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स्पेस फैक्ट्री जब हवा में होंगे कल-कारखाने

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:15 Oct 2017 5:33 PM GMT

स्पेस फैक्ट्री  जब हवा में होंगे कल-कारखाने

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संजय श्रीवास्तव

वैज्ञानिक, भविष्यदृष्टा दशकों पहले यह सोच चुके हैं कि अंतरिक्ष में इंसानी बस्तियां बसेंगी। वे किस तरह बसेंगी, उनका रूपाकार कैसा होगा इसके लिये बहुतों ने कई तरीके से चित्रांकन भी किया है और तो और इसको आधार बना कर फिल्में भी बनी हैं साहित्य भी रचा गया है। मगर अब इससे आगे की सोच यह है कि जब अंतरिक्ष में कालोनियां बसेंगी, लोग समूह में रहने लगेंगे तो वह उनकी जरूरत के सामान भी चाहिये और उन्हें बनाने वाली फैक्ट्रियां भी। सो अंतरिक्ष में फैक्ट्रियां लगने को तैयार हैं निकट भविष्य में ही इनकी शुरुआत हो सकती है पर इसकी वजह वह नही होगी जो ऊपर बतायी गयी है। मानवीय अंतरक्षीय कालोनी जब बसेंगी तब बसेंगी पर फैक्ट्रियां पहले खुलेंगी क्योंकि धरती पर रहने वाले मानवों के लिये कुछ ऐसी आवश्यक वस्तुएं अंतरिक्ष में ही ना।मत हो सकती हैं या फिर अगर वहां बनें तभी कारगर और बेहतर हो सकती हैं।
स्पेस फैक्ट्री की आवश्यकता और अवधारणा नयी नहीं है पर इधर कुछ बरसों से इस क्षेत्र में शोध विकास और मंसूबेबंदी में बला की तेजी आयी हैं। पिछ्ले दिनों अंतरिक्ष तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली और स्पेस शटल बनाने वाली कंपनी स्पेसएक्स इसलिये बेहद चा।चत हुयी क्योंकि उसने एक पुराने इस्तेमाल हो चुके रॉकेट को ठीकठाक करके दुबारा अंतरिक्ष में भेजने में कामयाबी पाली। इससे उन लोगों का उत्साह बहुत बढ गया जो अंतरिक्ष में फैक्ट्रियां लगाना चाहते हैं क्योंकि इससे अंतरिक्ष में सामान भेजना या आना जाना बहुत सस्ता सौदा हो जाने वाला था। अंतरिक्ष में फैक्ट्री खोलने का विचार इसलिये लुभावना नहीं है कि वहां सरकारी लालफीताशाही नहीं है, तमाम तरह के परमिशन नहीं लेने पड़ेंग़े या फिर टैक्स आदि नहीं चुकाने होंगे असीमित विस्तार तक फैक्ट्री फैला सकेंगे। सच यह है कि कुछ खास निर्माण क्षेत्रों में काम करने वालों को अंतरिक्ष में अपना उत्पादन करना मजबूरी और जरूरी है।
इसके अलावा उन फैक्ट्रियों जिन्हें असीमित ऊर्जा चाहिये उसके लिये यहां जितनी उपभोग करना चाहें उतनी सौर ऊर्जा उपलब्ध है। माइाढाsग्रेविटी का वातावरण जो यहां है धरती पर कृत्रिम तौरपर ना।मत करने के बावजूद यहां जैसा नहीं होगा। हां निर्वात और खास निर्माण के लिये अत्यधिक तापमान की जरूरत भी पूरी होती है। इन खासियतों को देखते हुये चिकित्सा विज्ञान,मेडिसिन, मेटेरियल साइंस और कुछ खास तरह की तकनीक से संबंधित प्रयोगशालाएं अंतरिक्ष में बनाना ही श्रेयस्कर है। भविष्य में वैज्ञानिकों के प्रयोग का मैदान अंतरिक्ष की होगा। इन प्रयोगशालाओं में नये तरह की सामग्रियों, उत्पादों, विचारों पर कार्य होगा। इसका अगला चरण यह होगा कि अंतरिक्षीय प्रयोगशालाओं में नये नये आविष्कारों पर आधारित वस्तुओं के निर्माण के लिये फैक्ट्रियां भी अंतरिक्ष में ही स्थापित होंगी। आा।बटल फेब्रिकेशन की दिशा में ाढांति का सूत्रपात इसके चलते बस कुछ ही बरसों में हो जायेगा। बहुत सी वस्तुओं की निर्माण प्रािढया में अचरज भरा बदलाव आ जायेगा।
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की समय सीमा नियत है यह हद से हद 2030 तक काम करेगी उसके बाद हमें उन्नत प्रयोगशाला की आवश्यकता होगी। ये प्रयोगशालाएं निर्माण और उद्यम उद्योग के क्षेत्र में नये विचारों को जांचेंगी। वे पता लगाएंगी कि ग्रहों पर जो खनिज है या उनके चांदों पर उनका किस प्रकार दोहन किया जा सकता है और दोहन के पश्चात उनका प्रसंस्करण कैसे होगा और वे किस किस तरह के काम आयेंगी। जब कच्चा माल यहाँ मिलेगा तो फैक्ट्री भी यहीं बनानी होंगी। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर मौजूद वैज्ञानिक तरह तरह के अंतरिक्षीय प्रयोग हर दिन कर रहे हैं। तमाम दूसरे परीक्षणों के साथ वे इस संदर्भ में भी तमाम प्रयोग करने में व्यस्त हैं कि अंतरिक्षीय उद्योग को कैसे सफल बनाया जा सकता है। उनके परीक्षणों से मिली सूचनाएं इसके लिये कितनी सहायक और समीचीन और सांदा।भक हो सकती हैं, इसका विश्लेषण जारी है। अब हम बहुत सी ऐसी सामग्री के बारे में जानते हैं जिनमें असीमित संभावनाएं हैं उनका निर्माण केवल केवल माइाढाsग्रैविटी में ही संभव है। ऐसी सामग्री को अगर धरती पर इस तरह का महौल देकर बनाया भी जाये तो भी उसमें वह बात नहीं रहेगी। साधारणतया पिघले ग्लास और पिघली धातु के एक मिश्रण विशेष को ही ले लीजिये जिसमें ताकत तो स्टील सरीखी होगी पर जैसे शीशे में कभी जंग नहीं लगता ऐसे ही वह जंग से मुक्त होगी।
इससे अंतरिक्ष की फैक्ट्री या स्पेस स्टेशन बनाने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है पर इसे बिना माइाढाsग्रेविटी के कुशलतापूर्वक नहीं बनाया जा सकता। गुरुत्वाकर्षण की कमी ऐसे ािढस्टलों के विकास के लिये बहुत रास आने वाली है जो कैंसर से लड़ने में सहायक हैं। शून्य गुरुत्वाकर्षण के दौरान धातुओं से ऐसी नयी सामग्री बनायी जा सकेगी जिनके गुण धर्म बहुत अलग होंगे और बेहद उपयोगी साबित हो सकते हैं। अंतरिक्ष में फैक्ट्री स्थापित करने से मेडिसिन क्षेत्र में आने वाली ाढांति की एक बानगी यह कि दो साल बाद अंतरिक्ष स्टेशन पर किसी मरीज के स्टेम सेल द्वारा उसका वास्तविक ह्रदय प्रिंट करके बनाया जा सकेगा। यह धरती पर बनाना पूरी तरह से संभव और निरापद नहीं है क्योंकि यहां प्रिंट सामग्री के आपस में चिपक जाने का भय है। इसको छुड़ाना वह भी प्रिंट किये हुये अंग को बिना नुकसान पहुंचाये बहुत ही मुश्किल है। फिर जहां अंतरिक्ष में यह महज 45 दिन में तैयार हो जायेगा, धरती पर शून्य ग्रेविटी करने के बावजूद चार महीने से ज्यादा लगेंगे। कहने का सबब यह कि थ्रीडी प्रिंटिंग अंतरिक्ष में सौ गुना तेज और उतनी ही अधिक कुशलतापूर्ण होगी। यही नहीं अगर फाइबर ऑप्टिक्स केबल या सोलर पैनल अंतरिक्ष में बनें तो वे धरती पर बनने वाले अपने समकक्षों से कई गुना बेहतर और अतिसक्षम होंगे।
अंतरिक्ष में पिघलाई गयी धातु के लिये किसी पात्र की आवश्यकता नहीं है ऐसे में संदूषण से वह पूरी तरह स्वतंत्र होगा। यह भी पता लगाना आसान होगा कि धातु जब ठीक अपने गलने या पिघलने के करीब होती है तो उसके भौतिक गुण क्या होते हैं, उनमें किस तरह का बदलाव आता है। माइाढाsग्रेविटी वाला वातातवरण धरती पर जीवन प्रािढयाओं और उसकी भौतिकी को समझने के लिये एक बेहतरीन उपकरण है। जैसा कि आमतौर पर सोचा जाता है कि इस पर खर्च ज्यादा आयेगा यह पूरा सच नहीं है बल्कि इस पर कुल मिलाकर लागत कम ही आयेगी। वैसे भी प्रक्षेपण और अंतरिक्ष तक पहुंचने की नयी तकनीकि की लागत एक दशक में ही छह गुनी घट चुकी है। यह जरूर है कि अंतरिक्ष तक मशीनें सामग्री इत्यादि ले जाना सस्ता पड़े पर वहां से बनी हुयी सामग्री को वापस धरती तक सुरक्षित लाने की लागत बहुत ज्यादा हो सकती है। यह व्यावसायिक दृष्टिकोण से कितना सफल होगा यह आगे देखा जायेगा हो सकता है इसका भी रास्ता भविष्य में निकल आये।
अंतरिक्ष में पानी और ऑक्सीजन की भी जरूरत पड़ेगी अगर मानवीय कालोनियां न भी बसे काम रोबोट के जरिये और जमीनी नियंत्रण से हो तब भी कुछ लोगों का वहां रहना अनिवार्य होगा और इसकी आवश्यकता भी। निश्चित तौरपर भविष्य में छुद्रग्रहों से प्राप्त सामग्री से राकेट ईंधन बनाने में कामयाबी मिलेगी जिससे बनी हुयी सामग्री को धरती पर लाना अब बहुत मुश्किल और मंहगा नहीं रह जायेगा। निस्संदेह स्पेस माइनिंग या अंतरिक्ष की खोदाई धरती वालों के लिये बहुत आा।थक लाभ दे सकती है पर बनी सामग्री नीचे लाना हो या खोदी गयी धातु दोनों के लिये क्षुद्र ग्रहों की सामग्री से रॉकेट ईंधन बनाना अभी दूर की ही कौड़ी है।

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