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किसानों को नंगा करके पीटना यह तो पुलिसिया आतंक है

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:15 Oct 2017 5:34 PM GMT

किसानों को नंगा करके पीटना  यह तो पुलिसिया आतंक है

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वीना सुखीजा

मध्य प्रदेश में सूखाग्रस्त टीकमगढ़ से लगभग 20 किमी के फासले पर वर्मा मंज़ गांव है, जिसमें 45 वर्षीय किसान बलवान सिंह घोष की 6 एकड़ कृषि भूमि है। इस साल उसकी ज़मीन पर मात्र 6 क्विंटल उड़द व सोयाबीन हुई है , जबकि पिछले साल तकरीबन 17 क्विंटल फसल हुई थी। इसलिए बलवान दुखी है, परेशान है। उसे राहत चाहिए ताकि वह क़र्ज़ के बोझ में न डूबे और उसके घर का चूल्हा जलता रहे।
इस चिंताजनक स्थिति में अकेला बलवान सिंह ही नहीं है। वर्मा मंज़, वर्मा डंग, वर्मा तल...आदि टीकमगढ़ के सभी गांवों में किसानों की यही हालत है,उन सभी को राहत चाहिए। 40 वर्षीय किसान पुष्पेन्द्र सिंह के 10 एकड़ खेत में सिर्फ 5.6 क्विंटल उड़द व मूंग इस बार हुई है। उसके खेत में इतनी कम फसल आज तक नहीं हुई है। पिछले साल लगभग 20 क्विंटल फसल हुई थी।
इस दयनीय स्थिति से गुज़र रहे ये किसान तो ]िफलहाल रबी फसल के बारे में सोच तक नहीं रहे हैं। उन्हें तो चिंता इस बात की हो रही है कि पीने के पानी तक की कमी हो जायेगी। पानी की कमी भी एक कारण रहा कम फसल होने का। ऐसे में इन किसानों को राहत के लिए उम्मीद की एक किरण टीकमगढ़ में आयोजित कांग्रेस की रैली नज़र आयी। क्योंकि उनकी समस्याओं को उठाने का वायदा किया गया था। हालांकि यह किसान राजनीतिक नहीं हैं कि इनका संबंध किसी भी राजनीतिक पार्टी से नहीं है, लेकिन यह अपनी समस्याओं की खातिर कांग्रेस की तीन अक्टूबर की रैली में शामिल हो गये।
पुष्पेन्द्र सिंह के अनुसार, "न हम बीजेपी के साथ हैं और न ही कांग्रेस के साथ हैं। अगर बीजेपी ने रैली का आयोजन किया होता तो भी हम जाते। हमें तो राहत चाहिए, बिजली व सिंचाई पानी जैसी समस्याओं का समाधान हो। इसलिए हम गये रैली में।"लेकिन इन किसानों को मिला क्या? टीकमगढ़ कलेक्टरेट के निकट आयोजित रैली को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज की और आंसू गैस के गोले छोड़े। यही नहीं जब किसान ट्रैक्टर-ट्राली में भरकर अपने गांव लौट रहे थे तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके उनकी पिटाई की और उन्हें निर्वस्त्र किया। बलवान सिंह के अनुसार, "किसानों को अपने गांव वापस ले जा रही दो ट्रेक्टर-ट्राली में से एक को मैं चला रहा था। दर्जनों पुलिसका।मयों ने आकर हमें रोक लिया और कुछ हमारे वाहन पर भी सवार हो गये कि कोई बचकर न भाग सके।
हमें टीकमगढ़ ग्रामीण थाने में ले जाया गया। वहां हम लगभग 50 किसान थे,उनमें से कुछ तो ऐसे थे जो रैली में शामिल भी नहीं थे, उन्हें रैली समाप्त होने व भीड़ के छटने के दो घंटे बाद उनके गांवों से उठाया गया था। थाने में पुलिस ने पहले तो हमारी पिटाई की और फिर हम से कपड़े उतारने को कहा। मैंने कहा कि मुझे कपड़े उतारने को मत कहो,मेरे अंडरवियर में छेद है, लेकिन थानेदार ने डंडा फटकारते हुए कहा - अबे नंगा हो!' और हमारे पास कोई चारा न था।"
एक अन्य किसान ने बताया कि यातना का यह सिलसिला आधे घंटे तक जारी रहा - 'एक पुलिसकर्मी ने हमें आतंकवादी तक कहा और हमें इस अंदाज़ से निर्वस्त्र कराया गया कि हमारे हाथ पर जो कलावा (धा।मक धागा) बंधा था, उसे भी तोड़ कर फ़ेंक दिया गया, हमारे गले के लॉकेट तक उतरवा दिए गये।' इस पुलिस ज़ुल्म की चौतरफा निंदा व आलोचना हो रही है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मध्य प्रदेश सरकार से इस घटना की रिपोर्ट मांगी है। हालांकि मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार में गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने केवल 'तथाकथित निर्वस्त्राrकरण' की जांच के आदेश दिए हैं।
लेकिन प्रदेश के बीजेपी नेता कह रहे हैं कि किसानों की चोटें जाली हैं और 'निर्वस्त्राrकरण नाटक सरकार को बदनाम करने की कांग्रेसी साज़िश है'। बीजेपी के इन आरोपों के संदर्भ में एक 33 वर्षीय किसान अमोल सिंह घोष का कहना है, "सरकारको क्या सबूत चाहिए? क्या हमारी चोटें हम पर हुए ज़ुल्म को व्यक्त नहीं करती हैं? हम किसान हैं, कांग्रेसी कार्यकर्ता नहीं।" घोष गरीब किसान हैं, वह रैली में शामिल भी नहीं थे, लेकिन उन्हें भी पुलिस ने नंगा करके पीटा। घोष के संयुक्त परिवार में 11 सदस्य हैं, जिनकी रोटी की ज़िम्मेदारी उन्हीं पर है।
टीकमगढ़ में 20 प्रमुख स्थानों पर उन किसानों के पोस्टर लगे हैं जिनको नंगा करके पीटा गया था। इनमें से एक 28 वर्षीय सुनील सिंह घोष हैं, जिनका कहना है, "पुलिसका।मयों से घिरे होने पर, उनके डंडों के सामने कौन अपने कपड़े उतारने से मना कर देगा? पुलिस यह जानना चाहती थी कि हम रैली में क्यों गये थे? टीकमगढ़ के पूर्व विधायक यादवेन्द्र सिंह के हस्तक्षेप करने पर ही हमें रिहा किया गया।" हैरत की बात यह है कि तथाकथित हिंसा व तोड़फोड़ के लिए पुलिस ने 1000 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ म़ुकदमे दर्ज किये हैं। जिन किसानों को थाने में लाकर नंगा करके पीटा गया था, उनमें से किसी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है। क्यों? ऐसा करने से पुलिस के ज़ुल्म की पोल खुलती है। टीकमगढ के एसपी कुमार प्रतीक का कहना है, "जांच पूरी होने के बाद ही पुलिस अपना दृष्टिकोण सार्वजनिक करेगी। ]िफलहाल सिर्फ तथाकथित निर्वस्त्राrकरण की ही जांच हो रही है क्योंकि किसी की पिटाई नहीं की गई। जो पीटने का आरोप लगा रहे हैं, उन्हें जांच के दौरान गवाही देने के लिए बुलाया जायेगा।"
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बीजेपी शासित राज्यों में पुलिस के डंडों व गोलियों से आम जनता को खामोश करने का प्रयास है कि वह अपनी मांगों व समस्याओं को लेकर कोई विरोध प्रदर्शन करने का साहस न करें। इसलिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्राओं को बुरी तरह पीटा गया कि वह सुरक्षा व यौन उत्पीड़न पर विराम लगाने की मांग कर रही थीं। अब टीकमगढ़ के सूखाग्रस्त पीड़ित किसानों को नंगा करके पीटा गया है कि वह बेहतर बिजली व पानी व्यवस्था की मांग कर रहे थे। गौरतलब है कि लगभग चार माह पहले मंदसौर में अपनी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कर रहे किसानों पर पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें पांच किसान मारे गये थे। जब कोई कहीं अपनी समस्याओं को नहीं रखेगा, अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन नहीं करेगा, तभी तो लगेगा कि 'अच्छे दिन' आ गये हैं।

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