Home » रविवारीय » छूटती नौकरियां डराती रहीं पूरे साल

छूटती नौकरियां डराती रहीं पूरे साल

👤 manish kumar | Updated on:6 Jan 2020 11:25 AM GMT

छूटती नौकरियां डराती रहीं पूरे साल

Share Post

ल 2019 जहां विभिन्न क्षेत्रों की झकझोर देने वाली सुर्खियों के लिए याद रखा जायेगा, वहीं यह रोजगार के मामले में भी एक हाहाकारी साल के रूप में ही जाना जायेगा। साल 2019 में पहली तिमाही से लेकर साल की आखिरी तिमाही तक बार बार रोजगार की खबरें, रोजगार संबंधी आंकड़े पहले से ज्यादा हैरान, परेशान करने वाले आते रहे। रोजगार को रेटिंग करने वाली विभिन्न एजेंसियों ने लगातार इस क्षेत्र के पति चिंताएं जतायी। उद्योग, कारोबार और सेवा क्षेत्र से जुड़ी 1938 कंपनियें पर किये गये एक साझा अध्ययन से पता चला कि 2017-18 में जहां रोजगार की स्थिति 3.9 फीसदी और 2016-17 में 4.1 फीसदी रही, वहीं 2018-19 में यह गिरकर 2.8 फीसदी से भी नीचे चली गई। यही नहीं 2020-21 का अनुमान भी आशाएं जगाने वाला नहीं है, जानकार इसे अभी और नीचे जाने की बात कह रहे हैं।

जाहिर है ये तथ्य डरावने हैं और अगर कहा जाए कि केंद सरकार से लेकर विभिन्न राज्य सरकारें तक इस साल इन आंकड़ों से मु"भेड़ करने से बचने की कोशिश में लगी रहीं, तो झूं" नहीं होगा। हालांकि रोजगार के मौजूदा और भविष्यकालिक पैटर्न को देखें तो यह सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है क्योंकि अर्थव्यवस्था में जितनी सुस्ती या मंदी हिंदुस्तान में महसूस की जा रही है, उससे कहीं ज्यादा दुनिया के दूसरे विकसित देशों में भी मौजूद है। ऊपर के ये आंकड़े जिस केयर रेटिंग एजेंसी के हैं, उसी के मुताबिक दुनिया के किसी भी हिस्से में रोजगार की बहुत सुखद स्थिति नहीं है। रोजगार के मामले में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा पकाशित रोजगार संबंधी दास्तावेज और आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि हालात खराब हैं। सीएमआई द्वारा पकाशित रोजगार संबंधी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 के अक्टूबर माह में बेरोजगारी की दर बढ़कर 8.5 फीसदी हो गई जो 2016 के बाद सबसे ज्यादा है।

इस साल एक नहीं बल्कि कई सूत्रों से अर्थव्यवस्था और रोजगार के आने वाले आंकड़े परेशान करते रहे। अजीम पेमजी यूनिविर्सिटी के सेंटर ऑफ सस्टनेबल एम्प्लॉमेंट द्वारा भारत में रोजगार के परिदृश्य पर कराये गए एक अध्ययन में यह बात उभरकर सामने आयी कि कृषि और विनिर्माण के क्षेत्र में सबसे बुरी हालत हुई है। साल 2011-12 के दौरान जहां भारतीय अर्थव्यवस्था में कुल 47.42 करोड़ रोजगार थे, वे साल 2017-18 में घटकर 46.51 करोड़ रह गये। जिसके 2019-20 में घटकर 46 करोड़ से भी नीचे चले जाने की आशंका है। इसलिए अगर कहा जाए कि साल 2019 रोजगार के लिहाज से बहुत ही डरावना रहा तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

हालांकि 2015-2018 के बीच मुदा योजना के तहत 4.25 करोड़ नये उद्यमियों को कर्ज बांटे गये और यह भी दावा किया जा रहा है कि इनसे 11.2 करोड़ नये रोजगार भी पैदा हुए, बावजूद यह साल रोजगार के मामले में कभी भी संतोषजनक नहीं रहा। जहां तक गुजरे या गुजर जाने की तरफ बढ़ रहे साल 2019 में महत्वपूर्ण रोजगार क्षेत्रों की बात है तो यूं तो इस साल हर क्षेत्र में एक तरह की गिरावट ही देखी गई, लेकिन इस गिरावट के बीच भी जिन कुछ क्षेत्रों में रोजगार की स्थितियां बेहतर रहीं तथा दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले यहां ज्यादा वेतन भी मिला, ऐसे महत्वपूर्ण रोजगार क्षेत्रों की सूची में सबसे ऊपर चार्टर्ड एकाउंटेंट पोफेशनल रहा। जीएसटी के कारण इनकम टैक्स रिटर्न भरने वालों की संख्या में जो महत्वपूर्ण इजाफा हुआ है तथा टैक्स संबंधी जो गतिविधियां बढ़ी हैं, उसके कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट की मांग भी बढ़ी है तथा उससे मिलने वाले वेतन और जो लोग स्वतंत्र रूप से अपना काम करते हैं, उन्हें मिलने वाले पारिश्रमिक में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हुई है।

रोजगार और आय के लिहाज से दूसरा क्षेत्र इस साल सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग का रहा। क्योंकि डिजिटल रेवोल्यूशन का सिलसिला अभी थमा नहीं है, भले अर्थव्यवस्था की हालत कितनी ही कमजोर क्यों न हो। इसलिए सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की मांग लगातार काफी बेहतर रही। इसके बाद एप डेवलपर, पॉयलट, डॉक्टर, ािढकेटर, एक्टर, इन्वेस्टमेंट बैंकर, लॉयर, बिजनेस एनालिस्ट, डाटा साइंटिस्ट और डेटाबेस आर्किटेक्ट की मांग ाढमशः सबसे ज्यादा मांग वाले पोफेशनलों के रूप में देखी गईं। जहां तक उन दूसरे क्षेत्रों की बात है, जहां रोजगार की स्थितियां बहुत खराब नहीं हुईं यानी वहां मांग बनी रही, तो वे क्षेत्र हैं- उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की मांग, आईटी पोफेशनल्स की मांग, टेक्नीकल राइटर्स की मांग और विशेषज्ञ सीईओज की मांग भी खूब बनी रही।

मार्किटिंग पोफेशनल और मैनेजर भी मांग में रहे। यह अलग बात है कि इस साल मांग में रहे क्षेत्रों के वेतन और सुविधाओं में भी वह आकर्षण नहीं रहा, जो दूसरे सालों में देखा जाता है। कुल मिलाकर अगर कहा जाए कि रोजगार के लिहाज से यह साल ऐसा रहा कि बेहतर दिन आने पर लोग इसे याद नहीं रखना चाहेंगे।

Share it
Top