Home » रविवारीय » ऑस्कर के लिए चयन

ऑस्कर के लिए चयन

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:7 Oct 2019 12:18 PM GMT

ऑस्कर के लिए चयन

Share Post

वें अकादमी अवार्ड्स (ऑस्कर) की सर्वश्रेष्" अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म श्रेणी में बॉलीवुड पर अब फिर से भरोसा जताया गया है। भारत की अधिकारिक एंट्री के लिए जोया अख्तर की `गली बॉय' का चयन किया गया है, जिसके मुख्य कलाकार रणवीर सिंह व आलिया भट्ट हैं। ध्यान रहे कि इससे पहले 2012 में मुख्यधारा हिंदी फिल्म (विवादित `बर्फी') का चयन ऑस्कर में फ्रतिनिधित्व करने के लिए किया गया था।

`गली बॉय' का मुख्य चरित्र मुराद है, जो मुंबई में धारावी के स्लम में रहता है और रैपर बनने का महत्वाकांक्षी है। यह फिल्म स्ट्रीट रैपर डीवाइन व नैजी के जीवन से फ्रभावित है। इसी सप्ताह कोलकाता में 28 फिल्मों की पीनिंग हुई थी, जिनमें से ऑस्कर के लिए एक फिल्म का चयन किया गया। चयन समीति की फ्रमुख अपर्णा सेन के अनुसार, यह महसूस किया गया कि `गली बॉय' का `फील गुड फैक्टर' ऑस्कर नामांकन के लिए महत्वपूर्ण है।

अपर्णा सेन ने कहा, "पहली बात जो `गली बॉय' के संदर्भ में कही जा सकती है वह यह है कि इसकी ऊर्जा गजब की है। इसकी रिदम आपके खून में फ्रवेश कर जाती है। इसके अतिरिक्त यह तकनीकी दृष्टि से बहुत शानदार फिल्म है- फोटोग्राफी, साउंड, म्यूजिक, फ्रोडक्शन डिजाइन और निश्चितरूप से शानदार अभिनय। फिल्मकार का दिल भी सही जगह पर है और दो भारत- हेव व हेव-नॉट्स- का कंट्रास्ट भी अच्छी तरह से किया गया है, बिना भावुक हुए। सबसे बढ़कर बात यह है कि फिल्म में फील-गुड फैक्टर है, इससे हमें लगा कि यह ऑस्कर नामांकन के लिए महत्वपूर्ण है।'

ऑस्कर नामांकन की दौड़ में इस साल 28 फिल्में थीं। जिनमें हिंदी की 9 फिल्में थीं, `गली बॉय' के अतिरिक्त `अंधाधुंध', `आर्टिकल 15', `बधाई हो', `बदला', `घोड़े को जलेबी खिलाने ले जा रिया हूं', `केसरी', `उरी ः द सर्जिकल स्ट्राइक' और `द ताशकंद फाइल्स'। इनमें चार मरा"ाr एंट्री भी थीं- `आनंदी गोपाल', `बाबा', `बंदीशाला' और `माई घाट ः ाढाइम न. 103/2005', मलयालम में तीन- `एंड द ऑस्कर गोज टू...', `ओलु' और `उयारे' तीन ही तमिल एंट्री थीं- `सुपर डीलक्स', `ओथाथा सेरुप्पा साइज 7' और `वाडा चेन्नै' और तीन ही बंगाली में थीं- `कोंत्थो', `नगरकीर्तन' और `तारीख- ए टाइमलाइन'। दो गुजराती एंट्री थीं- `चाल जीवी लाइए!' और `हेल्लारो'। असमी (बुलबुल कैन सिंग), तेलगु (डिअर कामरेड) और कन्नड़ (कुरुक्षेत्र) में एक एक एंट्री थी। एक फिल्म नेपाली भाषा की भी थी, जो सिक्किम में सेट है- `पहुना ः द लिटिल विजिटर्स'।

`गली बॉय' का चयन 14 में से 9 वोट मिलने पर हुआ, जबकि अन्य पांच वोटें `सुपर डीलक्स', आर्टिकल 15' व `पहुना' में विभाजित हुईं। कुछ लोगों ने `गली बॉय' के चयन पर आपत्ति की है। लेकिन सवाल यह है कि जो 28 फिल्में चयन की दौड़ में थीं, उनमें से कौन सी ऑस्कर के लायक है? जो उपलब्ध मटेरियल था उसमें से `गली बॉय' ही कुछ स्तरीय फिल्म फ्रतीत होती है और उसी का चयन कर लिया गया। अब देखना यह है कि 92वें अकादमी अवार्ड्स जो 9 फरवरी 2020 को लॉसएंजेल्स, अमेरिका के डॉल्बी थिएटर में आयोजित होंगे। इसमें `गली बॉय' को किस तरह से लिया जाता है? अब तक सर्वश्रेष्" अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म केटेगरी में भारत की किसी फिल्म को सफलता नहीं मिल सकी है, पांच की शोर्ट लिस्ट में `लगान' आदि फिल्में अवश्य आयी हैं।

भारत में भारतीय कलाकारों को लेकर फिल्मायी गयी `स्लमडॉग मिलियनेर' को जनरल केटेगरी में अनेक ऑस्कर अवश्य मिले, लेकिन वह भारतीय फिल्म नहीं थी। इस फिल्म के लिए एआर रहमान व रेसुल कुट्टी को ऑस्कर से सम्मानित किया गया था। महात्मा गांधी के जीवन पर बनी फिल्म `द महात्मा' ने भी ऑस्कर जीता था, लेकिन वह भी भारतीय फिल्म नहीं थी। सत्यजीत रे को लाइफटाइम अचिवेमेंट के ऑस्कर से अवश्य सम्मानित किया गया, लेकिन उनकी फिल्में भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ख्याति, फ्रशंसा व पुरस्कार अर्जित करने के बावजूद ऑस्कर नहीं जीत पायीं थीं।

सईद मिर्जा की राष्ट्रीय अवार्ड विजेता फिल्म `सलीम लंगड़े पे मत रो' (1989) में एक सीन है- सलीम अपने दोस्तों बीरा व अब्दुल के साथ अपने पड़ोस की सुनसान पड़ी गलियों में टहल रहा है। इस `आवारागर्दी' के लिए तीनों को पुलिस से जबरदस्त फटकार पड़ती है। अस्सी के दशक के आखिर में बॉम्बे में साफ्रदायिक तनाव बढ़ रहा है और मुस्लिमों की मलिन बस्ती में कर्फ्यू लगा दिया गया है, जिसे वह अपना घर कहते हैं। जैसे ही वह गली में मुड़ते हैं, अब्दुल जोर से चिल्लाता है, "क्या अक्खा जिंदगी हम ऐसेइच रहेंगा? इंसानों का मार खायेंगा?' सलीम उसे आश्वासन देता है, "तू देखना, अपना भी टाइम आयेंगा।' इसके "ाrक तीन दशक बाद, जोया अख्तर की फिल्म `गली बॉय' में धारावी का एक अन्य मुस्लिम लड़का इन शब्दों को जबरदस्त रैप गान में बदल देता है।

यह दोनों फिल्में `पहले' व `बाद' की छवियों के रूप में ऑपरेट करती हैं, यह फ्रतिविम्बित करते हुए कि गरीब शहरी मुस्लिमों के लिए जीवन कैसे बदला है। कई तरह से मुराद (गली बॉय) उदारवाद के बाद का सलीम (सलीम लंगड़े पर मत रो) है। `गली बॉय' में बाजार उदारीकरण की वजह से मुराद की थोड़ी सुविधाओं तक पहुंच है जिससे उसके लिए अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति को आर्थिक सुरक्षा के साथ मिलाना संभव है। `गली बॉय' में एक तरह से सलीम की व्यथा की भी झलक मिलती है। इसका एक दिलचस्प चरित्र है मोईन, जो मुराद का दोस्त है। वह दिन में मैकेनिक है और रात में कार चुराता व ड्रग्स सप्लाई करता है दो जून की रोटी के लिए।

दोनों का साथ अंतिम सीन जेल की सलाखों के इधर उधर है और मोईन मुराद से कहता है कि वह अपने सपने को साकार करने का फ्रयास करे। कमजोरी के क्षण में, जो आसानी से अति राजनीतिक व सामाजिक भी है, मोईन अपने दोस्त से आग्रह करता है कि वह अपने रचनात्मक जुनून का पीछा करे ताकि इस मलिनता के जीवन से मुक्ति पा सके।

बड़ा सवाल यह है कि जिस ईमानदारी व सच्चाई के साथ, बिना किसी पक्षपात के, मुराद के चरित्र को फ्रस्तुत किया गया है, क्या वह `गली बॉय' को ऑस्कर दिलाने के लिए पर्याप्त है?

Share it
Top