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एक किवदंती की निजी दुनिया

👤 manish kumar | Updated on:4 Dec 2019 5:45 PM GMT

एक किवदंती की निजी दुनिया

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ना मंगेशकर खडीकर की नजरों में वह `मो"ाr तिची सावली' हैं यानी एक ऐसी बहन हैं जो `अपनी परछाई जितनी बड़ी' है। जी,हां हम लता दीदी यानी लता मंगेशकर की ही बात कर रहे हैं। मीना मंगेशकर उनकी सिर्फ दो साल छोटी सगी बहन हैं। जो शादी के बाद से खड़ीकर हो चुकी हैं। उन्होंने लता जी पर मरा"ाr भाषा में एक प्यारी सी किताब लिखी है, उसी का शीर्षक है, `मो"ाr तिची सावली' जिसका हिंदी अनुवाद पिछले दिनों `मै और दीदी' नाम से लोकार्पित हो चुका है। इस किताब की भूमिका सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने लिखी है। इस किताब में लता जी की उपलब्धियों का बखान नहीं है। इसमें उनकी क्षमताओं और विशिष्टताओं का विवरण नहीं है। इसमें उन लता दीदी के जीवन के बेहद निजी विवरण हैं,जो लता आज किवदंती हैं।

इस किताब को मीना खड़ीकर ने अपनी दीदी के 90वें जन्मदिन (28 सितंबर 2019) पर उन्हें एक तोहफे के रूप में भेंट किया है। मीना उनकी जिंदगी को सबसे करीब से जानती हैं, यह दावा मीना न भी करें तो भी अपने कई इंटरव्यूज में खुद लता जी कर चुकी हैं। जब पत्रकारों ने मीना से पूछा कि आखिर उन्हें अपनी इस विश्वविख्यात बहन पर किताब लिखने की जरूरत क्यों पड़ी? क्योंकि माना जाता है कि लता मंगेशकर बीसवीं सदी की उन गिनी चुनी शख्सियतों में से एक हैं जिन पर बहुत ज्यादा बल्कि कहना चाहिए अथाह लिखा गया है। इस पर मीना खड़ीकर का कहना था कि दीदी का पूरी दुनिया में नाम है तो यह गाने के लिए है। लोग अगर उनकी बहुत तारीफ करते हैं तो वह उनके गाने और फ्रोफेशनल कामयाबी के लिए करते हैं। लेकिन मैं दुनिया को बताना चाहती हूं कि वे जिस लता को जानते हैं, वह लता, लता कैसे बनी?

मैं लोगों को बताना चाहती थी कि लता को लता बनने में किन किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा। इसके लिए उन्होंने कौन कौन से कष्ट उ"ाये। क्या क्या उनकी जिंदगी से छूट गया। चूंकि मैं उनके बहुत नजदीक हूं, सिर्फ दो साल छोटी हूं। ऐसे में मैंने सोचा दुनिया को उस लता दीदी के वास्तविक जीवन के बारे में बताया जाए, जो आइकोनिक नहीं है, जो कोई किवदंती नहीं है। मैंने दीदी के चाहने वालों को यही सब बताने के लिए किताब लिखी। जब लोग दीदी की बहुत फ्रशंसा करते हैं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। लेकिन "ाrक उन्हीं क्षणों में मेरी आंखों के सामने उस सात-आ" साल की लड़की का चेहरा घूम जाता है जो बहुत हंसमुख है, बहुत जीवंत और खेलफ्रेमी है। साथ ही बहुत होमली है जिसके खेलने कूदने के दिन हैं। सब कुछ बहुत अच्छा है। घर में सब कोई बहुत खुश है। घर में "ाrक"ाक पैसा भी है। फिर एक दिन अचानक बाबा नहीं रहते और सब कुछ बदल जाता है। आ" साल की लड़की अचानक बड़ी हो जाती है। इतनी बड़ी कि घर की मुखिया बन जाती है।

इस मुखिया का अब अपना निजी जीवन कुछ नहीं रहता। वह लड़की जिसे क्लासिकल सिंगर बनना था, उसे फिल्मों में छोटे छोटे रोल करने पड़ते हैं। वैसे वह भी बाकियों जैसी रह सकती थी। मगर उसने सोचा मां को क्या समझाऊं। भाई को क्या समझाऊं। खाना कहां से आएगा। कोई स्कूल कैसे जा पायेगा? पैसे कहां से आयेंगे? किसी एक को तो खड़ा होना ही था। वह आ" साल की लड़की पांच लोगों की तरफ से खड़ीं हो गयी। उसको फिल्मों में एक्स्ट्रा के छोटे छोटे रोल करने पड़े। जब लड़की बड़ी हुई। देश-विदेश में नाम हुआ। फिर भी उसकी यह सफलता उसे कोई निजी खुशी नहीं दे सकी। वह घर छोड़ नहीं सकती थी। घर से दूर नहीं जा सकती थी। एक ही वजह थी, हमारा क्या होगा? हम पांच का क्या होगा? अंत में वह, हम सब के लिए खुद को ही भूल गयी।

दीदी न होती तो हमारा लंबा चौड़ा परिवार न होता। शुरू में जब दीदी को बहुत कम पैसे मिलते थे,तो हम लोग सही से भरपेट खाना नहीं खा सकते थे। चार-चार दिनों तक हम सबने कुरमुरा खाकर गुजारे हैं। दीदी ने हम सब लोगों को भरपेट रोटी सुनिश्चित किया। उसने हमें स्थाई भूख से बाहर निकाला। न उसकी पढ़ाई हुई, न उसने स्कूल देखा। बच्चों के दोस्त होते हैं, उसका बचपन का कोई दोस्त भी नहीं है। आ" साल की उम्र में ही वह हमेशा के लिए बड़ी दीदी हो गयी। उसने हमें बड़ा होते देखने में, हमें बनाने संवारने में जिन्दगी बिता दी। अपनी जिन्दगी को जितना लता दीदी ने खोया है, वैसा और उतना कोई इंसान नहीं खोया होगा। जबकि वह तब तक ऐसी नहीं थी, जब तक बाबा थे।

बाबा के सामने तक दीदी बहुत शरारती थीं। कितना खेलती थीं, दिन-रात खेलने में ही मगन रहती थीं। खूब गाती थीं। लेकिन बाबा गए तो दीदी का बचपन भी लेते गए। मां के तो आंसू ही सूख गए। लोग सुनते हैं लक्ष्मी चंचल होती है, हमने इसे देखा है। बाबा के पास काफी कुछ था। सब अचानक चला गया। बहुत कुछ बीमारी में कुछ बीमारी के बाद देनदारी में। जल्द ही फांको की नौबत आ गयी। उसी ने हमें इस सबसे निकाला इसलिए मेरी नजर में वो दीदी नहीं, वो मेरा बाबा हैं। बाबा ही नहीं बाबा से भी ऊपर हमारी भगवान। उसने हम सबको बाबा बनके बड़ा किया है। मां बनके संभाला है। दोस्त तो वह आज भी है। सच तो यह है कि वह इन सब भूमिकाओं को निभाते, निभाते हमारी बहन ही नहीं रही। न कभी लड़ी, न कभी झगड़ी। न कभी ईर्ष्या, न कभी मन मुटाव।

मीना कहती हैं, `पहले मैंने यह किताब मरा"ाr में लिखी, जब दीदी ने पढ़ा, उन्हें अच्छी लगी। उन्होंने ही कहा इसे हिंदी में अनुवाद कराओ।' वैसे मालूम हो कि लता दीदी ने मरा"ाr लिखना किसी स्कूल में नहीं बल्कि एक जमाने में घर में रहे एक नौकर विठ्ठल से सीखी थी। वह खुद भी पांच छह दर्जा पढ़ा था। लता दीदी मीना मंगेशकर के काफी नजदीक रही हैं। इस किताब में भी हर्फ दर हर्फ इसकी गवाही मौजूद है। वह लिखती हैं, 'साल 47-48 में जब दीदी गाती थीं तो उनके साथ मैं जाया करती थी। दीदी जब गाती थीं तो मेरी तरफ देखती थीं कि मैंने सही गाया या नहीं, अच्छा रहा या बुरा मैं इशारे में अपनी बात कह देती थी। खराब बताती थी तो दीदी कहती थीं कि मैं इसे दोबारा गाऊंगी। कुछ दिनों तक तो लोगों को यह सब समझ में नहीं आया। लेकिन फिर उन्हें मेरे साथ आने का मतलब समझ में आ गया। दीदी फाइनल टेक के लिए मुझे देखती थीं। उन दिनों सारे निर्माता मुझे सेंसर कहते थे। वे कहते देखो अपनी दीदी के साथ उनकी सेंसर आ गई।'

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