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बेरोजगारी एक गम्भीर समस्या

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:23 Oct 2018 2:19 PM GMT

बेरोजगारी एक गम्भीर समस्या

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संदीप सक्सेना

व र्तमान समय में अच्छा रोजगार पाना या शासकीय सेवा में रोजगार पाप्त करना ऐसा हो गया है जैसे किसी निर्धन को कल्पवृक्ष मिल जाना।

आजकल शासकीय अथवा अशासकीय सेवा के लिए पद की पूर्ति हेतु जब विज्ञापन निकाला जाता है तब अधिकांश मामलों में सिर्प खानापूर्ति के लिए ही विज्ञापन का पकाशन किया जाता है और वे अधिकारी जो साक्षात्कार लेते हैं वे चुने जाने वाले उम्मीदवार के बारे में पहले से ही फैसला कर लेते हैं।

अनेक विभागों में पदों की पूर्ति के लिए आजकल एक लिखित और एक मौखिक परीक्षा का आयोजन किया जाता है। इन परीक्षाओं हेतु इन विभागों द्वारा बीस रुपये से लेकर सौ रुपये तक शुल्क लिया जाता है। इन परीक्षाओं में भी सौ में से 99 व्यक्तियों को मायूस ही होना पड़ता है क्योंकि यहां पर पद कम और परीक्षार्थी अधिक होते हैं और जो व्यक्ति इन परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो जाते हैं उनकी लाटरी निकल जाती है। नौकरी पाने के लिए ये बेरोजगार व्यक्ति इन परीक्षाओं को एक ही बार ही नहीं बल्कि कई-कई बार देते हैं।

वर्तमान में जब भी कोई विभाग या संस्थान को 10 या 20 पद पर किसी उम्मीदवार की नियुक्ति करनी होती है तो वह इसके लिए कुछ पचलित समाचार पत्रों, रोजगार और निर्माण तथा रोजगार समाचार पत्रों में उसके लिए विज्ञापन का पकाशन कराता है। इन पदों की पूर्ति हेतु हजारों अर्जियां आती हैं। इन अर्जियों को एक निम्न श्रेणी लिपिक द्वारा छांटा जाता है तथा मामूली कमियों वाली अर्जियों को निकालकर अलग कर दिया जाता है। मामूली कमियां अनेक पकार की होती हैं जैसे विज्ञापन में पकाशित आवेदन करने की अंतिम तिथि के पश्चात अर्जी पाप्त होना, मूल निवासी पमाण पत्र का संलग्न न कराया जाना आदि। इस सब पकिया के पूरा हो जाने के पश्चात उम्मीदवार को साक्षात्कार अथवा परीक्षा के लिए बुलाया जाता है। इन सब पकियाओं के पूरा होने पर सौ में से एक व्यक्ति को ही रोजगार पाप्त होता है। इस पकार एक ही मकसद की पूर्ति होती है कि जीवन जीने का कोई भी सहारा खोजने वाले सौ व्यक्तियों में निन्यानबे को हताशा का अभिशाप पाप्त होता है। वर्तमान समय में डाकघर और बैंकों अथवा रेल्वे टिकट घरों के सामने लम्बी भीड़ देखी जाती है क्योंकि काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या कम होती है और काम बहुत ज्यादा। हमारी सरकार के पास वर्तमान में इतना धन नहीं है कि वह और अधिक कर्मचारियों को इस कार्य के लिए नियुक्त कर सके और वही काम जो चार घंटे में पूरा होता है उसे दो घण्टे में पूरा करवा कर समय की बचत करवाये।

आज के समय में पत्येक व्यक्ति बैंक, रेल्वे या इंजीनियर तथा डॉक्टर की पोस्ट पर रोजगार पाप्त करने को लालायित रहता है जबकि कोई भी व्यक्ति शिक्षक जो कि राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करते हैं का पद ग्रहण नहीं करना चाहता है। यहां पर इसका कारण वेतन विसंगति तथा तरक्की के अवसरों में अंतर होना तो है ही साथ ही आज सरकार शिक्षकों जैसे गरिमामय पद की भी पूर्ति दैनिक वेतन पर शिक्षा कर्मी की नियुक्ति करके कर रही है। जिनके भविष्य के बारे में कभी भी स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। वर्तमान शिक्षा पद्धति भी काफी दोषपूर्ण है। यद्यपि हमारी सरकार ने उसमें सुधार के अनेक पयत्न किये हैं। फिर भी आज विश्वविद्यालय से डिग्री पाने वाला उम्मीदवार जानता है कि उसे जो विषय पढ़ने को मिलते हैं उनकी उपयोगिता बैंक में नोट गिनने या डाक टिकिट बांटने में नहीं होगी। शासकीय या अशासकीय सेवा पाप्त करने में आज के युवा के सामने आयु सीमा एक सबसे बड़ी बाधा है।

इसके कारण वह एक निश्चित आयु तक ही नौकरी पाप्त करने का पयास कर सकता है। इसके पश्चात उसे निराशा ही हाथ लगती है। आयु सीमा का यह नियम हमारे सामने उस विदेशी सरकार ने बनाया था जो कि यह नहीं चाहती थी कि ज्यादा से ज्यादा भारतीय व्यक्ति शासकीय सेवा को पाप्त कर सपें। साथ ही यह भी विचारणीय है कि एक निश्चित आयु के पश्चात उस व्यक्ति में वही कार्य करने की योग्यता समाप्त हो जाती है जिसके लिए वह पहले योग्य था। यदि ऐसा ही है तो शासकीय नौकरी कर रहे उन सभी व्यक्तियों को उस पद से पदच्युत कर देना चाहिए जो उक्त सीमा के पश्चात भी उक्त पद पर कार्य करते रहते हैं। वर्तमान समय में यह अति आवश्यक हो गया है कि हमारे भारत में समस्त व्यक्तियों को रोजगार के समान अवसर पाप्त हों। इसके लिए हमें आज एक ऐसे समाज की आवश्यकता है जहां पत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता और सामर्थ्य के आधार पर रोजगार पाप्त हो सके।

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