में बनी फिल्म निर्मला भी खूब पसंद की गई। 1939 में वे लीला चिटनिस के अपोजिट फिल्म कंगना में भी पसंद किए गए, 1940 में उनकी फिल्म बंधन और 1941 में आई फिल्म झूला में भी वे सराहे गए और खास बात यह रही है कि इस समय उन्होंने अपने खुद के गाने भी गाए, जिनमें से `मैं वन का पंछी...' गीत काफी चर्चित रहा। अशोक कुमार की खासियत थी कि उन्होंने अपना खुद का नया अंदाज पस्तुत किया और थियेटर के पारंपरिक स्टाइल से हटकर कुछ करने का पयास किया। उन्होंने 1943 में बनी फिल्म किस्मत में एंटी हीरो का रोल निभाया और इस फिल्म ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की। 1949 में बॉम्बे टॉकीज की महल ने भी सफलता हासिल की जिसमें मधुबाला के साथ उन्होंने अभिनय किया था। सिगरेट का धुआं उडक्वाते किमिनल की भूमिका में भी सिल्वर स्कीन पर उन्होंने कमाल कर दिखलाया। 1960 में अशोक ने सिर्प कैरेक्टर रोल निभाने की ओर कदम बढक्वा लिया। इस तरह उन्होंने हर तरह के पात्र को परदे पर जीवंत किया। टेजडी क्वीन मीना कुमारी के साथ भी उन्होंने 20 बार जोडक्वी बनाई। परिणिता, बहू बेगम, आरती और एक ही रास्ता आदि मीना कुमारी के साथ उनकी खास फिल्में थीं। पहली बार अशोक ने टीवी पर धारावाहिक हम लोग की एंकरिंग की और इस धारावाहिक की लोकपियता में अशोक कुमार का भी काफी हाथ रहा है। धारावाहिक बहादुरशाह जफर में भी उनका अभिनय यादगार था। उनकी आखरी फिल्म 1997 में बनी `आंखों में तुम हो' रही।

उनके भाई किशोर कुमार भी इंडस्ट्री के ख्यात गायक और अभिनेता थे एक और भाई अनूप कुमार ने भी कई फिल्मों में काम किया। तीन भाइयों की एक साथ आई फिल्म चलती का नाम गाडक्वी भी एक महान कृति थी। इस हास्य फिल्म में तीनों भाइयों ने खूब धमाल मचाया। अशोक कुमार की स्टाइल की नकल कई हास्य कलाकारों ने स्टेज पर उतारकर खूब पशंसा बटोरी। 1987 में अपने भाई किशोर कुमार की मृत्यु के बाद अशोक ने अपना जन्मदिन सेलिबेट करना ही बंद कर दिया था। उनकी बहन सती देवी ने मुखर्जी परिवार के शशधर मुखर्जी से विवाह रचाया था। 10 दिसम्बर 2001 को यह महान अभिनेता संसार को अलविदा कह गया। (विनायक फीचर्स)

Share it
Top