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पेम से सब कुछ बदला जा सकता है

👤 manish kumar | Updated on:13 Feb 2020 2:10 PM GMT

पेम से सब कुछ बदला जा सकता है

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छ वर्ष पहले की बात है, वेलेंटाइन डे (14 फरवरी) पर निर्देशक इम्तियाज अली अपनी बेटी इडा से समय के साथ फ्रेम में आये परिवर्तन पर बात करते हुए अपने जीवन के रोमांटिक दिनों का जिक्र कर रहे थे कि उनके दिमाग में यह स्टोरी आईडिया आया कि 1990 के दशक में प्यार क्या था और आज प्यार क्या है ? इस विचार को उन्होंने अपनी नवीनतम फिल्म `लव आज कल' में विकसित किया,जो उनकी इसी नाम की 2009 की फिल्म का न तो सीक्वल है और न ही उस कहानी को जारी रखा गया है। दोनों फिल्मों का कंसेप्ट अवश्य समान है, लेकिन नई फिल्म नये किरदारों के साथ ताजी कहानी है। नई फिल्म में अलग अलग समय की दो कहानियां हैं,जो आपस में इंटरैक्ट कर जाती हैं। एक फ्रेम कथा आज की दिल्ली की है और दूसरी को 1990 के दशक में सेट किया गया है। यह दोनों फ्रेम कथाएं भी एक दूसरे से बहुत भिन्न हैं। लेकिन इम्तियाज अली कहते हैं, "फ्रेमी या रोमांटिक संबंध में जो आप तलाश करते हैं वह समान है।'

फिल्मोद्योग में अलग अलग आयु वर्ग के लोगों से मिलने का अवसर मिलता है। इस तरह आप रोमांटिकली जुड़े युवाओं को भी देखते है और रोमांस, नजदीकियां व शारीरिक संबंध पर उनके नजरिए व मानसिकता को भी जान लेते हैं। जो पहले फ्रतिबंधित था वह अब फ्रतिबंधित नहीं है। इस पृष्"भूमि में इम्तियाज बताते हैं, "मुझे नहीं मालूम कि लव का मेरा आईडिया क्या है,सिवाय इसके कि उसने निरंतर विकास किया है और मैं अपने जीवन के विभिन्न चरणों में उसे समझने का फ्रयास कर रहा हूं। अगर मुझे स्पष्ट हो जाता कि फ्रेम क्या है तो मेरा एक हिस्सा रिलैक्स करने लगता और मैं फ्रेम के बारे में फिल्में न बनाता।'

यह फ्रश्न उनके किरदारों में भी उभरते हैं। इसलिए उनमें रोमांटिक अनिश्चितता होती है, जो जोए व रघु (नयी लव आज कल), आदित्य व गीत (जब वी मेट, 2007), जॉर्डन (रॉकस्टार, 2011) आदि में देखने को मिलती है। शुरू में गीत (करीना कपूर) कांफिडेंट फ्रतीत होती है,लेकिन दूसरे हाफ में काफी अनिश्चित हो जाती है। वह पहले प्यार में अंधी हो जाती है और बाद में "ाsकर खाने पर आत्म-शक से घिर जाती है। इम्तियाज अली का कोई किरदार प्यार को समझ नहीं पाता है। वीर (नयी लव आज कल में कार्तिक आर्यन का दूसरा किरदार) फ्रेम को समझने के निकट तो पहुंचता है,लेकिन वास्तव में समझ नहीं पाता। वैसे अधिकतर युवाओं की तरह वह यह जान लेता है कि रोमांटिक संबंध में उसे क्या नहीं चाहिए।

उसे वह नहीं चाहिए जिसके लिए उसने पिछली पीको तड़पते हुए देखा है। उसे आदर्शवाद चाहिए लेकिन उसे मालूम नहीं कि उसे यह मिलेगा कैसे? इम्तियाज का कहना है, "जिस फ्रकार हमारा आज और कल बदलता है,उसी तरह फ्रेम का आज व कल भी बदलता है। इसलिए हर बार इस विषय पर एक नई कहानी होती है।'' इम्तियाज पर एक आरोप यह है कि उनकी फिल्मों के पुरुष किरदार विकास नहीं करते हैं। वह इस बारे में कहते हैं, "जब तक मैं ग्रो नहीं करूंगा तब तक मेरे किरदार भी ग्रो नहीं करने के एक तरह से मैं उन्हीं के माध्यम से तो अपने आपको फ्रकट करता हूं। इससे मैं महान नहीं हो जाता क्योंकि मेरे अंदर भी बहुत चीजें हैं जो तय नहीं हुई हैं। बस ऐसे ही है और लोगों को इसे बर्दाश्त करना सीख लेना चाहिए।'

इम्तियाज का मानना है कि जो स्पष्टता तलाश करने का दावा करता है,वह वास्तव में अस्पष्टता पर पर्दा डाल रहा है। स्पष्टता का संबंध रोशनी से है। क्या आयु के साथ आप होशियार हो जाते हैं? क्या आपके डर का अंत हो जाता है? क्या आपका मन सवाल करने बंद कर देता है? इम्तियाज ऐसा नहीं समझते, उनके अनुसार आपके फ्रश्न उस समय बंद होते हैं जब आप नीरस हो जाते हैं। आज `साडा हक ऐथे रख' (रॉकस्टार), `हम देखेंगे' आदि अपने लिखे जाने के वर्षों बाद फ्रदर्शनों में अभिव्यक्ति का माध्यम बन गये हैं। `साडा...' पंजाब में वामपंथी आंदोलन का नारा था, जिसे कोई भी फ्रयोग कर सकता है। इम्तियाज ने भी वहीं से अपनी फिल्म के लिए लिया था, इस बात को स्वीकार करते हुए वह कहते हैं, "कला टाइमलेस होती है। जब तक कला की फ्रासंगिकता रहती है, वह कलाकार भी जीवित रहते हैं।

हम जो फिल्में लिखते हैं वह कुछ लोगों को अपनी राय रखने में मदद कर सकती हैं। अमीर खुसरो (आज रंग है या मन कुन्तो मौला), कबीर, रूमी या गुरु नानक के शब्द टाइमलेस हैं। `लव आज कल' का वीर इन कवियों व दार्शनिकों के शब्दों को मानता है इसलिए उसमें कुछ ज्ञान है।' इसी के साथ इम्तियाज यह जोड़ना नहीं भूलते, "इस देश की सुंदरता यह है कि यह असहमति की अनुमति फ्रदान करता है। आप असहमत हों, लेकिन बहुत अधिक फ्रेम के साथ हों। नकारात्मकता से कोई परिवर्तन नहीं आता है। फ्रेम से आप हर चीज बदल सकते हैं।' इसीलिए हम हर साल वेलेंटाइन डे के रूप में फ्रेम का जश्न मनाते हैं।

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