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जूट के किसानों का संघर्ष रंग लाया

👤 manish kumar | Updated on:12 Dec 2019 12:35 PM GMT

जूट के किसानों का संघर्ष रंग लाया

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निया में जूट के कुल उत्पादन का लगभग पचास फ़ीसदी उत्पादन भारत में होता है। आज भी देश में लगभग आठ लाख हेक्टेयर भूमि में चालीस लाख किसान जूट की खेती कर रहे हैं।

पिछले दिनों जूट के किसानों को राहत देते हुए भारत सरकार की आर्थिक मामलों की मंत्रिमण्डलीय समिति (सीसीईए) ने अनिवार्य रूप से जूट की बोरियों में पैकेजिंग के नियमों के विस्तार को मंजूरी दी है। जिसको जूट के किसानों के राहत के तौर पर देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने जूट वर्ष 2019-20 के लिए खाद्यान्न और चीनी को अनिवार्य रूप से जूट की बोरियों में पैकेजिंग के नियमों के विस्तार को मंजूरी दी है। केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष के सामान जूट पैकेजिंग सामग्री अधिनियम, 1987 के तहत अनिवार्य पैकेजिंग नियमों के विस्तार को बनाए रखा है। मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुसार 100 फीसदी खाद्यान्न और 20 फ़ीसदी चीनी की पैकेजिंग अनिवार्य रूप से जूट की बोरियों में की जानी चाहिए।

दरअसल सरकार के इस फैसले को कुछ साल पहले असम में जूट उत्पादक किसानों और पुलिस के बीच हुए खूनी संघर्ष से जोड़कर भी देखा जा रहा है। जिसमें पांच किसानों की मृत्यु हो गयी थी और लगभग पन्द्रह किसान गंभीर रूप से घायल हो गये थे। करीब पांच सौ किसानों नें असम के दरांग जिले में बेसिमारी के पास अपने जूट की फसल के सरकार से बेहतर मूल्य दिलाने की मांग करते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम लगा दिया था।

देश के जूट बेल्ट कहे जाने वाले इलाकों में मौसम की अनुकूलता के चलते जूट की बंपर पैदावार होती है। जूट की खेती करने वाले किसानों में इस बात की बडी चिंता रहती है कि अगर सरकार ने उन्हे इसके अच्छे दाम न दिलवाए तो कई जूट उत्पादक किसान गहरे कर्ज में डूब कर तबाह हो जाएंगे। किसानो की नराजगी इस बात को लेकर भी रहती है कि स्थानीय बाजारों में ब्यापारी जूट को औने-पौने दामों में ही खरीद लेते हैं और सरकार किसानों को न्यूनतम सर्मथन मूल्य भी नही दिलवा पाती है। वर्षो से किसानों की मांग रही है कि सरकार उनके खून पसीने से पैदा किये गये जूट का एक लाभप्रद दाम दिलवाने की गारंटी करे, हालांकि केंद्र सरकार के इस फैसले को जूट के किसानों के लिए राहत देने वाला माना जा रहा है। लेकिन किसान नेताओं के मुताबिक यह ऊंट के मुँह में जीरा ही है।

सरकारी संस्थानों ने वर्तमान सीजन में जूट की बोरियों के 19 लाख गांठें खरीदने का निर्णय लिया है। इसमें से 13.1 लाख गांठों का ऑर्डर इस साल जून से अक्टूबर के बीच दिए गए हैं। जूट आयुक्त के कार्यालय के अनुमान के मुताबिक जूट उद्योग अभी भी 25.4 फीसदी आपूर्ति बकाये के दबाव में है। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय ने जूट आयुक्त को मिल मालिकों पर ऑर्डर की गई मात्रा की पूरी आपूर्ति करने के लिए दबाव बनाने को कहा है। इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (आईजेएमए) को कहा गया है कि वह मिलों को ऑर्डर की गई समूची मात्रा की आपूर्ति करने के लिए मिलों को अपने उत्पादन में तेजी लाने को कहें ताकि खरीद प्रािढया शुरू होने से पहले इच्छुक सरकारी एजेंसियां अपनी जरूरत के मुताबिक जूट की बोरियां प्राप्त कर सकें। हर साल खाद्य मंत्रालय खरीफ और रबी कृषि सीजन में मिलों से जूट की बोरियों की करीब 38 लाख गांठें खरीदता है। सरकारी खरीद करीब साढ़े पांच से छ हज़ार करोड़ रुपये की होती है।

बहरहाल, केंद्र सरकार के इस फ़ैसले से चीनी, अनाज और अन्य खाद्यान्नों की पैकेजिंग जूट की बोरियों में करने से जूट उद्योग को निश्चित रूप से लाभ मिलेगा। भारत सरकार के इस निर्णय में यह भी कहा गया है कि पैकेजिंग के लिए जूट बोरियों का 10 फीसदी जीईएम पोर्टल पर नीलामी के जरिए प्राप्त किया जाना चाहिए। इस मंजूरी से देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों विशेषकर पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा के किसानों और श्रमिकों को लाभ मिलेगा। जाहिर है कि लगभग साढ़े तीन लाख से अधिक श्रमिक और कई लाख किसान परिवार अपनी आजीविका के लिए जूट क्षेत्र पर निर्भर है। केंद्र सरकार जूट क्षेत्र के विकास के लिए लगातार कई प्रयास कर रही है जैसे कि कच्चे जूट की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ाना और जूट उत्पादों के लिए मांग को बढ़ावा देना आदि। परन्तु फिर भी जूट के किसानों की हालत में संतोषजनक सुधार होगा, ये तो समय ही बतायेगा।

जानकारों का मानना है कि जूट उद्योग मुख्य रूप से सरकारी क्षेत्र पर निर्भर है, जो खाद्यान्न पैकेजिंग के लिए प्रति वर्ष सात हज़ार पांच सौ करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के जूट की बोरियां खरीदती हैं। सरकार का मानना है कि जूट क्षेत्र में मांग को बनाए रखने के लिए एवं श्रमिकों और किसानों की आजीविका को बढ़ाने के लिए इस तरह के प्रयास निरंतर किये जाते रहे हैं। सरकार द्वारा जूट क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कच्चे जूट की उत्पादकता और गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए जूट आईसीएआरई लागू किया गया है। उसके जरिए सरकार लगभग दो लाख जूट किसानों को सहायता प्रदान कर रही है। इसके अंतर्गत बेहतर तरीकों जैसे- सीड ड्रिल के माध्यम से पंक्ति में बीज रोपना, व्हील-होइंग और नेल-वीडर के उपयोग से खरपतवार प्रबंधन, गुणवत्तापूर्ण और प्रमाणीकृत बीजों का वितरण और सूक्ष्म जीवों के सहारे जूट रेशे को तैयार करना। इन हस्ताक्षेपों से कच्चे जूट की गुणवत्ता और उत्पादकता में बढ़ोतरी बतायी जा रही है और जूट किसानों की आय में दस हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तक की वृद्धि बतायी जा रही है।

इसके अलावा जूट किसानों को सहायता प्रदान करने के लिए जेसीआई को 2018-19 से प्रारंभ होने वाले वर्ष समेत दो वर्षों के लिए सौ करोड़ रुपये की सब्सिडी का अनुदान दिया गया है। जेसीआई इस धन राशि का उपयोग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रदान करने के लिए करेगा और इस प्रकार जूट क्षेत्र में मूल्य की स्थिरता सुनिश्चित होगी।

बहरहाल, जूट क्षेत्र के विविधीकरण को सहयोग करने के लिए राष्ट्रीय जूट बोर्ड ने राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान के साथ समझौता किया है और गांधीनगर में जूट डिजाइन सेल की स्थापना की गई है। याद रहे कि जूट क्षेत्र में मांग को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने बांग्लादेश और नेपाल से जूट उत्पादों की आयात पर एंटी डम्पिंग ड्यूटी लगाई है। जो कि 5 जनवरी, 2017 से लागू है। सरकार का कहना है कि जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए दिसंबर, 2016 में जूट स्मार्ट लॉन्च किया गया था। यह ई-शासन पहल है और सरकारी विभागों द्वारा बी-ट्विल खरीद के लिए एक एकीकृत प्लेटफॉर्म है।

जेसीआई, एमएसपी की धन राशि को किसानों को प्रदान करने के लिए तथा अन्य व्यावसायिक कार्यों के लिए 100 प्रतिशत ऑनलाइन भुगतान का उपयोग कर रही है।

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