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सावधान ! यह तेज़ होना नहीं है अशिष्ट हो रही है नई पीढ़ी

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:15 Oct 2017 5:25 PM GMT

सावधान ! यह तेज़ होना नहीं है  अशिष्ट हो रही है नई पीढ़ी

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नीलम अरोड़ा

पिछले दिनों सुरेश प्रजापति अपने दोस्त रमेश गहलौत के घर उनसे मिलने गए थे। रमेश घर के बाहर ही कुछ काम कर रहे थे, इसलिए सुरेश वहीँ पड़ी कुर्सी में बैठ गए। पास में ही रमेश का 8 वर्षीय पोता अपने एक दोस्त के साथ मोबाइल गेम खेल रहा था। सुरेश ने रमेश के पोते से कहा वह जाकर घर के अन्दर से एक जग गिलास पानी ले आये। लेकिन रमेश के बेटे ने नहीं सुना वह मोबाइल गेम खेलने में मस्त रहा। पांच मिनट बाद सुरेश ने फिर रमेश के पोते से पानी लाने के लिए कहा। इस बार उन्होंने थोड़ी उंची आवाज में कहा। इस पर पलटकर रमेश के पोते ने कहा, 'घर से प्यासे ही चल दिए थे क्या ?' जवाब सुनकर सुरेश ही नहीं खुद रमेश भी अचकचा गए। रमेश ने पोते को डांटा और खुद ही घर के अंदर दोस्त के लिए पानी लेने चले गए।
यह सब कुछ इतना अप्रत्याशित हुआ कि सुरेश को यह नहीं सूझ रहा था कि इस बारे में कोई और बात होती है तो वह क्या कहेगा और रमेश को यह नहीं सूझ रहा था कि सुरेश इस पर कोई और बात करेगा तो वह क्या जवाब देगा ? इसलिए दोनों ने इस पर कोई बात ही नहीं की। मगर सवाल है कि दो-दो दोस्तों को लज्जित करने वाली बच्चों में यह अशिष्टता आती कहाँ से है ? ऐसा लज्जा होना इसलिए भी स्वाभाविक है, क्योंकि कोई भी माता पिता यह नहीं चाहते कि उनका बच्चा बेरुखी या खराब तरह से बात करे और न ही वह उन्हें खराब तरीके के बात करने की ट्रेनिंग ही देते हैं। सवाल है फिर बच्चे दिनों-दिन अशिष्ट क्यों होते जा रहे हैं ? आखिरकार उन्हें अशिष्ट होने की शिक्षा कहां से मिल रही है ?
यह सवाल वाकई जटिल है। क्योंकि इसका रिश्ता सीधे-सीधे बच्चों की परवरिश और उन्हें मिल रहे संस्कार से जुड़ा हुआ है। समाज के बदल रहे रूप और तरीकों पर गौर करें तो अब परिवार के बड़े सदस्यों के बीच एक दूसरे के लिए सम्मान और आदर का भाव लगभग खत्म होता जा रहा है। सच तो यह है कि अब पति-पत्नी भी एक दूसरे पर हर समय हावी होने की कोशिशों में लगे रहते हैं। आखिरकार ऐसे में घर में मौजूद बच्चा खुद कैसे व्योहार करेगा ? जब बच्चे माँ-बाप को ज्यादातर समय लड़ते झगड़ते और खराब तरह से बहस करते हुए सुनते हैं तो जाहिर सी बात है कि वह भी उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल अपनी बातों में करने लगते हैं। समाज और दुनियादारी से अनजान बच्चों के लिए तो उनकी पहली पाठशाला घर ही होती है। ऐसे में उन्हें इस बात का अभास भी नहीं हो पाता है कि घर पर मम्मी पापा जिस तरह से बात करते हैं, वह गलत है। उन्हें तो बस इतना ही मालूम है कि पापा मम्पी पर जोर जोर से चिल्ला रहे थे। माता पिता के जोर जोर से चिल्लाने में बच्चो को इतना तो एहसास हो जाता है कि ऐसा करके अपनी बात मनवाई जा सकती है।
बस, इसके बाद तो अपनी छोटी छोटी बातों को मनवाने के लिए बच्चों को चीखने चिल्लाने का नया तरीका इस्तेमाल करना सबसे आसान लगने लगता है। माता पिता को लगता है कि उनका बच्चा बेहद जिद्दी हो गया है लेकिन वह इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दे पाते कि यह तरीका बच्चे ने सीखा तो उन्हीं से है। अशिष्टता की पहली सीढ़ी बच्चे का जिद्दी और बदतमीज होना ही होता है। इस तरह यह माना जा सकता हे कि बच्चों में बढ़ती अशिष्टता के लिए कहीं न कहीं घर का बिगड़ता माहौल भी जिम्मेदार है। ऐसा होने के अन्य कारणों पर गौर करें तो आत्मकेंद्रित होते जाने की प्रवृत्ति भी कहीं न कहीं बच्चों में अन्य लोगों का सम्मान करने ही भावना और समझ को खत्म करती जा रही है। बच्चों के मन में अब माता पिता के ही लिए सम्मान नहीं बचा है तो वह दूसरों का सम्मान करना कैसे सीखेंगे? आज हर कोई सबसे पहले खुद को प्राथतिकता देने लगा है, जब खुद को संतुष्ट कर लिया जाता है तो फिर अपने से जुड़े लोगों के बारे में सोचा जाता है।
आधुनिक पीढी के बच्चों में भी यही मानसिकता बढ़ रही है। जैसे ही उन्हें चीजों की थोड़ी बहुत समझ बढ़ती है वैसे ही उन्हें इस बात का एहसास होने लगता है कि उन्हें जो कुछ भी चाहिए वह सब उन्हें मिलना चाहिए। बच्चो में उग्रता का बढ़ना इस बात का संकेत है कि उन्हें यह लगने लगता है कि उनकी मांगे पूरी की जा सकती हैं लेकिन नहीं की जा रही है। इससे वह अपनी मांग को पूरा करवाने के लिए तरह तरह के तरीके आजमाते हैं जिसमें नाराज होकर खाना न खाना, रोते बिलखते रहना आदि है। इसके बाद की स्थिति बदतमीज होना है।
पुरानी पीढ़ी से अगर यह पूछा जाए कि क्या वह किसी चीज के लिए आज के बच्चों की तरह जिद करते थे तो वह बड़े गर्व से बताते हैं, 'अरेनहीं, हमें तो बस एक बार समझा दिया जाता था कि पिताजी के पास पैसे नहीं हैं, सब खत्म हो गए तो हम फौरन मान जाते थे। हम इस बात को समझते थे अगर पिताजी के पास पैसे नहीं हैं तो वह कुछ भी नहीं दिला पाएंगे। लेकिन आज के बच्चों से भले ही आप पैसे न होने का कितना भी रोना रोते रहें लेकिन वह तो कुछ भी सुनने को ही तैयार ही नहीं होते हैं।' बात बिल्कुल सही है लेकिन आज के बच्चों में इस किस्म का बदलाव आया कहां से? पहले के दौर में मध्य वर्गीय परिवार महीने के आखिर में इस कदर परेशान हो जाते थे कि उन्हें राशन खरीदने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। घर के हालात बच्चों से छिपे नहीं रहते थे। लेकिन आज के मध्यवर्गीय परिवार तो कैसे भी करके खुद को उच्च मध्यवर्गीय परिवारों की श्रेणी में लाकर खड़ा करना चाहते हैं। इससे मध्यवर्गीय परिवार पर इस बात का भारी दबाव रहता है कि वह अपने रहन सहन को अपनी आय से कहीं ज्यादा दिखाने की कोशिश करते रहते हैं। बच्चे इस बात को भले ही न समझें लेकिन वह घर की शानो शौकत और अकसर ही आने वाली नई नई चीजों को देखकर यह अंदाजा तो लगा ही लेते हैं कि पापा और मम्मी के पास पैसों की कोई कमी नहीं है, वह तो मेरे कुछ मांगने पर पैसे न होने का बस नाटक भर करते रहते हैं। इसी सोच के चलते बच्चे के मन में माता पिता के लिए गुस्सा और आाढाsश भरता जाता है जो समय समय पर अशिष्टता के रूप में बाहर निकलता है।

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