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झारखंड में लग सकता है भाजपा को झटका

👤 manish kumar | Updated on:23 Dec 2019 11:51 AM GMT

झारखंड में लग सकता है भाजपा को झटका

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रखंड विधानसभा के लिए पांच चरणों में होने वाले चुनाव का तीसरा चरण पूरा हो चुका है। महाराष्ट्र में सहयोगी दल शिवसेना के विश्वासघात व हरियाणा में सीटों में आई कमी से डरी भाजपा के मनोबल को कर्नाटक उपचुनाव के नतीजों ने थोड़ा ब़या है। हालांकि त्रिशंकु विधानसभा की अटकलों के बीच सूबे की सत्ता में बनी रहने के लिए पूरी पार्टी एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए है। त्रिशंकु विधानसभा की आशंका ने भाजपा की सांसें अटका दी है। इस आशंका को दूर करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मैदान में उतरना पड़ा है। उन्होंने राज्य में कई चुनावी सभाओं को संबोधित कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की पुरजोर कोशिश की है। अपने भाषण में कर्नाटक उपचुनाव में मिली भारी जीत को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी जनता से अपील कर चुके हैं कि अगर वे झारखंड का विकास चाहते हैं तो बीजेपी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का जनादेश दें।

कर्नाटक की राजनीतिक अस्थिरता का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने आगाह किया कि अगर त्रिशंकु परिणाम आता है तो कर्नाटक की तरह तबाह करने वाले मैदान में आ जाते हैं। इसलिए जनता तय करे कि वह झारखण्ड को बर्बाद नहीं होने देगी। इससे पहले मोदी ने कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार पर तंज कसते हुए कहा, 'बीजेपी को रोकने के लिए इन्होंने जो सीएम बनाया था उसे भी रोज बंदूक दिखाई जाती थी। वह सीएम जनता के बीच रोता, गिड़गिड़ाता था। कांग्रेस ने कर्नाटक के सीएम का हाल किडनैप होने वाले से भी बुरा कर दिया था।

बहरहाल, प्रधानमंत्री ने तो अपनी बात कह दी है लेकिन जनता उनकी बातों को कितना तवज्जो देती है यह तो 23 दिसंबर को ही पता चलेगा। लेकिन पांच साल तक रघुवर सरकार में रहकर सत्ता की मलाई चाटने वाली आजसू व इसके मुखिया सुदेश महतो का एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ना व भाजपा के दिग्गज नेता व रघुवर सरकार में मंत्री रहे सरयू राय का बागी होकर खुद मुख्यमंत्री रघुवरदास के खिलाफ ही चुनावी मैदान में ताल ठोंकना भाजपा की पेशानी पर बल लाने के लिए काफी है। राज्य की जनता इस बात को लेकर कंफ्यूज है कि सुदेश व भाजपा की राहें अलग होने के बावजूद न तो भाजपा ने सिल्ली में सुदेश महतो के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारा है और न ही सुदेश महतो की आजसू ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर में अपना प्रत्याशी खड़ा किया है। ऐसे में इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि चुनाव बाद सरकार बनने की स्थिति में एक बार फिर सुदेश महतो की पार्टी भाजपा को समर्थन दे देगी।

बात अगर राज्य के दिग्गज नेताओं में शुमार बाबुलाल मरांडी की की जाए तो यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य व उनकी पार्टी की दशा व दिशा तय करेगा। धनवार से लगातार दो बार विधानसभा और कोडरमा से पिछली वार लोकसभा चुनाव हार चुके झारखंड विकास मोर्चा प्रमुख व सूबे के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की किस्मत पूरी तरह दांव पर है। उनकी पार्टी गठबंधन से अलग अपने अकेले दम पर राज्य की सभी 81 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पिछला विधानसभा चुनाव बाबूलाल स्वयं तो हार गये थे लेकिन उनकी पार्टी के 8 विधायक जीतने में सफल रहे थे। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री मरांडी उन विधायकों को अपने पाले में नहीं रख पाए। 8 में से 6 विधायकों ने भाजपा का और एक ने झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थाम लिया। ऐसे में इस बार का विधानसभा चुनाव उनके लिए करो या मरो जैसा है।

आजसू मुखिया सुदेश महतो की भी स्थिति बाबूलाल मरांडी से अलग नहीं है। महतो को भी लगातार दो बार से सिल्ली में मुंह की खानी पड़ रही है। पिछली बार हालांकि सुदेश की पार्टी को पांच सीटें मिली थी और इन पांच सीटों के बलबूते वह रघुवर सरकार में शामिल हो गये। उनके बारे में कहा जाता है कि सरकार चाहे जिसकी बने, सुदेश उसका हिस्सा जरूर बनते हैं। पांच साल तक भाजपा की अगुआई में झारखंड में चले पहले स्थाई सरकार में उनकी पार्टी के एक मंत्री भी रहे। लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा से बात बिगड़ने के बाद अब आजसू अकेले ही मैदान में है। उनका यह दांव सही पड़ता है या उल्टा यह 23 दिसंबर को तय होगा जब परिणाम घोषित होंगे।

इससे इतर किसी भी आम चुनाव की तरह ही इस चुनाव में भी पिता और पति की राजनीतिक विरासत बचाने के लिए पुत्र- पुत्री, पत्नी सहित पूरा कुनबा दमखम से जुटा हुआ है। सूबे की 11 सीटों बड़कागांव, कोलेबिरा, झरिया, मांडू, भवनाथपुर, लिट्टिपाडा, सिल्ली, गोमिया, रामग़, लोहरदगा और पांकी सीटों पर पारिवारिक विरासत बचाने की कड़ी चुनौती है। सबसे रोचक मुकाबला झरिया विधानसभा सीट पर देखने को मिल रहा है। इस सीट से एक ही परिवार की दो बहुएं एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोंक रही हैं। वर्तमान विधायक संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह भाजपा उम्मीदवार के तौर पर जबकि उनके चचेरे भाई की पत्नी पूर्णिमा सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं। पिछले चुनाव में इन दोनों के पति आपस में चुनाव लड़े थे। बाद में भाजपा के टिकट पर विधायक बने संजीव सिंह अपने खिलाफ चुनाव लड़े भाई नीरज सिंह की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं। झरिया विधानसभा सीट पर सिंह मेंशन नाम से प्रसिद्ध इस परिवार का वर्चस्व रहा है। भवनाथपुर में तो इससे भी रोचक मुकाबला दिखाई पड़ रहा है। सात फेरों के साथ सात जन्मों तक एक-दूसरे का साथ निभाने की कसम खाने वाले मनीष सिंह एवं उनकी पत्नी प्रियंका देवी भवनाथपुर सीट पर आमने-सामने हैं।

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