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एक साथ व्योहारिक क्यों नहीं हैं लोकसभा और विधानसभा चुनाव ?
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शाहिद ए चौधरी
वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल 2019 में समाप्त होगा, लेकिन इस बात की सम्भावनाएँ बढ़ती जा रही हैं कि अगला आम चुनाव कुछ राज्य विधान सभा चुनावों के साथ नवम्बर-दिसम्बर 2018 में ही करा दिए जायें र् इस विषय पर सरकार के भीतर गहरा विचार-विमर्श चल रहा है र् वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से पूर्व में ऐसे अनेक बार संकेत मिल चुके हैं कि देश में लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जायें, लेकिन अनेक कारणों से इस प्रस्ताव पर सहमति नहीं बन सकी है और अनुमान यह है कि सहमति आगे बन भी नहीं सकती र् इसलिए सरकार की कोशिश है कि ऐसी व्यवस्था हो जाये कि समय के साथ दोनों चुनाव खुद ब खुद साथ पड़ने लगें र्
अभी यह विचार-विमर्श अनौपचारिक स्तर पर हो रहा है लेकिन इसका उद्देश्य मोदी द्वारा अक्सर दोहराई जाने वाली बात कि विधानसभा चुनाव प्रशासनिक बाधा हैं और आर्थिक बोझ भी को ध्यान में रखते हुए लोकसभा व राज्य चुनावों को एक बार में नहीं तो कई चरणों में साथ लाने का है र् मोदी के राजनीतिक विचार को अमल में लाने के लिए संविधान विशेषज्ञों से भी मशविरा किया जा रहा है, विशेषकर पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप से र् संविधान में एक प्रावधान यह है कि जब किसी सदन के कार्यकाल की समाप्ति में 6 माह का समय रह जाये तो उसके चुनाव कराए जा सकते हैं र् यह काम चुनाव आयोग कर सकता है र् इस पर खासतौर से गौर किया जा रहा है क्योंकि इसके आधार पर कुछ जटिल प्रािढयाओं से बचा जा सकता है जैसे संविधान में संशोधन करने से र्
योजना यह बनाई जा रही है कि नवम्बर-दिसम्बर 2018 में लोकसभा चुनाव के साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ व मिज़ोरम राज्यों के भी चुनाव कराए जायें और साथ ही तेलंगाना, आंध्र प्रदेश व ओडिशा विधान सभाओं के कार्यकाल को कुछ माह से कम करके, अगर सभी राजनीतिक दल सहमत हो जायें तो, इनके चुनाव भी साथ ही कर दिए जायें र् इस तरह काफी राज्यों के चुनाव आम चुनाव के साथ होने लगेंगे र् इन प्रयासों के राजनीतिक कारणों को समझा जा सकता है र् हालांकि तर्क यह दिया जाता है कि हर 6 माह में किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं जिससे प्रशासनिक कार्यों में बाधाएं आती हैं और आर्थिक बोझ भी बढ़ जाता है, लेकिन असल वजह राजनीतिक है र् कुछ राजनीतिक दलों, जिसमें बीजेपी विशेषरूप से शामिल है, को लोकसभा व विधानसभा चुनाव साथ होने से काफी चुनावी लाभ मिलता है र् ओडिशा में बीजू जनता दल को भी इस व्यवस्था से लाभ होता है र् लेकिन यही बात अन्य दलों के बारे में नहीं कही जा सकती, इसलिए वह इस व्यवस्था का विरोध करते हैं और बीजेपी व बीजू जनता दल इसके समर्थन में रहते हैं र्
]िफलहाल की स्थिति यह है कि केंद्र में अब तक के अपने खराब से औसत प्रदर्शन के बावजूद बीजेपी विकल्प के अभाव में और बिखरे व कमजोर विपक्ष के कारण आम चुनाव जीतने की अच्छी स्थिति में है र् वह इसका लाभ उठाना चाहती है, इसलिए आम चुनाव को समय पूर्व कराना चाहती है, खासकर इसलिए कि विपक्ष को एकजुट होने का समय न मिल सके र् यही बात उन राज्यों में भी लागू होती है जहां वह सत्ता में है र् इसलिए जिन राज्यों में वह लोक सभा के साथ चुनाव कराना चाहती है, उनमें से अधिकतर वह हैं जिनमें बीजेपी सत्ता में है र् केंद्र में बीजेपी सरकार के अब तक के प्रदर्शन को खराब से औसत इसलिए कहा गया कि 2014 के आम चुनाव में जो उसने बड़े बड़े लुभावने वायदे किये थे उनमें से वह एक को भी पूरा नहीं कर पायी है र् उसके सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर न विदेशों से काला धन वापस आया और न काला धन जमा करने वालों के नाम जग ज़ाहिर किये गये र् हर भारतीय के खाते में जो 15 लाख रूपये आने थे वह भी नहीं आए र् कानून व्यवस्था की जो स्थिति है वह किसी से छुपी हुई नहीं है, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े अपराध में वृद्धि के ही संकेत दे रहे हैं र्
महिलाओं की सुरक्षा का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्णिका कुंडू मामले में आरोप हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष के बेटे पर हैं र् स्वास्थ की स्थिति गोरखपुर अस्पताल की घटना से लगा लीजिए कि 72 घंटों में 79 बच्चों की मौत लापरवाही से हो गई र् फिर बेतुके खान-पान नियम थोपने से सामाजिक तनाव व लिंचइंग की घटनाओं में इजाफा हुआ र् नीतियों व कानून के नाम पर वही जीएसटी, एफडीआई आदि लाये गये जिनका विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने विरोध किया था, संसद तक चलने नहीं दिया था र् लेकिन सबसे अधिक नाकामी रोज़गार के फ्रंट पर देखने को मिली र् रोज़गार के अवसर अधिक होने की बजाये निरंतर कम हो रहे हैं, लोग बड़ी तादाद में नौकरी से निकाले जा रहे हैं, खासकर आई टी सेक्टर में र् सरकार का आर्थिक सर्वे बता रहा है कि 2017-18 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुमान के हिसाब से नहीं बढ़ेगा र् भ्रष्टाचार के पर्दाफाश की सम्भावनाएँ कम हो जायें, शायद इसलिए व्हिसल ब्लोवर कानून को लागू नहीं किया गया और अब उसे आर टी आई कानून की तरह कमजोर करने के लिए उसमें संशोधन का प्रयास है र्
ये चिंताजनक स्थितियां किसी भी सत्तारूढ़ दल के लिए खतरे की घंटी हैं र् लेकिन ]िफलहाल बिखरे व कमज़ोर विपक्ष और समाज के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की वजह से बीजेपी कम से कम चुनाव के संदर्भ में लाभ की स्थिति में है र् ज़ाहिर है वह इसका लाभ उठाना चाहेगी और इसलिए आम चुनाव ही नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा राज्यों में विधानसभा चुनाव भी साथ कराना चाहेगी र् यह सही है कि विपक्ष साथ चुनाव कराने के पक्ष में नहीं है र् लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि लोकसभा व सभी राज्यों की विधान सभाओं के एक साथ चुनाव कराना न लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही व्यवहारिक हैर् अगर किसी कारण से किसी राज्य में बीच में सरकार गिर जाती है और नए चुनाव लाज़मी हो जाते हैं तो क्या किया जायेगा? ज़ाहिर है कि लम्बे समय तक राज्य को बिना विधानसभा के तो नहीं रहने दिया जा सकता कि लोकसभा चुनावों के साथ ही चुनाव होंगे र्
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