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आस्कर अवार्ड के लिए प्रेषित फिल्म न्यूटन अमित मसूरकर : एक गंभीर फिल्मकार

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:15 Oct 2017 5:30 PM GMT

आस्कर अवार्ड के लिए प्रेषित फिल्म न्यूटन   अमित मसूरकर : एक गंभीर फिल्मकार

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कैलाश सिंह

'न्यूटन' एक ऐसे सरकारी क्लर्क की कहानी है जो छत्तीसगढ़ के माओवादी प्रभावित क्षेत्र में स्वतंत्र व निष्पक्ष मतदान कराने का प्रयास करता है। इस फिल्म को 90 वें अकादमी अवार्ड्स (ऑस्कर) की सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म श्रेणी में भारत की अधिकारिक एंट्री के रूप में भेजा गया है।
इस सरकारी घोषणा के बाद से हर कोई यह जानने का इच्छुक है कि इस फिल्म का नाम 'न्यूटन' क्यों रखा गया है? फिल्म के निर्देशक अमित वी मसूरकर के अनुसार, इसके मुख्यतः तीन कारण हैं। एक यह कि उन्हें एक छोटे से शहर से न्यूटन मिश्रा नाम के एक व्यक्ति से फेसबुक रिक्वेस्ट मिली थी, जिसके अजीबो-गरीब नाम ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। दूसरा यह कि उनकी फिल्म का मुख्य किरदार भी उतना ही जिज्ञासु है जितना कि प्रभावी वैज्ञानिक इसाक न्यूटन थे, और उसे गर्व है अपने काम व अपनी पृष्ठभूमि पर यानी जहां से वह आया है। अंतिम कारण यह कि फिल्म की पटकथा के तीनों हिस्से न्यूटन के तीनों नियमों (गतिहीनता, वेग और समान व विपरीत प्रतिािढया) के समानांतर चलते हैं
'न्यूटन' का वर्ल्ड प्रीमियर इस साल जनवरी में बा।लन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के फोरम सेक्शन में हुआ था। इस फिल्म में जीवन की कड़वी सच्चाई को हास्य व्यंग्य के सहारे से दर्शाया गया है। फिल्म के निर्देशक मसूरकर को ]िफल्मी कीड़े ने उस समय काटा था जब वह मणिपाल इंस्टिट्यूट ऑ़फ टेक्नोलॉजी में इंजीनियरिंग कर रहे थे। कैंपस के बाहर अवैध वीडियो पार्लर थे, जहां वह दुनियाभर की फिल्में देखने के लिए जाया करते थे। बस वहां पर फिल्मों का ऐसा शौक लगा कि मसूरकर ने इंजीनियरिंग बीच में छोड़ी और उनकी फिल्म यात्रा आरम्भ हो गई, ठीक वैसे ही जैसे फिल्म 'थ्री इडियट्स' में माधवन द्वारा निभाया गया किरदार फरहान इंजीनियरिंग छोड़कर वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनने के अपने श़ौक को पूरा करता है और सफल भी होता है।
वर्ल्ड प्रीमियर के बाद से 'न्यूटन' एक चा।चत फिल्म बन गई है कि न सिर्फ आलोचक उसकी तारीफ कर रहे हैं बल्कि मुख्यधारा के सिनेमाघरों में भी फिल्म को पसंद किया जा रहा है। इस फिल्म को जब 'भूमि' व 'हसीना पार्कर' जैसी दो बड़ी फिल्मों के साथ रिलीज़ किया गया तो इसकी कमा।शयल कामयाबी के बारे में किसी ने अंदाज़ा नहीं लगाया था, लेकिन बॉक्स ऑफिस के खेल में इसने बड़ी फिल्मों को भी पछाड़ दिया है। मसूरकर की 'न्यूटन' 40-50 फिल्म फेस्टिवल्स में जा चुकी है, जिनमें ट्रिबेका भी शामिल है। बा।लन के फोरम सेक्शन में इसे इंटरनेशनल फेडरेशन ऑ़फ आर्ट सिनेमा अवार्ड मिला और होंगकोंग इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसे बेस्ट फिल्म का जूरी प्राइज मिला।
अब तो यह आरोप भी निराधार साबित हो चुके हैं कि 'न्यूटन' ईरानी फिल्म (बाबक पयामी की पोट बैलट) से प्रभावित है। इस समय 'न्यूटन' ऑस्कर दौड़ में शामिल है। 'न्यूटन' के साथ ही इसके 36 वर्षीय निर्देशक मसूरकर भी अपने ]िफल्मी सफर में काफी लम्बा फासला तय कर चुके हैं। मसूरकर की परवरिश मुंबई के माहिम में एक मध्यवर्ग के परिवार में हुई। डी जी रुपारेल कॉलेज से स्नातक की डिग्री लेने के बाद वह मणिपाल इंजीनियरिंग करने के लिए चले गये और जैसा कि हमने ऊपर बताया, उन्होंने इंजीनियरिंग बीच में ही छोड़ दी और ]िफल्मी सफर शुरू किया। मसूरकर के लिए बड़ा ब्रेक उस समय आया जब वह टीवी शो 'द ग्रेट इंडियन कॉमेडी शो' में स्टाफ लेखक बने। फिल्मों के छोटे मोटे काम भी साथ ही आते रहे। उन्होंने अनेक फिल्म पटकथाएं लिखीं जो कहीं न पहुंच सकीं। फलस्वरूप वह दोस्तों व समर्थकों की मदद से अपनी पहली फिल्म बनाने में लग गये।
मुंबई के यारी रोड-वरसोवा क्षेत्र में फिल्म स्ट्रगलर्स के बीच आम धारणा यह है कि अपने कम्फर्ट ज़ोन में टिके रहो, कामयाबी मिलेगी। मसूरकर ने भी यही किया और सुस्त कॉमेडी 'सुलेमानी कीड़ा' (2013) बनाई। हालांकि 'न्यूटन' को मसूरकर 'अवलोकानात्मक ड्राई ह्यूमर नाटक' मानते हैं, लेकिन वह इसके साथ राजनीति व हिंसा के अज्ञात क्षेत्र में भी प्रवेश कर गये हैं। यह निश्चितरूप से सियासी फिल्म है, लेकिन इसमें किसी नेता, पार्टी या विचारधारा पर फोकस नहीं किया गया है। इसकी प्रेरणा उन्हें भारतीय संविधान की प्रस्तावना पढ़ते समय मिली।
मसूरकर बताते हैं, "प्रस्तावना पढ़ते समय आपका हौसला बुलंद हो जाता है, लेकिन इस पर एकदम अलग तरह से पालन किया जाता है। लिखित शब्दों और एक्शन (करनी) में ज़बरदस्त अंतर है। यह फिल्म इस विचार से जन्मी कि जो देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने पर गर्व करता है उसमें बहुतों को वोट डालने का अधिकार ही नहीं मिला हुआ है।" इस प्रश्न को वह चुनावी उन्माद, शोर शराबे और मतदान दिवस पर फोकस करके उठाना चाहते थे जब आम आदमी का सबसे अधिक महत्व होता है। यह काम करने के लिए उन्हें बहुत अधिक पढ़ना पड़ा, यात्रा करनी पड़ी और माइाढाs स्तर पर शोध करना पड़ा। अपने साथी लेखक मयंक तिवारी के साथ वह एक्टिविस्टों, अधिकारियों, वकीलों व मतदाताओं से मिले। 'न्यूटन' को 37 दिन में शूट किया गया, दल्ली राजहारा में व उसके आसपास। यह भिलाई स्टील प्लांट का कॉस्मोपॉलिटन खदान क़स्बा है, जो आदिवासी गांवों से घिरा हुआ है।
हालांकि मुख्य भूमिकाओं में जाने माने एक्टर हैं जैसे राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, रघुवीर यादव, अंजली पाटिल व संजय मिश्रा, लेकिन मसूरकर थिएटर ग्रुप्स जैसे इप्टा रायपुर व रायगढ़ के फर्स्ट टाइम एक्टर्स की भी सेवाएं लीं। साथ ही उन्होंने गोंड अभिनेता व साधारण लोग - ग्रामीण, स्थानीय सरकारी अधिकारी व अर्द्धसैनिक बलों के अधिकारियों - को भी फिल्म का हिस्सा बनाया ताकि विश्वसनीयता का स्पर्श आ सके। मसूरकर की बहुत दिनों से जंगल में शूटिंग करने की इच्छा थी, जिसे उन्होंने इस फिल्म से पूरा किया है। अगर 'न्यूटन' को ऑस्कर प्राप्त हो जाता है, जिसकी संभावना अधिक है, तो यह भारतीय सिनेमा इतिहास में बड़ी उपलब्धि होगी।

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