पकृति के अलौकिक सौंदर्य का पतीक है तीरथगढ़
शत्रुघ्न सिंह राजपूत
बस्तर में स्थित कोटमसर गुफा को सन् 1951 में स्व. शंकर तिवारी ने खोज निकाला था। यह गुफा 330 मीटर लम्बी है। इसकी गहराई 20 से 72 मीटर तक है। सूचना पट्टिका के अनुसार इसमें भूमिगत नाला है। कोटमसर गुफा देखने के लिये दर्शक टैक्स देते हैं। पर्यटन टैक्स 15 रुपए पतिव्यक्पि और वाहन शुल्क 50 रुपए सभी दर्शकों से लिये जाते हैं। कहा जाता है कि आपको आगे गाइड मिलेंगे। कतार में बड़ी उत्सुकता के साथ लंबी पतीक्षा के बाद नंबर लग गया तो अहोभाग्य अन्यथा दिन ढलने से पहले लौटना पड़ सकता है। गुफा के अंदर गैसबत्ती लिये गाइड रास्ता बताते हैं। गुफा के बारे में उन्हें खुद को कुछ नहीं मालूम। वे खुद कोई सरकारी सेवक नहीं हैं। अतः निर्भीक हैं। गुफा में घुसते-घुसते कमशः नीचे, और नीचे, और नीचे आप चले जा रहे हैं। दबाव बढ़ रहा है। घुटन महसूस हो रही है। हिम्मत फिर भी शेष है तो आगे बढ़ो, वरना लौट आओ। गुफा में और आगे आखिरी छोर तक कोई नहीं पहुंच पाया। चट्टान से पानी की बूंदें टपकती हैं। फिसलन है नीचे पानी है और आप लौटना चाहेंगे, गुफा के बारे में गाइड कुछ बताते ही नहीं, इस गुफा को लेकर लोग तरह तरह की अटकलें लगा रहे हैं। इसका विश्वसनीय इतिहास पता नहीं।
आधी सदी बीत गई पर खोज क्यों नहीं हुईं? यह गुफा पाकृतिक घटनावश बनी अथवा किसी राजा-महाराजा ने बनवायी थी?
अथवा किसी संत-महात्मा की कभी तपस्या स्थली रही है। लौटते वक्त गुफा की ऊपरी सीढ़ी पर धैर्य खो रहे दर्शक खड़े हैं। एक छोटी-सी भूल से कोई भी फिसल सकता है, चाहे वह लौटने वाला दर्शक हो अथवा गुफा में पवेश करने वाला। कोई सचेत करने वाला नहीं है। आप ही खुद संभलिए। देश के दूरस्थ महानगरों, नगरों व गांवों से आने वाले दर्शक यहां बड़ी उम्मीदें लेकर आते हैं पर उनकी उम्मीदों पर तब पानी फिर जाता है, जब अत्यधिक अव्यवस्था से होकर उन्हें गुजरना पड़ता है। कच्ची सड़क है। मुख्य सड़क 8-10 किलोमीटर दूर है। सरकार पर्यटन के नाम पर पैसा वसूलने में कोई कोताही नहीं बरत रही है, सुविधाएं लगभग शून्य हैं।
फिर भी आप तीरथगढ़ जाइये, पकृति के सौन्दर्य को देखकर कौन सम्मोहित नहीं होगा। हजारों फीट रूंचे पत्थर की चट्टान के ऊपर से पानी बह रहा है। यह झरना भी अद्भुत है। ऐसा लगता है जैसे पकृति ने इसे बडेक्व प्यार से तराशा है। झरने के सौन्दर्य को देखकर दुनिया की सारी चिन्ताएं काफूर हो जाती हैं। चारों ओर विशाल पर्वत शृंखलाएं आपके पकृति दर्शन की साक्षी सी लगती है। ऐसे में कहीं बारिश का मौसम हो तब क्या कहने हैं? सब कुछ धुआं-धुआं दिखता है। नीचे से ऊपर तक चट्टानों की पर्तें पता नहीं कब से आपकी पतीक्षा कर रही हैं। तीरथगढ़ के बाद चित्रकूट, शासन द्वारा घोषित पर्यटन स्थल निकल जाइए। चित्रकूट पहुंचने के पूर्व ही आपको पर्यटन टैक्स देना होगा। पर्यटन टैक्स पटाकर हम आगे बढ़ते हैं। इन्दावती नदी को पणाम करते हैं। विशालतम चट्टानों से होकर नदी का पानी हजारों फीट नीचे से गिर रहा है। विशाल चट्टानें आपके साहस की गाथाएं कह रही हैं। आप नाव में बैठे हैं। बोटिंग हो रही है। संध्या का दृश्य सुहावना है।