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चौंकाने, छकाने और सताने वाला साल

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:24 Dec 2018 4:17 PM GMT
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जैसे ही कोई अर्थव्यवस्था राजनीति के नजदीक जाती है, वैसे ही उसे सरकार के महत्वपूर्ण आर्थिक कदमों के रूप में देखने का सिलसिला बढ़ जाता है। इस दृष्टि से देखें तो 2018 का साल एक तरफ तो नरेन्द्र मोदी नीत एनडीए सरकार के कुछ लोकलुभावन आर्थिक घोषणाओं का गवाह रहा तो दूसरी तरफ कई मामलों में यह साल इस सरकार के लचर, विवादास्पद और ािढयान्वयन की दृष्टि से विफल आर्थिक कदमों का भी गवाह बना। एक तरफ साल 2018 भारतीय अर्थव्यवस्था में कई बड़े आर्थिक व मौद्रिक घोटालों के रूप में दर्ज हुआ तो दूसरी तरफ इस दौरान सरकार द्वारा विभिन्न आर्थिक अपराधों को दूर किये जाने की एक अच्छी खासी कवायद भी की गई।

वर्ष के अंत में देश की अर्थव्यवस्था किसान कर्जमाफी के रूप में भारत की चुनावी राजनीति को परवान चढ़ाती दिखी। साल 2018 का जब आगाज हुआ था, तब देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही नोटबंदी और फिर जीएसटी के तमाम फ्रभावों व दुफ्रभावों लबरेज लोगों से आंखमिचौली कर रही थी। मसलन नोटबंदी के चलते 2017 में व्यापार, उत्पादन, रोजगार, आमदनी, निवेश और राष्ट्रीय विकास दर में जो गिरावट आयी थी, अर्थव्यवस्था उससे उबरने के लिए वर्ष 2018 की तरफ टकटकी लगाये थी। लेकिन साल 2018 के शुरूआती महीनों में ही देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी व्यावसायिक बैंक पीएनबी में एक बड़े घोटाले की खबर आयी। नीरव मोदी और मेहुल चौकसी नाम के दो मामा भांजे हीरा कारोबारी पीएनबी को करीब बारह हजार करोड़ रूपये का चूना लगाकर विदेश भाग गए।

लेकिन उनके फरार होने के करीब दो महीने बाद इस बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ। लेकिन इस घोटाले के पर्दाफाश होते ही देश के तमाम बैंकों में वर्षों से चल रहे तमाम घोटाले सामने आने लगे। एक-एककर देश में आधा दर्जन नये बैंक घोटाले सामने आये। सरकार ने आनन फानन में नीरव मोदी सहित इन सभी घोटालेबाजों के भारत स्थित तमाम "िकानों पर छापे मारे और उनकी कई परिसंपत्तियों को जब्त किया। बाद में सरकार करीब तीन आर्थिक कानून लायी। इसके तहत पहले बैंकों से लिए गए कर्जे की कर्ज वसूली ट्रिब्यूनल यानी डीआरटी के जरिये वसूली फ्रािढया तेज की गई। दूसरा बैकों व अन्य वित्तीय स्रोतों से कर्ज लिए कंपनियों पर दीवालिया निस्तारण कानून आरोपित किया गया जिसके तहत तमाम रियल एस्टेट कंपनियों द्वारा आवास खरीददारों से हाउसिंग स्कीम के नाम पर लिये गए धन को भी शामिल किया गया।

इस संबंध में तीसरा जो कानून लाया गया उसमें आर्थिक अपराधियों के विदेश फरार होने की स्थिति में उनकी देश स्थित सभी संपत्ति को जब्त करने का फ्रावधान लाया गया। साल 2018 में नोटबंदी पर रिजर्व बैंक की बहुफ्रतीक्षित रिपोर्ट भी आयी जिसने नोटबंदी के संबंध में इस आमधारणा को सही साबित किया कि यह कदम काला धन खोजने में नाकाम साबित हुआ। रिपोर्ट से यह भी पता चला कि देश की करीब 99 फीसदी चलन मुद्रा सरकार के पास वापस आ गयी और बाकी का अधिकतर हिस्सा नेपाल और भूटान के रूट में होने का अनुमान लगाया गया। नोटबंदी ने न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मर्माहत किया बल्कि देश के सकल घरेलू उत्पाद को भी करीब दो लाख करोड़ रूपये की चपत लगायी। इससे अर्थव्यवस्था की ऊंची विकास दर से स्वाभाविक रूप से फ्राप्त होने वाले रोजगार और विकास दर को धक्का पहुंचा।

इस रिपोर्ट के बाद से केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के रिश्ते खराब हो गए। दोनों के बीच एक तरह से गतिरोध की स्थिति पैदा हो गयी। एक समय तो ऐसा भी हुआ कि जब सरकार को रिजर्व बैंक से रेपो दर में कमी लाये जाने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन मौद्रिक स्थायित्व को पहली फ्राथमिकता देने वाले रिजर्व बैंक ने कर्ज को सस्ता करने का कदम नहीं उ"ाया। इस पूरे मामले की परिणति रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे के रूप में दिखी। साल 2018 देश की मुद्रा रुपये के डॉलर के विरुद्ध घोर अवमूल्यन का भी गवाह बना। अमेरिकी डालर के मुकाबले भारतीय रुपये में करीब 15 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई। साल के मध्य में एक अमेरिकी डालर का मूल्य जो करीब 66 रुपये था, वह बढकर 75 रुपये तक गया। सरकार की तमाम घोषणाओं और रिजर्व बैंक द्वारा खुले बाजार में डॉलर जारी किये जाने के बावजूद रुपये की स्थिति संभल नहीं पायी।

साल-2018 में कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में भारी बढ़ोत्तरी की वजह से देश में पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। इसी तरह साल 2018 में यह उम्मीद की जा रही थी कि जीएसटी की व्यवस्था पूरी तरह से स्थापित हो जाएगी पर सरकार के आंकड़ों से ही साफ हो गया कि राजस्व वसूली एक या दो महीनों को छोड़कर लक्ष्य से कम ही हुई। दूसरी तरफ जीएसटी के पंजीकृत कारोबारियों को इसके रिटर्न दाखिल करने की व्यवस्था अभी तक रास नहीं आयी है। अभी भी करीब 45 फीसदी पंजीकृत कारोबारी अपना रिटर्न दाखिल नहीं करते जो इस बात का परिचायक है कि जीएसटी की अफ्रत्यक्ष कर व्यवस्था कोई सरल और सहज व्यवस्था नहीं है। साल 2018 में देश की हर तिमाही आने वाले विकास दर के आंकडों में भी उतार चढ़ाव देखने को मिला। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में पर्याप्त विकास दर हासिल करने को लेकर सरकार अब भी तरस रही है।

नरेन्द्र मोदी सरकार साल 2014 के बाद जनधन, जनसुरक्षा, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप और स्किल इंडिया जैसी कई चमकदार योजनाएं लायी। लेकिन साल 2018 इस सरकार की सौभाग्य योजना के लिए जाना जाएगा। जिसके तहत देश के करीब चार करोड़ घरों में मौजूदा साल के अंत तक बिजली कनेक्शन से जोड़े जाने का लक्ष्य पूरा किया जा रहा है, जबकि देश के सभी गांवों को बिजली से जोड़े जाने का लक्ष्य पूरा कर लिया गया है। इसके साथ ही साल 2018 में करीब सत्तर साल से फ्रतीक्षित एमएसपी को खेती की लागत के करीब पचास फीसदी के बराबर लाया गया। लेकिन इस संबंध में जो सबसे बड़ा सवाल है वह है इसके ािढयान्वयन का। दूसरी बड़ी बात यह है कि नुकसान देने वाले उत्पाद एमएसपी व्यवस्था में शामिल ही नहीं हैं जैसे-आलू, प्याज और टमाटर जैसी मौसमी सब्जियां।

साल के अंत में जिस तरह से किसानों की कर्जमाफी की घोषणाएं की गयी हैं, वह देश की अर्थव्यवस्था को फिर पंगु बनाएंगी। एक तरफ देश के बेईमान कारपोरेट समूह द्वारा बैंकों से हड़पा गया कर्ज करीब दस लाख करोड़ के एनपीए में तब्दील हो चुका है, दूसरी तरफ करीब चार लाख करोड़ रुपये की कर्जमाफी का पांसा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए फेंक दिया। इससे आशंका बन गयी है की कहीं ये दोनों मिलकर देश की अर्थव्यवस्था के ताबूत में आखिरी कील न "ाsंक दें ?

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