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भारतीय परिपेक्ष्य में किराये की कोख

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:23 Oct 2018 2:28 PM GMT

भारतीय परिपेक्ष्य में किराये की कोख

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डॉ0 कामिनी वर्मा

135 करोड़ आबादी वाले देश भारत में बहुत से दम्पति र्निउदरता का दर्द सहन कर रहे है। जहॉ कुछ साल पूर्व वैश्विक स्तर पर परिवार को सीमित रखने पर ध्यान दिया जाता था वहीं आज सम्पूर्ण विश्व में अत्यधिक तनाव, देर से विवाह, नशे की लत एवं पर्यावरण प्रदूषण के कारण बहुत से युगल संतान प्राप्ति की इच्छा होने के बावजूद संतानोंत्पत्ताि में असमर्थ हैं। ऐसी स्थिति में उनके सामने संतान प्राप्ति के दो विकल्प होते है या तो वह किसी अन्य के अथवा किसी अनाथ बच्चे को संतान के रूप में स्वीकार कर ले अथवा किसी वैज्ञानिक तकनीक से शिशु का निर्माण कर ले। किसी अन्य की संतान को अपनी संतान के रूप में अपनाने में अधिकांश युगल हिचकिचाते है, ऐसे में उनको किराये की कोख ''द्वारा शिशुप्राप्त कर लेना बेहतर विकल्प दिखाई पड़ता है।

किराये की कोख को 'स्थानापन्न मातृत्व' तथा अंग्रेजी में सरोगेसी के नाम से जाना जाता है। सरोगेसी शब्द लैटिन भाषा के 'सबरोगेट' शब्द से आया है, जिसका अर्थ होता है किसी और को अपने काम के लिये नियुक्त करना। सरोगेसी चिकित्सा विज्ञान की एक ऐसी तकनीक है जिसमें कोई महिला अपनी गर्भावस्था किसी अन्य अनुर्वर युगल को शिशु प्राप्ति के निमित्त प्रदान करती है। अर्थात् सरोगेसी से अभिप्राय है 'मां का विकल्प' सरोगेट मदर एक ऐसी मां होती है जिसके गर्भ में किसी अन्य युगल का भ्रूण विकसित होकर शिशु का रूप धारण करता है। इस प्रािढया में संतान के इच्छुक दम्पताि के अण्डाणु और पाणु को प्रयोगशाला में निषेचित करके भ्रूण का निर्माण किया जाता है तदुपरान्त उसे सरोगेट मदर के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। गर्भावस्था की नियत अवधि तक यह भ्रूण उस महिला की कोख में पोषित होता है तथा प्रसवोपरान्त यह बच्चा उस युगल का हो जाता है जिनके अण्डाणु और पाणु से भ्रूण निर्मित हुआ था।

इस तकनीक की आवश्यकता उन परिथतियों में होती है जब आई.वी.एफ. उपचार असफल हो गया हो, गर्भाशय में पांमण हो, बार बार गर्भपात हो रहा हो, गर्भाशय अथवा श्रोणि में कोई विकृति हो, गर्भाशय कमजोर हो तथा महिला को हृदय की बीमारी अथवा उच्च रक्तचाप की समस्या होने के कारण गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य समस्या होने का खतरा हो। भारत में सरोगेसी का व्यवसाय काफी पुराना है और आज भारत वैश्विक स्तर पर सरोगेसी व्यवसाय का केन्द्र बन गया है जहां इस विधि से माता-पिता बनने वाले दम्पतियों की संख्या बढ़ी है वही दूसरी ओर इसके दुरूपयोग की घटनायें भी बढ़ी है। भारत में बालीवुड अभिनेता शाहरूख खान गौरी खान की तीसरी संतान अबराम का जन्म सरोगेसी से हुआ, आमिर खान की पहली पत्नी से इरा जुनैद थे पर किरण राव से विवाह के बाद उन्होने तीसरी संतान सरोगेसी विधि से उत्पन्न की सोहेल और सीमा खान की संतान मोहाना भी इसी विधि से उत्पन्न हुये। सतीश कौशिक की बेटी वंशिका सरोगेसी प्रािढया से उत्पन्न हुई। बालीवुड डायरेक्टर और कोरियोग्राफर फराह खान और शिरीष कुन्द्रा आई.वी.एफ. तकनीक से तीन शिशु उत्पन्न किये। अभिनेता तुषार कपूर सरोगेसी तकनीक की सहायता से पिता बने है। जो सरोगेसी प्रािढया जरूरत के लिये आरम्भ की गई थी वह अब व्यवसाय और विलासिता का रूप धारण कर चुकी है बालीबुड सितारे जिनके पास पहले से ही एक या दो संतान है वह भी इस विधि से सन्तान उत्पन्न कर रहे हैं।

सरोगेसी के दौरान यदि सरोगेट मदर की मृत्यु हो जाय या एक से अधिक बच्चे उत्पन्न हो जाये या अनचाहे लिंग वाले शिशु का जन्म हो जाये ऐसी दशा में भी स्थितियॉ जटिल हो जाती है। अनचाहे शिशु को लोग अपनाने से इन्कार कर देते हैं तथा मृत सेरोगेट मदर के परिवार के लिये भी कोई मुआवजा धनराशि की व्यवस्था नहीं की जाती है।इन्हीं दुश्वारियों के मद्देनजर केन्द्राrय मत्रिमण्डल ने 2016 में सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2016 लाया गया जिसके तहत-सिर्प उन विवाहित दम्पति को सरोगेसी की अनुमति दी जायेगी। जो किसी चिकित्सीय कमी के कारण संतानोत्पति नहीं कर सकते।

सरोगेट मदर को इच्छित दम्प्ताि का करीबी रिश्तेदार होना चाहिये। सरोगेट मदर गर्भावस्था के लिये अपने अण्डाणु दान कर सकेगी। यदि कोई दम्पताि सरोगेसी से उत्पन्न शिशु को नहीं अपनायेगा तो उसे 10 साल की कैद या 10 लाख रूपया जुर्माना भरना होगा। सरोगेसी के लिये इच्छुक दम्पताि को भारतीय नागरिक होने के साथ कम से कम पांच साल से विवाहित होना चाहिये तथा उनमें कम से कम एक बांझपन से पीड़ित होना अनिवार्य है। विदेशी दम्पताि को सरोगेसी की अनुमति नहीं मिलेगी।

सरोगेट मदर विवाहित हो तथा उसकी कम से कम एक अपनी स्वस्थ संतान हो। सरोगेट मदर को उचित चिकित्सा खर्च के अतिरिक्त कोई भुगतान नहीं किया जायेगा। सरोगेट शिशु को इच्छुक दम्पति का जैविक शिशु माना जायेगा।

लिव इन रिलेशन में रहने वाले, अविवाहित युगल, सिंगल पैरेन्ट बनने के इच्छुक तथा समलैंगिको को इस सुविधा का लाभ नहीं मिलेगा। अगर दम्पति की अपनी संतान पहले से है या उन्होंने कोई शिशु गोद ले रखा है तो उन्हें सरोगेसी की अनुमति नहीं मिलेगी। सरोगेसी से जुड़ी जटिलताओं को नियत्रित करने में उक्त सरकारी नियत्रण निश्चित ही सराहनीय प्रयास हैं। इससे किराये पर कोख देने वाली मां के अधिकारों की रक्षा होगी तथा इस प्रािढया से उत्पन्न बच्चों के अभिभावकों को विधिक मान्यता प्राप्त होगी। बच्चे के बेहतर भविष्य को ध्यान में रखते हुये लिवइन रिलेशन शिप में रहने वाले युगलों, एकल अभिभावक, समलैंगिक सम्बन्ध रखने वाले जोड़ो तथा जिनके पास पहले से अपना बच्चा या गोद ली हुई संतान है, को सरोगेसी की अनुमति न दिये जाने का प्रावधान है। परन्तु यदि एकल अभिभावक अकेले बच्चे का पालन पोषण भली प्रकार से कर सकता है तो उसे और समलैंगिको को क्या इस अधिकार से वंचित किया जाना क्या उचित है? इसी प्रकार लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ो को जब कानूनी मान्यता मिली हुई है तो उन्हे परिवार क्यों नहीं माना जा सकता है और उन्हें सरोगेसी विधि से बच्चा उत्पन्न करने की अनुमति क्यों नहीं प्राप्त हो सकती है? निश्चित ही विचारणीय बिन्दु हैं। जिन दम्पत्तियों के पास पहले से ही बच्चे है उन्हें सरोगेसी की अनुमति न देना भी उनकी निजता का हनन है विदेशी दम्पताियों द्वारा भारत में इस विधि को अपनाने से मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा मिलता है तथा देश की आय में वृद्धि होती है। विधेयक में पांच साल तक विवाहित जीवन व्यतीत करने के बाद ही सरागेसी की अनुमति है। यदि दम्पत्ताि को दो साल में ही पता चल जाता है कि वह माता-पिता नहीं बन सकते तो और शीघ्र संतान चाहते हैं तो उनके लिये पांच साल तक इंतजार करना उनकी निजता का हनन है।भारतीय दृष्टिकोण से यदि देखा जाय तो गर्भाधान संस्कार को भारतीय धर्मग्रन्थों में उल्लिखित सोलह संस्कारों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस संस्कार के पीछे मान्यता है कि इससे उत्तम गुणों वाली संतान की प्राप्ति होती है। सम्पूर्ण गर्भकाल में माता को सौहार्दपूर्ण वातावरण में रखा जाता है।

प्राकृतिक ािढया के परिणामस्वरूप हुये गर्भधारण में मां का ममत्व, उसका वात्सल्यपूर्ण दूध, पिता की स्नेह भरी थपकी से संतान भावात्मक सुरक्षा पाप्त करती है जो उसके सामाजिक सांस्कृतिक व्यक्तित्व को सुदृढ़ता प्रदान करती है। बच्चों में संस्कारों का विकास गर्भकाल से ही आरम्भ हो जाता है। किरायें की कोख से जन्म लेने वाले बच्चे को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। प्राकृतिक रूप से उत्पन्न बच्चा मां का अंग होता है। मां के खून से सिंचित होकर आनुवांशिक गुण प्राप्त करता है सेरोगेसी तकनीक से सदियों से स्थापित मापदण्ड एवं जीवन मूल्य ध्वस्त हो जायेगें। माता का गर्भाशय एक बच्चा उत्पन्न करने वाली मशीन बन कर रह जायेगा किराये की मां, जो पैसा लेकर बच्चा उत्पन्न करेगी उसके मन में बच्चे के प्रति न तो कोई भावना होगी न ही संवेदना अत बच्चा भावानात्मक रूप से दुर्बल होगा।

सरोगेट मदर बनने वाली मां और उसके अपने बच्चे के दृष्टिकोण से देखा जाय तो मां को सावधानी बरतने के लिये काफी हिदायते दी जाती है। उसे गर्भाधान प्रािढया आरम्भ होते ही अपने शिशु को स्तनपान कराने से रोका जाता है। प्राकृतिक रूप से निर्मित होने वाले दूध को, दवाइयाँ देकर बनने से रोका जाता है। इससे बच्चे के मौलिक अधिकारों पर आघात होता है। किराये के गर्भकाल में वह अपने शिशु को गोद में नहीं ले सकती उसका शिशु मां के ममत्व से भी एक लम्बे समय तक वंचित रहता है। सरोगेट मां को गर्भ की सुरक्षा के लिये समयानुसार दवाइंया तो दी जाती है पर उसके स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया जाता है। जैसे ही बच्चे का जन्म हो जाता है।

उसके कुछ समय बाद उसे अस्पताल से हटा दिया जाता है। उसके बाद से स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल, आराम व पौष्टिक खाद्य पदार्थ नहीं मिल पाता अत उसका स्वास्थ्य भी क्षीण होता है। इस सरोगेसी तकनीक द्वारा संतान उत्पत्ति मार्ग में बहुत सी दुश्वारियाँ व जटिलतायें है। सरोगेसी से सम्बन्धित बने कानून सराहनीय हैं। इसकी जटिलताओं को रोकने में एक अच्छा प्रयास है परन्तु इसे विस्तृत किये जाने की आवश्यकता है जिससे सरोगेसी तकनीक का दुरूपयोग रोका जा सके और निसंतान दम्पतियों के लिये बेहतर चिकित्सा के विकल्प के रूप में, चिकित्सा विज्ञान का वरदान साबित हो सके।

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