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व्हिसल ब्लोवर्स कानून कमज़ोर करने की कवायद क्यों?

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:20 Aug 2017 3:17 PM GMT

व्हिसल ब्लोवर्स कानून  कमज़ोर करने की कवायद क्यों?

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वीना सुखीजा

2003 की बात है भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में प्रबंधक पद पर कार्यरत सत्येन्द्र के दुबे गया (बिहार) में तैनात थे र् उन्होंने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को संबोधित अपने पत्र में प्राधिकरण में व्याप्त भयंकर भ्रष्टाचार को उजागर किया और विशेषरूप से आग्रह किया कि उनकी पहचान को गुप्त ही रखा जाये र् लेकिन यह जानकारी लीक हो गई और दुबे की हत्या कर दी गई र् इस प्रकार की घटनाओं को संज्ञान में लेते हुए `व्हिसल ब्लोवर्स प्रोटेक्शन एक्ट 2014' में यह प्रावधान रखे गये कि अगर वह अपनी पहचान को छुपाने की इच्छा रखता है तो उसे गुप्त ही रखा जाये र्
लेकिन इस प्रावधान से कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि पिछले तीन साल में भारत में 15 से अधिक व्ह्सिल ब्लोवर्स की हत्या कर दी गई है क्योंकि सरकार ने दृढ़ता के साथ कानून को लागू करने से इंकार कर दिया र् इससे भी अधिक चिंताजनक यह है कि अब जो इस कानून में संशोधन प्रस्तावित हैं, वह अगर पारित हो जाते हैं तो इस कानून के मूल उद्देश्य पर ही विराम लग जायेगा र् व्ह्सिल ब्लोवर उस व्यक्ति को कहते हैं जो जिस सिस्टम का हिस्सा है, उसमें व्याप्त अनियमतताओं, भ्रष्टाचार आदि को ठोस अंदरूनी जानकारी के साथ उजागर कर दे ताकि कानूनी कार्यवाही हो सके और सिस्टम को ठीक किया जा सके र् ज़ाहिर है यह बहुत खतरे का काम है, जिसके कारण बहुत से लोग सब कुछ जानते हुए भी चुप्पी लगाये रहते हैं र् उनकी चुप्पी तब ही टूट सकती है जब उनके पास सुरक्षा की कोई गारंटी हो र्
इसलिए व्हिसल ब्लोवर्स कानून में यह प्रावधान रखा गया कि जो व्यक्ति सरकारी कर्मचारी के भ्रष्टाचार, अधिकारों का जानबूझकर दुरूपयोग या अपराधिक गतिविधि की अनियमितता को प्रशासन की जानकारी में लायेगा उसको सुरक्षा प्रदान की जायेगी, जिसमें उसकी पहचान को गुप्त रखा जाना भी शामिल है र् आपने गौर किया कि व्हिसल ब्लोवर को परिभाषित करते में कानून ने इसके दायरे में केवल उन सरकारी कर्मचारियों को शामिल नहीं किया है जो अपने कार्य के दौरान सामने आने वाले भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं बल्कि उन लोगों को भी शामिल किया है जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, लेकिन भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने में सहयोग करते हैं र् इस प्रकार के प्रगतिशील विस्तार का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान 65 से अधिक आरटीआई एक्टिविस्टों की हत्या की गई है यानी उन साधारण लोगों की जिन्होंने सूचना अधिकार के तहत जानकारी एकत्र करके सरकारी भ्रष्टाचार को उजागर किया र्
ध्यान रहे कि अब आम आदमी भी सूचना अधिकार कानून के तहत उस जानकारी को हासिल कर सकता है जो पहले केवल सरकारी कर्मचारियों के पास ही रहती थी, इस तरह वह भी व्हिसल ब्लोवर बन सकता है र् व्हिसल ब्लोवर्स कानून का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इसके तहत शिकायतकर्ता या जो भी जांच में सहयोग करे उसको भी यह सुरक्षा प्रदान करता है ताकि उसका उत्पीड़न न हो र् इसकी अहमियत इस लिहाज़ से है कि विस्सल ब्लोवर्स का विभन्न प्रकार से उत्पीड़न किया जाता है - निलम्बन, पदोन्नति रोक देना, हिंसा व हमले की धमकियां र् कानून के तहत विस्सल ब्लोवर्स के लिए पुलिस सुरक्षा की व्यवस्था है और जो उनका उत्पीड़न कर रहे हैं उनको सज़ा दिए जाने का प्रावधान है र् विस्सल ब्लोवर्स राम ठाकुर, नंदी सिंह व अमित जेठवा ने जब उन्हें धमकियां मिलनी शुरू हुईं तो पुलिस सुरक्षा की मांग की थी, जो उन्हें नहीं दी गई और उनकी हत्या हो गई र्
लेकिन अ़फसोस मोदी सरकार विस्सल ब्लोवर्स कानून को लागू करने की बजाये उसके प्रावधानों को कमजोर करने के लिए संशोधन विधेयक ला रही है. जनता से विचार विमर्श किये बिना ही इसे संसद में पेश भी कर दिया गया है र् जनता से विचार विमर्श का अर्थ यह है कि प्रस्तावित विधेयक को नेट पर डाला जाये ताकि आम लोग उस पर अपनी राय दे सकें जैसा कि आरटीआई एक्ट से सम्बन्धित संशोधन प्रस्तावों के संदर्भ में किया गया है र् व्हिसल ब्लोवर्स कानून में यह प्रावधान है कि विस्सल ब्लोवर पर जानकारी उजागर करने के लिए ओफिशल पोट्स एक्ट के तहत म़ुकदमा नहीं चलेगा, जिसमें दोषी पाए जाने पर 14 वर्ष तक की क़ैद हो सकती है र् संशोधन विधेयक में व्हिसल ब्लोवर्स से यह सुरक्षा कवच हटाये जाने का प्रस्ताव है, जिससे असल विस्सल ब्लोवर्स भी पर्दाफाश करने से डर जायेंगे र्
व्हिसल ब्लोवर्स कानून का मुख्य उद्देश्य लोगों को प्रोत्साहित करना है कि वह गलत बातों को रिपोर्ट करें र् लेकिन अगर व्हिसल ब्लोवर्स पर अपनी शिकायतों के ज़रिए जानकारी उजागर करने के लिए म़ुकदमे चलाये जायेंगे और उन्हें ओफिशल पोट्स एक्ट से सुरक्षित नहीं रखा जायेगा तो विस्सल ब्लोवर्स कानून का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा र् इसके अलावा विस्सल ब्लोवर्स कानून को आरटीआई एक्ट की तरह करने के लिए संशोधन विधेयक में कहा गया है कि व्हिसल ब्लोवर्स की शिकायतों में अगर कोई जानकारी ऐसी है जो राज्य की प्रभुसत्ता, एकता, सुरक्षा या आर्थिक हितों को प्रभावित करे, उसकी कोई जांच नहीं होगी र् साथ ही जानकारी की कुछ श्रेणियां व्हिसल ब्लोवर के पर्दाफाश का हिस्सा नहीं हो सकतीं जब तक कि वह जानकारी आरटीआई एक्ट के तहत हासिल न की गई हो र्
संशोधन प्रस्ताव में इस तथ्य को पूर्णतः अनदेखा कर दिया गया है कि दोनों व्हिसल ब्लोवर्स कानून व आरटीआई एक्ट के उद्देश्य अलग अलग हैं र् आरटीआई एक्ट के तहत जनता को जानकारी उपलब्ध कराई जाती है और व्हिसल ब्लोवर्स कानून के तहत सरकार के भीतर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच का मार्ग निकलता है. इन दोनों कानून को एक दूसरे पर निर्भर करना इन दोनों के ही उद्देश्य को समाप्त करना है र् व्हिसल ब्लोवर्स और आरटीआई एक्ट के कारण यूपीए सरकार में हुए बड़े बड़े घोटालों का पर्दाफाश हुआ था, जिनकी वजह से उसे सत्ता खोनी पड़ी र् मोदी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में कोशिश यह की है कि जिन कानूनों व व्यवस्थाओं से कोई घोटाला या भ्रष्टाचार सार्वजनिक हो जाये, उन्हें कमजोर कर दिया जाये या समाप्त कर दिया जाये र् शायद यही कारण है कि पहले व्हिसल ब्लोवर्स कानून को लागू नहीं किया गया और अब उसे कमज़ोर करने के लिए संशोधन विधेयक बिना सार्वजनिक विचार विमर्श के लाया जा रहा हैर्
आरटीआई एक्ट को भी इतना पंगु कर दिया गया है कि उसके होने या न होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता र् केन्द्राrय सूचना आयुक्त को अदालत के कहने के बाद ही नियुक्त किया गया और लोकपाल कहां है? किसी को नहीं मालूम र्

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