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आधुनिक जीवन शैली ने कम उम्र में बढ़ायी आर्थराइटिस

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:15 Oct 2017 5:27 PM GMT

आधुनिक जीवन शैली ने कम उम्र में बढ़ायी आर्थराइटिस

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आधुनिक समय में व्यायाम से बचने की बढ़ती प्रवृति, विलासितापूर्ण जीवन शैली, मोटापे, वसा युक्त एवं डिब्बाबंद भोजन के बढ़ते इस्तेमाल और शराब तथा धूम्रपान की बढ़ती लत के कारण आर्थराइटिस की समस्या कम उम्र के लोगों में भी बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में तकरीबन एक करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं।

उम्र के साथ-साथ हालांकि जोड़ों का घिसना अत्यंत सामान्य बात है लेकिन आजकल व्यायाम नहीं करने, मोटापे और काम-काज तथा रहन-सहन की आधुनिक शैलियों के कारण कम उम्र के लोग भी आर्थराइटिस के शिकार बन रहे हैं। युवावस्था में होने वाली आथ्र्राइटिस को एंकलोजिंग आर्थराइटिस कहा जाता है।
युवाओं में भी बढ़ रही है आर्थराइटिस
नयी दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ अस्थि शल्य चिकित्सक डा. राजू वैष्य कहते हैं कि आज के समय में युवाओं में बढते मोटापे, फास्ट फूड के बढते प्रयोग, विलासितापूर्ण जीवन और दिनचर्या से गायब होते व्यायाम जैसे कारणों से कम उम्र में ही हड्डियां एवं जोड साथ छोडने लगे हैं। फास्ट फूड के बढते इस्तेमाल तथा खान-पान की गलत आदतों के कारण शरीर की हडिडयों को कैल्शियम एवं जरूरी खनिज नहीं मिल पा रहे हैं जिससे कम उम्र में ही हड्डियों का घनत्व कम होने लगा है, हड्डियों घिसने और कमजोर होने लगी है। इसके अलावा युवाओं में आर्थराइटिस एवं ओस्टियो आर्थराइटिस की समस्या भी तेजी से बढ रही है। आज देश में घुटने की आर्थराइटिस से पीडित लगभग 30 प्रतिशत रोगी 45 से 50 साल के हैं, जबकि 18 से 20 प्रतिशत रोगी 35 से 45 साल के हैं। आर्थराइटिस की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक सामान्य है।
मौजूदा समय में मोटापे एवं गलत जीवन षैली के कारण युवकों में भी आर्थराइटिस का प्रकोप बढ़ रहा है और और अगर भविश्य में होने वाली आर्थराइटिस एवं घुटने की समस्या से बचने के लिये मोटापे पर काबू करना कारगर उपाय साबित हो सकता है। भारत में मोटापा मुख्य स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभर रही है और यह जोड़ों की आथ्रराइटिस के बढ़ने का प्रमुख कारण है। उन्होंने कहा कि पहले की तुलना में आज अधिक संख्या में युवा लोग घुटने एवं अन्य जोड बदलवाने के आपरेशन करा रहे है और इसके लिये स्थूल जीवन शैली एवं मोटापा जिम्मेदार है। यह एक आम भ्रांति है कि जोड़ों को प्रभावित करने वाली रहयुमेटॉयड आर्थराइटिस (आर ए) जैसे आटोइम्युन बीमारियां केवल बुजुर्गों को प्रभावित करती है। इसके उलट अध्ययनों एवं शोधों से पाया गया है कि युवा और सािढय लोग भी अपाहिज बना देने वाली इन समस्याओं से ग्रस्त हो सकते हैं।
नई तकनीकों का सहारा
आज जिस तेजी से युवकों में आर्थराइटिस की समस्या बढ़ रही है उसे देखते हुये रोकथाम पर अधिक ध्यान देना चाहिये। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में शल्य चिकित्सा तकनीकों में सुधार और बेहतर इम्पलांटों के विकास होने के कारण आज घुटना बदलने का आपरेशन अत्यंत आसान, कारगर एवं सुरक्षित हो गया है। यह भी देखा जा रहा है कि लोगों खास कर युवकों के मन में ऐसे आपरेषनों को लेकर डर पहले की तुलना में बहुत कम हो गया है और आज अधिक संख्या में युवा ऐसे आपरेषन कराने के लिये सामने आ रहे हैं।
डा. राजू वैश्य बताते हैं कि घुटने की बढ़ती समस्या के कारण आज कम उम्र में ही लोगों को घुटने बदलवाने की जरूरत पडने लगी है। घुटना बदलवाने के लिये अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों में कम उम्र के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। लेकिन युवाओं में घुटना बदलने के बाद एक बड़ी दिक्कत यह आती है कि बदले गये कृत्रिम घुटने लंबे समय तक नहीं चलते और बाद में दोबारा घुटना बदलवाने की जरूरत पड जाती है।
डा. राजू वैश्य बताते हैं कि निकट भविष्य में कुछ ऐसी उपचार विधियों के विकसित होने की उम्मीद है जिनसे न केवल इस बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकेगा बल्कि इस बीमारी का एक हद तक इलाज भी हो सकेगा। जीन थिरेपी तथा अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण जैसी नयी उपचार विधियां इस बीमारी के उपचार में महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं।
इस बीमारी का दवाइयों से इलाज करने के अलावा मरीज एवं चिकित्सक को इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि जोड़ों में विकृतियां अथवा विकलांगता विकसित नहीं होने पाये। इसमें फिजियोथिरेपी की महत्वपूर्ण भूमिका है।
क्या है आथ्र्राइटिस के लक्षण
आर्थराइटिस के लक्षणों में जोड़ों में दर्द, जोड़ों में अकड़न, चाल में बदलाव, सुबह जागने पर जोड़ों में कड़ापन और बुखार प्रमुख है। आथ्र्राइटिस से बचाव के लिये नियमित व्यायाम करना चाहिये और खान-पान एवं रहन-सहन पर विशेष ध्यान देना चाहिये। आथ्र्राइटिस होने पर इलाज में बिलंब नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे जोड़ों को लाइलाज क्षति पहुंच सकती है। हालांकि आथ्र्राइटिस जोड़ों की बीमारी है लेकिन यह हृदय, फेफड़े, किडनी, रक्त नलिकाओं को भी प्रभावित कर सकती है।
आथ्र्राइटिस से कैसे बचें
मरीजों को उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिये। आज आथ्रराइटिस के उपचार में काफी सुधार हो चुका है और बॉयलॉजिक डिजिज मोडिफाइंग औशधियों, आर्थोस्कोपी एवं जोड़ प्रत्यारोपण जैसी प्रािढयायें जैसी नयी थिरेपियों एवं उपचार विधियों की मदद से विभिन्न तरह की आर्थराइटिस के इलाज के क्षेत्र में ाढांतिकारी सुधार आया है। इन थिरेपियों की मदद से अब मरीज पूरी तरह से स्वस्थ एवं सािढय जीवन जी सकता है, चाहे उसकी उम्र कितनी ही क्यों नहीं हो।''
यह देखा गया है कि व्यायाम एवं खान-पान में सुधार के जरिये घुटने की आर्थराइटिस के मरीजों को दर्द से राहत दिलायी जा सकती है और उनकी सािढयता में 50 प्रतिशत वृद्धि की जा सकती है। उन्होंने कहा कि जो लोग घुटने की ओस्टियो आर्थराइटिस के खतरे को कम करना चाहते हैं उन्हें तैराकी एवं साइक्लिंग जैसे घर से बाहर खेले जा सकने वाले वैसे खेल खेलने चाहिये जिनमें घुटने को कम से कम चोट लगने की आषंका हो। आर्थराइटिस की षीघ्र जांच एवं समुचित उपचार की मदद से आर्थराइटिस के नुकसानदायक प्रभावों को कम किया जा सकता है।

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