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जमानत अर्जी पर ली जाए दुष्कर्म पीड़िता की राय

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:7 Oct 2019 12:15 PM GMT

जमानत अर्जी पर ली जाए दुष्कर्म पीड़िता की राय

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र्व केन्द्राrय मंत्री चिन्मयानंद पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली 23 वर्षीय लॉ की छात्रा ने शाहजहांपुर की स्थानीय अदालत में अपनी अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई थी। इस पर सुनवायी होने से एक दिन पहले ही एसआईटी (विशेष जांच दल) ने छात्रा को गिरफ्तार कर लिया। बाद में एक स्थानीय एसीजेएम अदालत ने छात्रा की नियमित जमानत अर्जी को "gकराते हुए उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। एसीजेएम विनीत नारायण पांडे ने कहा कि छात्रा ने गंभीर अपराध किया था और इसलिए उसे जमानत नहीं दी जा सकती। छात्रा व तीन अन्य युवाओं (सचिन, पाम व संजय) पर एक समानांतर एफआईआर के तहत आरोप है कि उन्होंने चिन्मयानंद से पांच करोड़ रूपये की फिरौती मांगी थी।

छात्रा के पिता को लगता है कि यह सब कुछ उनकी बेटी पर दबाव बनाने के लिए किया गया है। इसके पीछे मकसद यह है कि वह चिन्मयानंद के विरुद्ध दायर अपनी शिकायत को वापस ले ले। उनके मुताबिक, "बलात्कार आरोपी तो अस्पताल में आराम कर रहा है और शिकायतकर्ता को जेल भेज दिया गया है। लेकिन मैं चिन्मयानंद व उसके समर्थकों को बताना चाहता हूं कि किसी भी स्थिति में मेरी बेटी अपना केस वापस नहीं लेने की। वह चाहे हमें कितना ही परेशान क्यों न कर लें, लेकिन हम दबाव में आने वाले नहीं हैं। अगर मेरी बेटी आज अपना केस वापस ले लेती है तो भारत की अनेक लड़कियों का हौसला टूट जायेगा और वे चिन्मयानंद जैसे असरदार अपराधियों के विरुद्ध कोई स्टैंड लेने से डर जायेंगी। हमें अपने देश की न्याय व्यवस्था पर विश्वास है और न्याय के लिए संघर्ष करते रहेंगे।'

इस पृष्"भूमि में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश का महत्व बढ़ जाता है। दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने सभी सत्र व हाईकोर्ट न्यायाधीशों के लिए आवश्यक कर दिया है बलात्कार आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते समय पीड़ित की उपस्थिति सुनिश्चित की जाये। दूसरे शब्दों में इसका अर्थ यह है कि बलात्कार आरोपी को जमानत देने के संदर्भ में पीड़ित की राय लेना लाजमी हो गया है। मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर हाईकोर्ट फ्रशासन ने एक फॉर्म भी जारी किया है, जो आवश्यक रूप से भरकर जमा करना होगा। फ्रत्येक स्टेटस रिपोर्ट या जवाब के साथ जो पुलिस बलात्कार आरोपियों की जमानत अर्जी के संदर्भ में देती है, विशेषकर 16 व 12 वर्षों से कम आयु की लड़कियों से संबंधित मामलों में (जिनमें आईपीसी की अलग धारा लागू होती हैं)। नये आदेश के अनुसार अगर यह फॉर्म नहीं होगा तो आरोपी को जमानत मिलना क"िन हो जायेगा।

यह फॉर्म न केवल युवा पीड़ित को जमानत सुनवाई के समय उपस्थित रहने का अवसर फ्रदान करता है बल्कि जांच अधिकारी (आईओ) व सरकारी वकील की जिम्मेदारी होगी कि पीड़ित को तुरंत सूचित करें कि आरोपी ने जमानत के लिए अर्जी लगाई है। दिल्ली हाईकोर्ट का यह नया आदेश 2018 में किये गये अपराधिक कानून संशोधनों के अनुरूप है। सीआरपीसी की संशोधित धारा 439 के अनुसार (जिसका संबंध सत्र व हाईकोर्ट को जमानत देने के अधिकार से है) बलात्कार आरोपी को जमानत देने से पहले अदालत को जमानत अर्जी मिलने के 15 दिन के भीतर सरकारी वकील को उसके बारे में नोटिस देना होगा। इसमें यह भी कहा गया है कि जमानत अर्जी की सुनवाई के समय पीड़ित या शिकायतकर्ता स्वयं या अपने वकील के माध्यम से आवश्यक रूप से उपस्थित रहे।

यह संशोधन बहुत जरूरी था और इसके तहत दिल्ली हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया है वह भी इतना स्वागतयोग्य है कि इसे बिना विलम्ब के देश के शेष राज्यों व केंद्र शासित फ्रदेशों में लागू कर देना चाहिए। दरअसल, अक्सर ऐसा होता है कि पीड़ित को जानकारी भी नहीं होती और आरोपी को जमानत मिल जाती है, जिससे पीड़ित पर खतरा बढ़ जाता है कि उस पर केस वापस लेने का दबाव बनाया जाता है और काफी मामलों में तो पीड़ित की हत्या भी कर दी गई है। ऐसी भी पुष्ट खबरें हैं कि जमानत पर जेल से बाहर निकलने के बाद आरोपी ने बलात्कार की अन्य वारदातें अंजाम दीं।

अब जब आरोपी को पीड़ित की जानकारी में जमानत मिलेगी तो वह अपनी सुरक्षा पर विशेष ध्यान दे सकेगी या अगर वह अदालत को विश्वास दिलाती है कि उसे अधिक खतरा है तो आरोपी को जमानत मिले ही न। लेकिन यह सिक्के का एक ही पहलू है। आज जब कानूनों को लिंग तटस्थ बनाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है ।

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